नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो की उस याचिका पर सुनवाई करने के लिए नई पीठ का जल्द गठन करने के अनुरोध को बुधवार को खारिज कर दिया, जिसमें उससे (बिलकिस से) सामूहिक दुष्कर्म के मामले में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों की सजा माफ करने को चुनौती दी गयी है.
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की जल्द सुनवाई की अपील
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ से बानो की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने अनुरोध किया कि मामले पर सुनवाई के लिए एक अन्य पीठ का गठन किए जाने की आवश्यकता है.
सीजेआई ने कहा, 'रिट याचिका को सूचीबद्ध किया जाएगा. कृपया एक ही चीज का जिक्र बार-बार मत करिए. यह बेहद चिढ़ पैदा वाली बात है.' अधिवक्ता ने कहा कि याचिका मंगलवार के लिए सूचीबद्ध थी, लेकिन इस पर सुनवाई नहीं की गई. सीजेआई ने कहा कि इसे सूचीबद्ध किया जाएगा.
जस्टिस त्रिवेदी ने खुद को कर लिया था अलग
सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बेला एम. त्रिवेदी ने मंगलवार को बानो द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया था. न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अगुवाई वाली पीठ ने आदेश दिया था, 'यह मामला एक ऐसी पीठ के समक्ष रखा जाए, जिसमें हम में से एक न्यायाधीश शामिल नहीं हो.'
हालांकि, उन्होंने न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी के सुनवाई से खुद को अलग करने के पीछे किसी कारण का उल्लेख नहीं किया. सीजेआई को अब बानो के मामले की सुनवाई के लिए एक नई पीठ का गठन करना होगा जिसमें न्यायमूर्ति त्रिवेदी शामिल न हो.
बानो ने सुप्रीम कोर्ट एक और याचिका दायर की है जिसमें उसने 11 दोषियों की सजा माफ करने की अर्जी पर गुजरात सरकार से विचार करने के लिए कहने संबंधी आदेश की समीक्षा का अनुरोध किया है. समीक्षा याचिका को भी मंगलवार को न्यायमूर्ति रस्तोगी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ के समक्ष विचार के लिए पेश किया गया था.
जनहित याचिकाओं पर पहले से ही हो रही सुनवाई
समीक्षा याचिका पर आदेश अभी अपलोड नहीं किया गया है. शीर्ष न्यायालय दोषियों की रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाउल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की जनहित याचिकाओं पर पहले से ही सुनवाई कर रहा है.
गुजरात सरकार ने मामले में सभी 11 दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें इस साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था. बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी.
मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी थी
घटना के वक्त बानो की उम्र 21 साल थी और वह पांच महीने की गर्भवती थी. मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी और सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे की सुनवाई महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित की थी.
मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. बाद में बंबई उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी सजा बरकरार रखी थी. मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोग 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से रिहा हुए थे. गुजरात सरकार ने राज्य की सजा माफी नीति के तहत इन दोषियों को रिहा करने की अनुमति दी थी.
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