Ground Report: 370 हटने के बाद बदल रहा है कश्मीर, लिखी जा रही है विकास की इबारत

कश्मीर से धारा 370 को हटे हुए सात महीने हो चुके हैं. 5 अगस्त 2019 को कश्मीर को गर्त में धकेलने वाली यह धारा खत्म की गई थी. इसके बाद से अब तक वहां की नदियों में बहुत पानी बह चुका है. आम कश्मीरियों को भी धारा 370 हटाए जाने के बाद बदलता हुआ माहौल  साफ दिखाई देने लगा है. हालात का जायजा लेने के लिए पहुंची ज़ी मीडिया की टीम ने पाया कि कश्मीर की वादियों में बदलाव की सुखद बयार बहनी शुरु हो गई है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 5, 2020, 06:24 PM IST
    • धारा 370 हटने के बाद क्या है कश्मीर का हाल
    • ज़ी मीडिया की खास रिपोर्ट
    • जमीनी स्तर पर लिया हालात का जायजा
    • लोगों तक पहुंच रही हैं विकास की परियोजनाएं
    • आम लोग हैं बेहद खुश
    • महिलाओं के जीवन में आया बदलाव
    • विकास के लिए पैसा सीधा लोगों तक पहुंचा
Ground Report: 370 हटने के बाद बदल रहा है कश्मीर, लिखी जा रही है विकास की इबारत

श्रीनगर: आजादी के बाद से 72 सालों तक जम्मू कश्मीर धारा 370 की वजह से अलगाव का शिकार रहा. कश्मीरियत के नाम पर देश इस सिरमौर राज्य को विकास से दूर रखा गया. आम जनता के हिस्से का पैसा स्थानीय नेताओं ने लूट खाया. लेकिन भारतीय संसद ने धारा 370 को हटाकर कश्मीर में से एक प्रशासनिक हिस्सा लद्दाख अलग कर दिया. इसके अलावा  राज्य विधानसभा को अस्थायी रुप से भंग करके दोनों हिस्सों को केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना दिया.
मोदी सरकार की ये सोच बेहद दूरदर्शी थी. इस बात के संकेत तब दिखाई दिए, जब ज़ी मीडिया की टीम जमीनी हालात का जायजा लेने जम्मू कश्मीर पहुंची.

जनता के लिए भेजे गए पैसों का होने लगा सही इस्तेमाल
ज़ी मीडिया की टीम जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा पहुंची. जहां हमारी मुलाकात हुई वहां के सरपंच अब्दुल लतीफ ताश से. वह पिछले 5 बार से लगातार जीत हासिल कर रहे हैं. वह अपने इलाके के विकास के लिए हमेशा बेचैन रहते हैं. अपने गांव में रहने वाले लोगों तक सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने के लिए लतीफ साहब हमेशा से जद्दोजहद करते रहे.

लेकिन अब धारा 370 हटने के बाद उनकी उम्मीदें पूरी होनी शुरु हुई हैं. अब्दुल लतीफ साफ तौर पर जम्मू कश्मीर पर पहले शासन करने वाले मुफ्ती और अब्दुल्ला खानदान पर आरोप लगाते है. उनका कहना था कि 'यहां सबका खानदानी राज चला है ना जो हमको डुबा के रख दिया. कुछ नहीं करने दिया. करते तो हम भी आगे जाते ना..हमारे बच्चे इतना पढ़ने वाले हैं लेकिन हम सबसे जीरो हैं.'

धारा 370 हटने की बात पर अब्दुल लतीफ कहते हैं कि 'जो हुआ सबसे अच्छा हुआ साहब. जो भी हुआ अच्छा हुआ. अब हर किसी को हर सुविधा मिलेगी. काम होगा, नौकरी लगेगी. हर बजट बनेगा. जो मोदी जी ने पिछले साल हमारी मीटिंग की थी, श्रीनगर में सरपंचों की बैठक में उन्होंने बोला था कि आपने फार्म भरा, इसका आपको फायदा मिलेगा. 20 लाख रुपए मेरे पास आ गए काम करने के लिए'

अब्दुल लतीफ ने एक बात स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वह अपने इलाके और बच्चों के भविष्य के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे. चाहे इसके लिए उन्हें जान के खतरे का सामना ही क्यों न करना पड़े.

इस खबर का वीडियो यहां देखें-

विकास के नाम पर भ्रम फैलाया जाता रहा
पूरे देश में शिक्षा का अधिकार है. लेकिन कश्मीर में माहौल अलग था. यहां बच्चों का आठवीं दसवीं बारहवीं में स्कूल छोड़ देना आम हो गया था. ज़ी मीडिया की टीम सूबे के एक पिछड़े हिस्से कुपवाड़ा पहुंची. जहां कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी. खुद को कश्मीर के हर बाशिंदे का रहनुमा कहने वाले खानदानी नेताओं ने कभी इस इलाके में सड़क ,पानी , बिजली , शिक्षा , रोजगार अस्पताल के बारे में नहीं सोचा. बस एक भ्रम फैलाये रखा.

इस बात की गवाही देते हैं रहमत शाह. जिनकी उम्र लगभग 50 साल होगी. उन्होंने ज़ी मीडिया को बताया कि 'कुछ नहीं हमने यहीं पर पहाड़ी देखी. यहां पर कोई अफसर नहीं आया. कुछ नहीं आया. हमारे सरपंच साहब हैं वो थोड़ा इधर उधर करते हैं. हमारे पास कोई मुलाजिम नहीं कोई अफसर नहीं. कुछ नहीं..हमें पानी नहीं अस्पताल नहीं हैं...यहां बिजली नहीं स्कूल नहीं हैं...कोई टीचर नहीं आता. हम बहुत ज्यादा परेशान हैं'.

ज़ी मीडिया की टीम ने 12वीं के एक छात्र रियाज अहमद से भी बात की. जो रोजगार के लिए परेशान हो रहे हैं. उनकी शिकायत है कि सरकारी योजनाओं के बारे में उन्हें किसी तरह की कोई जानकारी कभी नहीं दी गई. 

हिंसा का रास्ता छोड़ चुके आतंकवादी हैं खुश
जम्मू कश्मीर की एक बड़ी समस्या आतंकवाद थी. ज़ी मीडिया की टीम एक ऐसे शख्स से मिली, जिन्होंने हिंसा का रास्ता अख्तियार कर लिया था. लेकिन बाद में उन्होंने बंदूक छोड़ दी. वह कश्मीर से धारा 370 हट जाने से बेहद खुश दिखे.

उन्होंने अपनी पिछली करतूतों पर अफसोस जाहिर किया. उनका कहना था कि 'जिस बहकावे में हम चले गए थे, हम छोटे थे उस वक्त हमारी नादानी थी उस वक्त जो की हमने गलत रास्ता चुना था. हम सुबह को भूल गए लेकिन शाम को लौट आए. क्योंकि हम अमन चाहते हैं हमारी आने वाले नस्ले जो हैं वो उस तरह से जिंदगी बिताए जिस तरह से वो पहले बिताया करते थे'.

उनका साफ कहना था कि उन्हें आतंकी बनाने के लिए पैसों को लालच दिया गया था.  उन्हें धारा 370 हटने से बेहद उम्मीदें हैं. उन्होंने कहा कि 'हम बहुत उम्मीद करके बैठे हैं कि ये अभी जो पंचायती राज आया हैं इसमें काफी कुछ तरक्की करने का मौका मिलेगा. लेकिन इसमें कुछ अड़चने पैदा होती हैं,  यहां की एडमिनिस्ट्रेशन हैं, यहां की मुलाजिम हैं, वो ये नहीं चाहते हैं कि यहां की पंचायत राज,आगे बढ़े वो हर जगह रुकावटें खड़ी करती हैं'.
इस भूतपूर्व आतंकवादी का साफ कहना था कि अब माहौल बदल रहा है.

इस खबर का वीडियो यहां देखें-

महिलाओं की उम्मीदें चढ़ी परवान
कश्मीर में हाल ही में सरपंच और बीडीसी के चुनाव हुए जिसमें महिलाओं ने भी हिस्सा लिया. ऐसी ही एक महिला हैं आरफा जो पीओके की रहने वाली थी शादी के बाद हिंदुस्तान आयी और चुनावों में हिस्सा लिया और सरपंच बनी. उधर आइशा नाम की एक और महिला ने बीडीसी का चुनाव लड़ा और जीता.

ज़ी मीडिया से बातचीत में इन महिलाओं ने बताया कि 'हमें उम्मीद भी हैं कि हमारे जो प्रधानमंत्री हैं वो कर सकते हैं. यहां पर तो लोगों को बहुत उम्मीद हैं. वैसे हम भी चाहते हैं कि यहां पर बदलाव आना चाहिए. एजुकेशन की भी बहुत ज्यादा कमी है. हमारे बच्चों को बहुत ज्यादा दूर जाना पड़ता हैं. पानी का मसला बहुत ज्यादा है.रोड का बहुत ज्यादा हैं'.

इन महिलाओं ने बच्चियों की शिक्षा का मसला प्रमुखता से उठाया. उनका कहना था कि 'लड़के तो फिर भी दूर जा सकते हैं, लड़कियां नहीं पढ़ सकती हैं. 10-12 क्लास पढ़ कर के फिर घर में ही बैठ जाती हैं. इस वजह से उनको बहुत ही मुश्किल होती हैं.

जब ज़ी मीडिया ने उनसे पूछा कि धारा 370 हटने का क्या फर्क पड़ा है तो उनका जवाब था कि 'फर्क तो पड़ा हैं बहुत ज्यादा पड़ा हैं. लेकिन इससे ज्यादा पड़ना चाहिए. लोगों को उम्मीदें भी बहुत हैं. मैं खुश भी हूं, मैं बनी सरपंच और दूसरा मैं लोगों के लिए बहुत खुश हूं कि गवर्नमेंट हमारी बात सुनती हैं और काम भी लोगों के लिए करती हैं. बहुत खुश हूं कि यहां पर आकर के हिंदुस्तान में मैं सरपंच भी बनी.

जम्मू कश्मीर में आज लोग विकास की बात करने लगे हैं. उन्हें उम्मीद है कि उन्हें कश्मीर में उस सिस्टम से आज़ादी मिलेगी जिसने खूबसूरत वादी को ग़ुरबत के अँधेरे में डाले रखा. उस सिस्टम से उन्हें निजात मिलेगी जिसने बच्चों को अच्छी शिक्षा से दूर रखा. उनको उन सियासतदानों से भी छुटकारा मिला जिनकी जेबें भरती रही और आम कश्मीरी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझता रहा. जिहोने कश्मीर को अलग होने के भ्रम में रखा.

रमन ममगई की रिपोर्ट

ये भी पढ़िए--कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ आखिरी जंग, दो आतंकी मारे गए, एक गिरफ्तार

ये भी पढ़िए--जम्मू कश्मीर का नया सरकारी कैलेंडर जारी, शेख अब्दुल्ला जयंती पर अवकाश खत्म

ये भी पढ़िए--कश्मीर घाटी के लोगों के लिए खुशखबरी, सोशल मीडिया पर लगा बैन हटा

 

ट्रेंडिंग न्यूज़