झारखंड में रघुबर दास की 'लंका' जलाने की तैयारी में सरयू राय

झारखंड का असल राजनीतिक रंग अब चढ़ा है. बागी होने का सिलसिला और उसके बाद अपनी ही पार्टी और नेता के खिलाफ मोर्चा खोल देना, यह सियासी खेल का एक दिलचस्प पहलू रहा है. झारखंड में भी अब सत्तासीन पार्टी भाजपा से उसके बड़े पुराने साथी सरयू राय नाराज हो गए हैं. न सिर्फ नाराज हो गए हैं, बल्कि मुख्यमंत्री रघुबर दास को सबक सिखाने का जिम्मा उठा लिया है.   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 19, 2019, 01:05 PM IST
    • मंत्री पद छोड़ रघुबर दास के खिलाफ उतरे चुनाव में
    • सरयू राय से नाराज चल रहे थे गृहमंत्री अमित शाह
    • 2014 के चुनाव में खेला था जबरदस्त कार्ड
    • भाजपा ने आजसू से भी नाता तोड़ा
झारखंड में रघुबर दास की 'लंका' जलाने की तैयारी में सरयू राय

रांची: झारखंड में पांच सालों का अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पहले मुख्यमंत्री हैं रघुबर दास. लेकिन कहा जाता है कि प्रदेश में भाजपा की नींव सरयू राय सरीखे नेताओं ने ही रखी. इससे पहले जो प्रदेश में भ्रष्टाचार का बोलबाला था, उस प्रथा से इतर एक रास्ता तैयार कर भगवा झंडे को लहराने वाले कुछ चंद नेताओं में से एक रहे हैं सरयू यादव. अब पार्टी की ओर से पूर्वी जमशेदपुर से टिकट काटे जाने के बाद बौखलाए सरयू राय ने भाजपा ही छोड़ दिया और निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं. दरअसल, पार्टी ने सरयू राय का टिकट काट वहां से मुख्यमंत्री रघुबर दास को चुनावी मैदान में उतार दिया है. इससे उखड़े सरयू राय ने यह तक कह दिया कि रघुबर दास वो दाग हैं जिसे 'मोदी डिटर्जेंट' और 'शाह लॉन्ड्री' भी नहीं धो सकती. 

मंत्री पद छोड़ रघुबर दास के खिलाफ उतरे चुनाव में

सरयू राय ने रविवार को ही अपना इस्तीफा राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु को सौंप दिया. वे राज्य सरकार में खाद्य सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामले के मंत्री थे. सरयू राय का गुस्सा इस कद्र है कि वह अपनी पारंपरिक सीट जमशेदपुर पश्चिमी पर तो लड़ ही रहे हैं, लेकिन सीएम रघुबर दास के खिलाफ भी जमशेदपुर पूर्वी से चुनावी दंगल में दो-दो हाथ करेंगे. हालांकि, रघुबर दास ने यह कहा कि उन्हें सरयू राय से कोई परेशानी नहीं है. वह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं. लेकिन शायद मुख्यमंत्री दास समझे नहीं या उन्हें इस बात की भनक नहीं मिली. भाजपा के अंदर अब एक खेमा ऐसा भी उठ खड़ा हुआ है जो सरयू राय के साथ कभी भी जा कर मिल सकता है. सरयू राय क्योंकि पार्टी के रसूखदार नेताओं में से रहे हैं. जाहिर है, बगावत की चिंगारी पार्टी के कुछ नुमांइदों को प्रभावित तो करेगी ही. 

सरयू राय से नाराज चल रहे थे गृहमंत्री अमित शाह

सरयू राय ने इशारों-इशारों की राजनीति छोड़ प्रत्यक्ष रूप से यह चेतावनी भी दे दी है कि भाजपा के अंदर भीतरघात होने लगा है. यह भी संभव है कि चुनावी माहौल और गर्म होने का इंतजार कर रहे कुछ नेता पार्टी छोड़ दें. हालांकि, सरयू राय के बगावती तेवर कुछ नए नहीं हैं.

पार्टी नेता भाजपा मुख्यमंत्री रघुबर दास से ज्यादा झामुमो प्रमुख हेमंत सोरेन के गुड़गान करते नजर आ रहे थे. इससे न सिर्फ सीएम रघुबर दास बल्कि भाजपा के मुख्य रणनीतिकार व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नजर में भी चढ़ गए थे. पार्टी के अंदर सरयू राय के कद को छोटा करने की जद्दोजहद शुरू हो गई थी. इस चुनाव में बदला निकालने का अच्छा मौका मिला. सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री रघबुर दास के इशारों पर जमशेदपुर पश्चिमी से उनका टिकट काट लिया गया. 

2014 के चुनाव में खेला था जबरदस्त कार्ड

पिछले चुनाव में भ्रष्टाचार के मामले पर विपक्ष को घेरने में सफल रहे सरयू राय ने एक खास लॉबी तैयार की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें मंच से उन्हें अपना दोस्त भी बताया था. इसके बाद उन्हें मंत्रालय में भी जगह दी गई. अब इतना सब कुछ हो जाने के बाद सरयू राय ने पीएम को भी नहीं बक्शा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मुझे दोस्त कहते हैं लेकिन टिकट काटे जाने पर उन्होंने कुछ भी बीच-बचाव नहीं किया. 

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भाजपा ने आजसू से भी नाता तोड़ा

मालूम हो कि झारखंड में भाजपा इस बार एक साथी भी खो चुकी है. या यूं कहें कि भाजपा महाराष्ट्र से सीख लेते हुए अकेले ही चुनावी दंगल मारने को कमर कस चुकी थी. पिछले चुनाव में एनडीए का हिस्सा रहे आजसू इस चुनाव में भाजपा के साथ नहीं लड़ेगी, यह लगभग तय हो गया है. दरअसल, आजसू मुखिया सुदेश महतो ने भाजपा से 19 सीटों की मांग की थी. लेकिन भाजपा ने 11-12 सीट देने का पार्टी के सामने प्रस्ताव रखा. आजसू ने इस प्रस्ताव पर अपनी रजामंदी नहीं दी. उधर भाजपा ने धीरे-धीरे कर 71 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. अब बमुश्किल 10 सीटे ही रह गई हैं. आजसू ने भी 26 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी. इस तरह भाजपा ने अपनी एक पुरानी सहयोगी को यहां छोड़ दिया. 

माना जाता है कि आजसू के वोटर जनजातीय समुदाय से ज्यादा हैं. खासकर संथल परगना, देवघर और दुमका क्षेत्रों से. ऐसे में आत्मविश्वास से लबरेज भाजपा के प्रदेश में पांव न उखड़ जाएं, इसका उसे ख्याल रखना होगा. 

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