नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन का दौर खत्म हो चुका है. इस बीच सियासी वार-पलटवार का दौर तेज हो गया है. हर कोई सियासी उठापटक में बाजी पलटने के फिराक में जुट गया है. लेकिन इस बीच दिल्ली विधानसभा चुनाव को इन 7 नेताओं के बयानबाजी ने और भी रोचक बना दिया है. पढ़ें: किसने क्या कहा?
दिल्ली के सियासी रण पर छिड़ गई जंग
1). सौरभ भारद्वाज, नेता, आप
उम्मीद ये थी कि मनोज तिवारी नई दिल्ली में चुनाव लड़के एक अपना चुनाव खड़ा करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोई भी साधारण आदमी कहेगा कि आम आदमी पार्टी को ये वॉकओवर दिया जा रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे हथियार डाल दिया है, तो बड़ी हैरान करने वाली बात है.
2). श्याम जाजू, नेता, बीजेपी
अरविंद केजरीवाल जी के खिलाफ दिल्ली में जो गुस्सा है, नफरत है, उसके खिलाफ एक जुझारू नेता उतारने की हमारी मंशा थी. केजरीवाल जी के खिलाफ 5 साल तक आंदोलनों में इन्होंने नेतृत्व किया है. पार्टी ने सोझ-समझ कर इनकी उम्मीदवारी दी है.
3). सुनील यादव, बीजेपी उम्मीदवार, नई दिल्ली
मेरा और केजरीवाल का मुकाबला लोकल Vs बाहर का है. वो शीला दीक्षित को सिर्फ एक चैलेंज देकर यहां पर आए थे जो वो कामयाब रहे लेकिन वहां बनने के बाद कभी क्षेत्र में रहे नहीं. तो लोकल Vs अदर होने वाला है. वो चैलेंज के जरिए आए थे, मेरे चैलेंज से बाहर जाएंगे.
4). अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली
सारी पार्टियों का एक ही मकसद है कि किस तरह से केजरीवाल को हराया जाए और मेरा एक ही मकसद है कि किस तरह से भ्रष्टाचार को हराया जाए.
5). रोमेश सबरवाल, कांग्रेस उम्मीदवार, नई दिल्ली
केजरीवाल को मेरे खिलाफ राजनीति का कोई ज्यादा अनुभव नहीं है. उसको ना एडमिनिस्ट्रेशन चलाना आता है, सिर्फ एक झूठ बोलना उसको आता है.
6). तेजिंदर पाल सिंह बग्गा, नेता, बीजेपी
बीजेपी सिर्फ हरि नगर ही नहीं पूरी दिल्ली के अंदर 50 से ज्याद सीटें जीतकर सरकार बनाने जा रही है और ये भय आपको केजरीवाल जी के चेहरे पर दिख रहा होगा. 57 महीने का नाकारापन, 57 महीने का निकम्मापन और 2-3 महीने चुनाव से पहले नए जुमले, नए वादे, तो इससे मुझे लगता है कि दिल्ली की जनता समझदार है, समझ रही है.
7). संजय सिंह, सांसद, आप
दिल्ली के अंदर बीजेपी बिना दूल्हे की बारात और टीम बिना कैप्टन है.
दिल्ली के सियासी रण पर जंग छिड़ चुकी है. 8 फरवरी को जनता दिल्ली में सरकार के लिए वोट डालेगी और 11 फरवरी को नतीजे आएंगे. लेकिन सवाल यही है कि क्या भाजपा 22 साल का वनवास खत्म कर पाने में कामयाब हो पाएगी? या केजरीवाल इस बार भी प्रचंड बहुमत से वापसी करेंगे?