6 साल छोटे आरडी से आशा भोसले की प्यार वाली शादी

बिलकुल भी आसान नहीं था आशा भोसले के लिए आरडी बर्मन से लव मैरिज करना, लेकिन आशा आगे बढ़ने वालों में थी, पीछे हटने वालों में नहीं..

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Sep 8, 2020, 08:51 PM IST
    • सात फेरों के लिये बेले पापड़
    • संगीतमय थी आशा और आरडी की प्रेमकहानी
    • 1956 में हुई थी पहली मुलाक़ात
    • 1966 में प्रोफेशनल मुलाकात
    • पहली शादी दोनो की टूट गई थी
    • एक लंबा इन्तजार था दरमियान
    • संगीत के सुरों में बहा रोमांस
    • प्यार भरे साथ के 14 साल
6 साल छोटे आरडी से आशा भोसले की प्यार वाली शादी

नई दिल्ली.  संगीत के दो सदाबहार सितारों का प्यार के क्षितिज पर मिलन कितना मुश्किल था, ये सिर्फ उनको पता है जो आशा भोसले को करीब से जानते हैं. लेकिन वो ये भी जानते हैं कि आशा झुक कर हालात से समझौता करने की बजाये बागी हो जाना ज्यादा पसंद करती रही हैं अपनी सारी ज़िंदगी.

 

सात फेरे पापड़ वाले 

भारत में प्रेम विवाह का अर्थ है सात फेरे पापड़ वाले. आशा भोसले के लिए भी ये प्यार वाली शादी आसान नहीं थी न ही आसान था ये मुश्किल फैसला लेना. सिर्फ साथ की बात होती तो और बात होगी, वास्तव में पापड़ बेलने पड़े आशा को उम्र में छह साल छोटे आरडी के उम्र भर के साथ के लिए. 

संगीतमय थी प्रेमकहानी 

संगीत के दोनो दिग्गजों की प्रेमकहानी भी उनकी तरह संगीतमय रही. पर इस संगीत में संघर्ष की बीट्स भी थीं जो बहुत हाी पिच पर थीं. उस हाइपिच पर जा कर मिलना सिर्फ इन दोनों विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तित्वों के लिए ही संभव हो सकता था तभी तो हिंदी सिनेमा के अमर जोड़ियों में से एक थी ये जोड़ी आशा और आरडी की.  आरडी के साथ कई हिट गाने देने वाली आशा का आज जन्म दिन है क्योंकि आज है आठ सितंबर. 

1956 में हुई थी पहली मुलाक़ात 

आरडी बर्मन को बुलाया जाता था पंचम दा के नाम से और आशा भोसले को आशा दीदी कह कर. वो साल था 1956 जब पहली बार दा और दीदी की मुलाकात हुई थी. इस वक्त तक मुम्बई सिनेमा की दुनिया में लोग आशा भोसले के नाम से अच्छी तरह परिचित हो गए थे. तब किशोर वय के आरडी बर्मन जवान भी नहीं हुए थे लेकिन उनके पिता सचिन देव बर्मन ने सुप्रसिद्ध संगीतकार के तौर पर अपना स्थान बनाया था. 

1966 में हुई प्रोफेशनल मुलाकात 

दस साल बाद फिर देखा था आशा ने आरडी को आमने-सामने. खून में संगीत ले कर पैदा हुए इस नौजवान संगीतकार राहुल देव बर्मन को आशा थी कि आशा उनका पहला गीत ज़रूर जाएंगी. उन्होंने ही  फिल्म 'तीसरी मंजिल' में आशा से गाने के लिए संपर्क किया था. और अजब सी बात ये भी थी कि इस समय तक ये दोनों भावी जीवनसाथी अपने जीवन में अपने साथियों का साथ छोड़ चुके थे. 

पहली शादी टूट गई थी 

तीसरी मंजिल के गीत ने जब आशा और आरडी को मिलाया तब दोनों की ही पहली शादी टूट गई थी. रीता पटेल से पंचम दा अलग हो गए थे और इतना दुखी थे वे अपनी प्रथम पत्नी का घर छोड़ कर होटल में रहने लगे थे. इधर गणपतराव भोसले से उनकी पत्नी आशा बहुत परेशान थीं. और इस वजह से एक सुबह आशा अपने बच्चों का हाथ पकड़ कर उन्हें अपनी बहन के घर ले आईं. 

संगीत के सुरों में बहा रोमांस 

तीसरी मंज़िल इन दोनों संगीत के सितारों के लिए ज़िंदगी की आखिरी मंज़िल थी जिसका इन दोनों को ही शुरू में पता नहीं चला. पंचम दा के लिए आशा गीत गाती रहीं. और सुनने वाले संगीत के दीवाने कहने लगे ये संगीत तो इसी आवाज़ के लिए बना है.  आरडी का नये किस्म का पूरब-पश्चिम संगीत और आशा की सुरीली आवाज़ लोगों पर जादू करने लगे और दोनों ने कुछ नहीं कहा पर इनकी धड़कने बात करने लगीं. दोनो का रोमांस संगीत में बहने लगा और संगीत के सुरों में रोमांस की परवाज़ दिखाई देने लगी थी. ज़ाहिर है दोनो के गीतों को तो हिट होना ही था. 

एक लंबा इन्तजार दरमियान

कई सालों का सुरीला सफर आरडी और आशा को एक दूसरे के करीब ले आया. उनके गीत लगातार हिट होते रहे. पंचम के संगीत में  नयापन था तो आशा के गीत में नया अंदाज़ था - विद्रोही दोनों ही थे. छह साल छोटे आरडी से आशा की शादी सख्त नामंजूर थी आशा की मां को.  इधर आरडी की मां ने भी कह दिया ये शादी नहीं हो सकती. और फिर दोनों की ज़िंदगी में एक लम्बे इंतज़ार के बाद आया प्यार वाली शादी का दिन.  . 

प्यार भरे साथ के 14 साल 

 छोटी और सुन्दर थी आशा और आरडी के रोमांस की कहानी. ज़िंदगी के एक लम्बे दौर के बाद जब साथ रहने का वक्त आया तो उस का दायरा सिर्फ चौदह सालों का था. वर्ष 1954 आया और पंचम दा ने आशा और दुनिया -दोनों को अलविदा कह दिया. परंतु आशा भोसले की ज़िंदगी की संगीतमय कहानी की यात्रा जितनी भी रही, बहुत खूबसूरत रही. बागी आशा और भी निखर गई पंचम दा के बागी संगीत के साथ.  

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