आखिर किस वजह से रघुवंश बाबू की 'कुर्बानी' देने पर आमादा है राजद?

सवाल यह भी है कि राजद(RJD) आखिर कब तक तेजस्वी यादव(Tejasvi yadav) को 'बेबी-फेस' बना कर लालू(lalu yadav) के जरिए ही अपनी सियासी रणनीतियां तैयार करती रहेगी? क्यों रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे वरिष्ठ नेता को दरकिनार करने को तैयार हुए लालू?

Written by - Satyam Dubey | Last Updated : Sep 13, 2020, 04:36 PM IST
    • राजनीतिक बवंडर के शिकार हुए रघुवंश बाबू
    • राजद को अब रघुवंश सिंह की जरूरत नहीं...
    • नए समीकरण तलाशती राजद और उसके साइड-इफेक्ट्स
    • कही भारी न पड़ जाए राजद को यह गलती
आखिर किस वजह से रघुवंश बाबू की 'कुर्बानी' देने पर आमादा है राजद?

पटना: बिहार (Bihar election) में इन दिनों एक नाम मीडिया रिपोर्ट्स की टॉप हेडलाइंस में है. वो है राजद के दिग्गज नेता व मनरेगा के जरिए सामाजिक न्याय के बड़े नामों में शुमार होने वाले  रघुवंश बाबू. वो ही रघुवंश प्रताप सिंह (Raghuvansh prasad singh) जो लालू यादव (Lalu Yadav) के अब तक के सियासी सफर के साथी रहे थे और अब जबकि उनका देहांत हो गया है, उनकी औऱ लालू की 32 वर्षों की यारी पर फुलस्टॉप लग गई हैं. 

इस सियासी फेरबदल से कुछ सवाल जन्म लेते हैं. मसलन, ऐसी भी क्या बात हो गई कि रघुवंश बाबू जिन्होंने बुरे से बुरे वक्त में भी लालू का साथ नहीं छोड़ा, वो 38 शब्दों में 32 साल की यारी को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खत्म कर रहे हैं? सवाल यह भी उठता है कि राजद आखिर किस समीकरण के तहत रामा सिंह के बदले रघुवंश बाबू की कुर्बानी देने पर आमादा है? सवाल यह भी है कि राजद आखिर कब तक तेजस्वी यादव को 'बेबीफेस' बना कर लालू के जरिए ही अपनी सियासी रणनीतियां तैयार करती रहेगी?

लालू के तीन साथी जो सुख-दुख में रहे साथ

रघुवंश बाबू उस दौर के नेता हैं, जब लालू के बगल में उनकी कुर्सी लगती थी और पार्टी के हर फैसले पर उनकी मंजूरी. रघुवंश सिंह के अलावा लालू यादव के करीबियों में तीन नाम और हैं जो हर परिस्थिति में उनके साथ रहे. जगदानंद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दिकी और उमाशंकर सिंह. सवर्णों को पानी पी-पी कर कोसने वाले लालू यादव भले ही कितना क्यों न गरज लें, उनके ये तीन साथी फिर भी अपना काम बड़ी बखूबी के साथ कर दिया करते. अपने रसूख की वजह से न सिर्फ जनता बल्कि देशस्तर पर सामाजिक न्याय के पैरोकार की छवि बनाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह के राजद से छिटकने का सबसे बड़ा कारण है रामा सिंह की राजद में एंट्री की अटकलें.

राजनीतिक बवंडर के शिकार हुए रघुवंश बाबू

रामा सिंह, जो एक समय में रघुवंश बाबू के धुर-विरोधी माने जाते हैं. रामा सिंह और रघुवंश बाबू की सियासी लड़ाई बिहार की राजनीतिक फिजाओं में इस कदर तैरती है कि मुकाबला कब हॉट सीट की लड़ाई में तब्दील हो जाता है, पता ही नहीं चलता. लेकिन कहते हैं कि सियासत में कभी-कभी बवंडर भी आता है.

एक ऐसा ही बवंडर रघुवंश बाबू के सियासी जीवन में भी 2019 के लोकसभा चुनाव में आया. मोदी लहर पर सवार हो कर लोजपा के टिकट पर दिनेश सिंह की पत्नी वीणा देवी ने रघुवंश बाबू को वैशाली लोकसभा सीट से पटखनी दी. कहा जाता है कि वीणा सिंह को जिताने के लिए रामा सिंह ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया था.

जब रघुवंश बाबू को किया गया नजरअंदाज

रघुवंश सिंह का सियासी सफर यही से डावांडोल स्थिति में नजर आने लगता है. अब बाद के घटनाक्रम और राजद आलाकमान की बेरूखी उनसे कुछ ऐसी रही कि पार्टी में किसी भी बड़े फैसले से पहले उनकी राय लेना भी जरूरी नहीं समझा गया. एक नजर में देखें तो पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करते वक्त रघुवंश बाबू की जगह जगदानंद सिंह पर भरोसा जताना उन्हें अखड़ गया.

इसके अलावा राजद जब चुनाव से पहले अपनी नई टीम बना रही थी, नए चेहरों को जगह दे रही थी और नए समीकरण तलाश रही थी, तब भी पार्टी ने रघुवंश बाबू के मिजाज और उनके प्रस्तावों की अनदेखी की. पार्टी जिलाध्यक्ष और जिला पदाधिकारी के चुनाव में जगदानंद सिंह, राजद राज्यसभा सांसद मनोज झा, संजय यादव और आलोक मेहता की खूब चली. ये अलग बात है कि अंतिम मुहर रिम्स में इलाजरत राजद सुप्रीमो लालू यादव ने ही लगाई. लेकिन उन्होंने भी अपने यार के मिजाज को अनसुना कर दिया.

राजद को अब रघुवंश सिंह की जरूरत नहीं...

पार्टी अधिकारियों के चुनाव के वक्त भी रघुवंश प्रसाद सिंह के सुझाव के उम्मीदवारों की अनदेखी की गई. तेजस्वी यादव जो खुद भी एक बेबीफेस हैं पार्टी के लिए, उन्होंने भी जगदानंद सिंह सरीखे नेताओं को ही तरजीह दी. लेकिन बात तब भी कुछ खास नहीं बिगड़ी. असली खेल अभी बाकी था. इस रणनीति ने जहां एक ओर राजद को नए समीकरण दिए वही दूसरी ओर रघुवंश प्रसाद सिंह को एक ऐसे मुहाने पर ला खड़ा कर दिया जहां से उन्हें यह लगने लगा कि राजद को उनकी अब जरूरत नहीं बची.

नए समीकरण तलाशती राजद और उसके साइड-इफेक्ट्स

दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए राजद ने अपने लिए नए समीकरण तलाशने शुरू कर दिए हैं. राजद अपने पुराने MY (मुस्लिम+यादव) समीकरण से परे अब सवर्ण वोटरों पर ध्यान केंद्रित कर उनके कुछ वोट पाने में दिलचस्पी दिखाने लगी है. गणित बड़ा साफ है पार्टी बड़े पदों पर और पार्टी में सवर्णों को जगह देगी और बदले में उसे कुछ सवर्ण वोट मिलेंगे. तमाम दांवपेंच भी शुरू हो गए हैं. राजद में खास वर्ग और खास क्षेत्र के कुछ बड़े चेहरों की एंट्री भी होने लगी है. फिर चाहे वह मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह हों या फिर रघुवंश बाबू के चिर-प्रतिद्वंदी रामा सिंह. 

इसके अलावा पार्टी बांका के दादा व जदयू के संस्थापक सदस्य और नीतीश के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले दिवंगत दिग्विजय सिंह (दादा) की पत्नी पुतुल कुमारी को भी राजद में शामिल कराने की कवायद में लगी हुई है. इस बीच राजद के कई यादव वर्ग के नेता यह कहकर पार्टी से अलग हो गए हैं कि आरेजडी अब पुरानी पार्टी नहीं रही जिसमें उन्हें मान-सम्मान मिलता था. अब पार्टी चंद हाथों और चंद धनसेठ कुबेरों की जागीर बन गई है. हालांकि, यह तो दावे हैं. 

कुछ यूं कहानी बयां करता है राजद का नया गणित

सूत्रों की मानें तो राजद से अलग हुए नेताओं को किसी न किसी तरह यह भनक लग गई थी कि पार्टी अब उन पर भरोसा नहीं दिखाने वाली है. उनकी जगह वो नए कैंडिडेट आएंगे जो राजद के पुराने MY समीकरण नहीं बल्कि सवर्णों को लुभाने का काम करें. राजद को अपने इस गणित पर इतना भरोसा है कि पार्टी ने यादव वोटरों पर दांव खेल दिया है. राजद आलाकमान का मानना है कि लालू की वजह से यादव वोटर उनसे कहीं नहीं छिटकने वाले.

वहीं भाजपा-जदयू से नाराजगी के बाद सीमांचल क्षेत्र में राजद का दबदबा और भी परवान चढ़ गया है. ऐसे में कुछ वोटरों की जरूरत है जो सवर्णों से हों तो पार्टी बहुमत के आंकड़े को पार कर सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है. 

कही भारी न पड़ जाए राजद को यह गलती

इस क्रम में राजद से एक गलती हो गई. वो यह कि उसने अपने पुराने साथियों को नए समीकरणों के खातिर ठेंस पहुंचा दिया. उम्मीद तो यही थी कि यह गलती राजद के लिए बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत भारी न पड़ जाए. लेकिन रघुवंश बाबू की नाराजगी ने चीजों को थोड़ा मुश्किल जरूर कर दिया है.

रघुवंश प्रसाद सिंह की नाराजगी न सिर्फ राजद के पुराने वोटरों को खफा करा सकती है बल्कि सवर्णों को भी राजद की असलियत बताने का काम कर सकती है. इस बीच भले ही लालू प्रसाद यादव ने पत्र लिखकर रघुवंश बाबू को यह कहा हो कि आप पहले स्वस्थ हो जाएं. तब बात करेंगे. आप कहीं नहीं जा रहे. समझ लीजिए. लेकिन अंदरखाने ही पार्टी यह मान चुकी है कि ब्रह्म बाबा (रघुवंश सिंह) अब पार्टी के लिए प्रासंगिक नहीं बचे हैं. तभी तो राजद ने मिलन समारोह के दौरान पोस्टर से रघुवंश प्रसाद सिंह के चेहरे को गायब कर दिया है. 

एम्स से रोज जारी होती चिट्ठियां, जो बिहार में मचा रही बवाल

इस बीच लगातार पत्र के जरिए रघुवंश प्रसाद सिंह एम्स में भर्ती होने के बावजूद धमाके कर रहे हैं. अब तक उनके नाम की तीन चिट्ठियां बाहर आई हैं जिसमें से एक में उन्होंने अपने पार्टी से इस्तीफे के फैसले को लालू यादव के समझ जगजाहिर किया. दूसरे में वैशाली को ''गणतंत्र की धरती'' घोषित करने का अनुरोध सीएम नीतीश कुमार से किया. तो वही तीसरे पत्र में उन्होंने राजनीति में वंशवाद पर कड़ा प्रहार किया जिसपर सियासत तेज हो गई है.

ऐसे में रघुवंश बाबू के राजद के खिलाफ मोर्चा खोलने पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. हालांकि, जानते तो सभी हैं कि राजनीति को भी सिद्धांतों के साथ जीने वाले रघुवंश बाबू शायद ही ऐसा करेंगे. 

यह भी पढ़ें:- रघुवंश बाबू की चिट्ठी से बिहार की राजनीति में हंगामा

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