Ground Report: धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में आरक्षित वर्ग को बंधी विकास की उम्मीद

5 अगस्त 2019 की तारीख कश्मीर के इतिहास में दर्ज की जाएगी. इसी दिन कश्मीर को भारत की मुख्य भूमि से काटने वाली अन्यायपूर्ण धारा खत्म की गई थी. इसकी वजह से कश्मीर के कमजोर तबकों को आरक्षण की व्यवस्था का लाभ नहीं मिल पा रहा था. लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं. ज़ी मीडिया की टीम ने कश्मीर के दौरे में पाया कि 370 हटने के बाद कश्मीर के आरक्षित वर्ग को अपने विकास की उम्मीद बंधने लगी है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 14, 2020, 05:13 PM IST
    • धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में बदलाव की बयार
    • आरक्षित वर्ग को बंधी उम्मीदें
    • पहले धारा 370 की वजह से आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता था
    • लेकिन धारा 370 हटने के बाद केन्द्र सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिलेगा
Ground Report: धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में आरक्षित वर्ग को बंधी विकास की उम्मीद

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर में आरक्षित वर्ग की स्थिति वैसी ही है, जैसी कि देश के बाकी हिस्सों की है. लेकिन जहां बाकी जगहों पर उन्हें कानून के तहत संरक्षण प्रदान किया जाता है और आगे बढ़ने के अवसर दिए जाते हैं. वहीं कश्मीर में 5 अगस्त 2019 के पहले तक ऐसा कर पाना संभव नहीं था. क्योंकि धारा 370 के कारण वहां आरक्षण के प्रावधान लागू नहीं हो सकते थे. लेकिन अब इस अन्यायपूर्ण कानून के हटा दिए जाने के बाद स्थितियां बदलने लगी हैं. अब जम्मू कश्मीर में भी आरक्षित वर्ग के लिए उम्मीदों का नया सवेरा आ चुका है.

कश्मीरी कुम्हार समुदाय ने बताई अपनी अपेक्षाएं
जम्मू कश्मीर में भी देश के बाकी हिस्सों की तरह ही कुम्हार का चाक घूमते हुए खूबसूरत बर्तनों का निर्माण करता है. लेकिन यहां खूबसूरत बर्तन गढ़ते लोगों को पता ही नहीं है कि सरकार ने उन लोगों के लिए खास योजनाएं बना रखी हैं.

ज़ी हिंदुस्तान की टीम ने जम्मू कश्मीर के बडगाम जिले के गांव खीड़ीकुंड का दौरा किया. यहां बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की बस्ती आबाद है. जिन्हें कश्मीरी भाषा में कराल कहा जाता है. यहां हमें मिले मोहम्मद आरिफ जिनसे हमारी टीम ने बात की.

ज़ी मीडिया ने मोहम्मद आरिफ से पूछा कि आपके तबके को पूरे देश में आरक्षण की सुविधा मिलती है. क्या आपको कभी फायदा मिला

इस प्रश्न के जवाब में मोहम्मद आरिफ ने बताया कि उन्हें इस बारे में अभी तक कुछ पता ही नहीं. वह 12वीं पास हैं. उन्होंने कुछ नौकरियों के लिए फॉर्म भी भरे थे. लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई. वह बेहद गरीबी में जीवन बिताने के लिए विवश हैं.

आरिफ ने ज़ी मीडिया की टीम को बताया कि वे यहां बहुत सालों से रह रहे हैं. लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिल पाया. क्योंकि बाहर से कुछ भी हुआ तो वह उनके पास तक नहीं पहुंच पाया. अब हम गुजारिश करते हैं सरकार से जो कुछ भी हो, हमारे लिए किया जाए.  जिससे हम आगे बढ़ सकें. हम ऐसे ही बड़े हुए हैं, हमने पढ़ाई भी की. लेकिन रोजगार नहीं आज तक मिला. ,

खास बात ये है कि आरिफ ने कभी आरक्षण की व्यवस्था के बारे में सुना ही नहीं था. उन्होंने ज़ी मीडिया की टीम को बताया कि 'इसके बारे में उन्हें किसी ने भी नहीं बताया. वे पहली बार सुन रहे हैं कि आरक्षण के बारे में. उन्हें किसी ने भी नहीं बताया कि आरक्षण जैसी व्यवस्था भी की गई है.

गांव खीड़ीकुंड के लोग धारा 370 हटाए जाने से खुश हैं. उन्हें लगता है कि सरकार की योजनाओं का फायदा उन्हें भी मिलेगा. यहां के निवासियों ने साफ तौर पर बताया कि उनके पहले के जन प्रतिनिधि बस वोट लेने के लिए उनके पास आते थे.

जम्मू कश्मीर में हाशिए पर बसे इन समुदायों को कभी भी विकास परियोजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया. लेकिन अब विकास की बयार इस इलाके में महसूस होने लगी है.

चरवाहा समुदाय को भी उम्मीदें
जम्मू कश्मीर में चरवाहा समुदाय वहां की खूबसूरत वादियों में अपनी भेड़ बकरियों और जानवरों के साथ घूमते रहते हैं. ज़ी मीडिया की टीम ने इन लोगों के बात की और धारा 370 हटने और आरक्षण पर इन सभी से चर्चा की.

यहां गुलजार अहमद नाम के शख्स को भी पता नहीं था कि कमजोर तबकों के लिए आरक्षण जैसी व्यवस्था भी होती है. उन्होंने शिकायत की है कि वह जो चावल 320 रुपए में खरीदते हैं. उसे वास्तव में 110 रुपए में गरीबों को मिलना चाहिए. 

लोहार समुदाय की मुश्किलें
जम्मू कश्मीर में लोहार समुदाय को एहंगर कहा जाता है. लोहार जाति को पूरे देश में आरक्षण की सुविधा मिली हुई है. ज़ी मीडिया की टीम मोहम्मद खालिब की लोहे की दुकान पर पहुंची. जिनकी उम्र 70-75 वर्ष है. उन्हें धारा 370 हटाए जाने के बाद विकास की उम्मीद है. हालांकि वह भी आरक्षण के बारे में नहीं जानते थे.
इस दुकान पर ज़ी मीडिया की टीम की मुलाकात मुद्दशीर नाम के शख्स से हुई. जो कि साफ सफाई का काम करते हैं. इन्हें कश्मीरी में गनाई कहा जाता है. वे आरक्षण की व्यवस्था से परिचित तो हैं, वह जानते हैं कि देश के बाकी हिस्सों में उनके जैसे वंचित तबके को आरक्षण मिलता है. लेकिन यह व्यवस्था कश्मीर में अब तक लागू नहीं थी.

खास बात ये है कि देश के बाकी हिस्सों की तर्ज पर मुद्दशीर अनुसूचित जाति में आते  हैं. उन्होंने डिप्लोमा किया हुआ है. लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिलता. उन्होंने बताया 'हमे कुछ नहीं पता हैं बस इसी के बजह से हम कुछ नहीं कर रहे हैं.'
मुद्दशीर को शक है कि राज्य के दूसरे हिस्सों में रहने वालों को आरक्षण का लाभ मिलता है. लेकिन उन्हें नहीं प्राप्त होता.

महिलाओं को भी आरक्षण का लाभ नहीं
ज़ी मीडिया की टीम की मुलाकात राजा बीबी से हुई. जो कि गांव की चुनी हुई प्रतिनिधि हैं. लेकिन वह खुद कभी किसी विकास परियोजना का लाभ नहीं उठा पाईं. उनके पति का देहांत हो चुका है. वह अपने दो बच्चों के साथ रहती हैं. उनका बिजली का बिल 1.5 लाख रुपए आया है. जिसको लेकर वह काफी परेशान दिखीं.
जम्मू कश्मीर के अलावा देश के दूसरे हिस्से की महिलाओं को पंचायती व्यवस्था में आरक्षण का लाभ मिलता है. लेकिन राजा बीबी इस बारे में जानती तक नही हैं.

आतंकवाद के नाम पर भ्रष्टाचार पर डाला गया पर्दा
ज़ी मीडिया की टीम ने जम्मू कश्मीर के सुदूरवर्ती इलाकों में जाकर लोगों से बात की. जिसका नतीजा ये निकल कर आया कि वहां के हुक्मरानों ने आतंकवाद और अलगाववाद को अपने भ्रष्टाचार को छिपाने का हथियार बना लिया था.

आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर भ्रष्टाचार को छुपाया गया.  इस हंगामें के बीच उन लोगों की आवाज़ कभी सामने नही आने दी गई. जिन्हें सरकारी मदद की सबसे ज्यादा जरुरत थी.
हमारी मुलाकात बुनकरों के एक परिवार से हुई. यहां के बच्चे कमाल की कारीगरी जानते हैं. लेकिन उन्हें उनकी काम की सही कीमत नहीं मिल पाती है.

यहां हमारी मुलाकात दिलशाद नाम की एक बच्ची से हुई. जिसने 10वीं तक पढ़ाई कर रखी थी. उन्हें 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. क्योंकि उनके परिवार के पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं थे.

दिलशाद बताती हैं कि जब वह पढ़ाई करती थीं तो सब कुछ अपने पैसों से सब कुछ खरीदना पड़ता था. लेकिन आज सब कुछ मिलता है. यूनिफॉर्म. किताबें, कॉपी पेंसिल वगैरह वगैरह. लेकिन अब सब कुछ सरकार की तरफ से छात्रों को दिया जाता है.

पढ़ाई छोड़ने के बाद दिलशाद पश्मीना शाल बुनने का काम करती हैं. लेकिन उन्हें इसका भी सही पैसा नहीं मिल पाता है. जो पश्मीना शाल कश्मीर के बाहर 10 हजार की बिकती है. उसके बनाने वालों को मात्र 500 रुपए दिए जाते हैं. ये 370 हटने का नतीजा है.

जम्मू कश्मीर में ऐसे बहुत सारी जनहित की योजनाएं थी जो यहां से अब तक दूर रहीं. बहुत सारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचने ही नहीं दिया गया. लेकिन अब सबको उम्मीद है कि धारा 370 हटाए जाने के बाद पूरे देश की तरह जम्मू कश्मीर में हर व्यक्ति को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा.

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