नई दिल्ली: दिल्ली के शालीमार बाग इलाके में शनिवार शाम एक दो मंजिला मकान में आग लगने की घटना से पूरे इलाके में कोहराम मच गया. और हर तरफ मदद के लिए सिर्फ चीख-पुकार सुनाई दे रही थी. मकान में आग लगने से तीन लोगों की मौत हो गई.
हादसे में 3 बुजुर्ग महिलाओं की मौत
जिस वक्त ये आग लगी, उस वक्त घर में परिवार के 7 लोग मौजूद थे. जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस और फायर ब्रिगेड की टीम ने छत का दरवाजा तोडकर लोगों को बाहर निकाला. पड़ोस के रहने वाले एक परिवार ने जैसे ही बिल्डिंग से आग की लपटें और धुआं निकले देखा तो लोग फौरन बिल्डिंग में पहुंचे और दमकलकर्मियों की मदद से आग में फंसे लोगों का रेस्क्यू किया.
फायर ब्रिगेड की 7 गाड़ियों ने आग पर तो काबू पा लिया. लेकिन अफसोस इस भीषण अग्निकांड में तीन बुजुर्ग महिलाओं की मौत हो गई. जिसमें 75 साल की कान्ता देवी, 65 साल की किरन, और 42 वर्षीय सोमवती ने इलाज के दौरान अस्पताल में दम तोड़ दिया. जबकि 4 अन्य लोग घायल बताए जा रहे हैं, जिनका फोर्टिस अस्पताल में इलाज चल रहा है. शुरुआती जांच में आग लगनी की वजह शॉर्ट सर्किट बताई जा रही है, जिसकी जांच जारी है.
राजधानी दिल्ली में आग का तांडव
बीते 8 दिसंबर को दिल्ली के रानी झांसी रोड स्थित अनाज मंडी इलाके में भी देखने को मिला. जब एक चार मंजिला प्लास्टिक की अवैध फैक्ट्री में आग के शोलों में 43 लोगों की जिंदगी स्वाहा हो गई. इस आग की चपेट में आसपास की दो और इमारतें आ गई थीं.
कैसे राजधानी दिल्ली का हर कोना सुलगते आग के ढेर पर बैठा है इसकी तस्वीरें कई बार सामने आ चुकी हैं. हर बार लापरवाही की एक चिंगारी ने अग्निकुंड में ना जाने कितनी जिंदगी झोंक डाली. आंकड़ों पर नजर डालें तो देश की राजधानी में आग ने सबसे खौफनाक तांडव आज से 22 साल पहले मचाया था.
आंकड़ों ती जुबानी, दिल्ली में अग्निकांड की कहानी
13 जून 1997 का वो मनहूस दिन जब दिल्ली के ग्रीन पार्क नगर इलाके में बने उपहार सिनेमा में देखते ही देखते 59 लोग राख हो गए. जबकि 103 से ज्यादा लोग झुलस गए थे. इसी तरह पिछली साल 12 फरवरी 2018 को नरेला में जूता फैक्ट्री में अग्निकांड में लाखों का सामान जलकर राख हो गया. 29 मई, 2018 को दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में रबर गोदाम में आग लगने की घटना सामने आई थी. जबकि 14 नवंबर, 2018 को बवाना में कॉस्मेटिक फैक्ट्री में आग लगने से अफरातफरी मच गई थी.
इस साल 12 फरवरी को करोलबाग में होटल अर्पित पैलेस में आग की घटना सामने आई थी. इस हादसे में 17 लोगों की मौत हो गई थी. जबकि 13 फरवरी, 2019 को दिल्ली के पश्चिमपुरी में 250 झुग्गियों में आग लग गई थी, जिसमें एक महिला की मौत हो गई. तो वहीं 14 फरवरी, 2019 को नारायणा इलाके में आर्चीज कार्ड बनाने वाली फैक्ट्री में आग की घटना सामने आई. इसी साल बीते 17 अगस्त को एम्स में भी आग की डरावनी लपटें देखने को मिलीं. हालांकि गनीमत रही कि इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ.
जलती रहती है दिल्ली!
राजधानी दिल्ली के ये आंकड़े डरावने वाले हैं. बावजूद इसके सरकार और प्रशासन कोई सबक नहीं लेता. फायर सेफ्टी नियमों को ताक पर रखकर लोगों की जिंदगी से किस तरह खिलवाड़ किया जाता है. आंकड़े बताते हैं कि 35 सालों में दिल्ली में करीब 30 हजार बिल्डिंगों को एनओसी दी गई है. इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात है कि दिल्ली की कितनी इमारतें एनओसी लेने वाली बिल्डिंग या स्ट्रक्चर के दायरे में आती हैं. उन्हें एनओसी लेनी चाहिए. इसका आंकड़ा फायर डिपार्टमेंट के पास उपलब्ध ही नहीं है.
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सरकार हर बार मुआवजे का मरहम लगाकर और जांच की बात कहकर पल्ला झाड़ लेती है लेकिन जो सवाल हर बार पीछे छूट जाते हैं. वो ये कि आखिरकार आग के ढेर पर दिल्ली कब तक यूं ही जलती रहेगी.
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