Bharat Bandh Protest: क्रीमी लेयर क्या है, जिसके विरोध में सड़कों पर उतरे दलित-आदिवासी, झारखंड से राजस्थान तक बुरा हाल

What is Creamy Layer: सर्वोच्च न्यायालय ने 1 अगस्त, 2024 को दिए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट शब्दों में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के प्रावधान में क्रीमी लेयर की अवधारणा को शामिल किया जा सकता है. क्रीमी लेयर को कैसे समझा जाए?

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Aug 21, 2024, 03:25 PM IST
  • क्रीमी लेयर क्या है?
  • क्रीमी लेयर पर मोदी सरकार ने क्या कहा?
Bharat Bandh Protest: क्रीमी लेयर क्या है, जिसके विरोध में सड़कों पर उतरे दलित-आदिवासी, झारखंड से राजस्थान तक बुरा हाल

Bharat Bandh 2024, August 21:  क्रीमी लेयर क्या है? इसे कैसे समझा जाए और इस श्रेणी में कौन-कौन लोग आते हैं? क्या डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा द्वारा बनाए गए संविधान में क्रीमी लेयर का प्रावधान था?  ये कई सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशने हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में बुधवार, 21 अगस्त को भारत बंद बुलाया गया है.

सर्वोच्च न्यायालय ने 1 अगस्त, 2024 को दिए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट शब्दों में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के प्रावधान में क्रीमी लेयर की अवधारणा को शामिल किया जा सकता है.

क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने अपने 6-1 के फैसले में राज्यों को एससी और एसटी श्रेणियों के भीतर उप-श्रेणियां बनाने की अनुमति दी ताकि इन श्रेणियों के भीतर सबसे पिछड़े समुदायों को संरक्षित किया जा सके. पीठ ने यह भी कहा कि एससी और एसटी श्रेणियों को आरक्षण प्रदान करने के मामले में क्रीमी लेयर की अवधारणा को पेश किया जा सकता है.

क्रीमी लेयर क्या है?
क्रीमी लेयर एक शब्द है जिसका इस्तेमाल ओबीसी या अन्य पिछड़ा वर्ग के पिछड़े वर्ग के उन सदस्यों के लिए किया जाता है जो आर्थिक और शैक्षणिक रूप से समाज में उन्नत स्तर पर पहुंच गए हैं. इस वर्ग से संबंधित लोग सरकार द्वारा प्रायोजित शैक्षिक और व्यावसायिक लाभ कार्यक्रमों के लिए पात्र नहीं हैं.

क्रीमी लेयर में कौन आता है?
सत्तनाथन समिति ने 1971 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जिनकी वार्षिक आय 100,000 रुपये है, उन्हें क्रीमी लेयर में शामिल किया जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में एक भारतीय सरकारी कार्यालय ज्ञापन का हवाला देते हुए इंद्रा साहनी मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले में 'क्रीमी लेयर' को परिभाषित किया. अदालत द्वारा क्रीमी लेयर के लिए 100,000 रुपये की तय सीमा को 2004 में बढ़ाकर 250,000 रुपये, 2008 में 450,000 रुपये, 2013 में 600,000 रुपये और 2017 में 800,000 रुपये कर दिया गया.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने 2015 में इसे और बढ़ाकर 15,00,000 रुपये करने का प्रस्ताव रखा. क्रीमी लेयर वर्गीकरण केवल ओबीसी से संबंधित लोगों के लिए है. अब सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त 2024 को 6-1 के ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि इस अवधारणा को एससी और एसटी के लिए आरक्षण में भी शामिल किया जाना चाहिए.

क्रीमी लेयर: किन्हें नहीं मिलता लाभ?
सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में कहा था कि राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, एक निश्चित स्तर से ऊपर के केंद्रीय और राज्य नौकरशाही के कर्मचारियों, केंद्र सरकार के कर्मचारियों और कर्नल के पद से ऊपर के सशस्त्र बलों और अर्धसैनिक बलों के सदस्यों जैसे संवैधानिक पदाधिकारियों के बच्चों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि व्यापार, उद्योग और पेशे से जुड़े लोगों जैसे डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आयकर सलाहकार, वित्तीय या प्रबंधन सलाहकार, डेंटल सर्जन, इंजीनियर, कंप्यूटर विशेषज्ञ, फिल्म कलाकार और अन्य फिल्म पेशेवर, लेखक, नाटककार, खिलाड़ी, खेल पेशेवर, मीडिया पेशेवर या किसी अन्य पेशे से जुड़े लोगों के बच्चे जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपये से अधिक है, इन्हें भी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.

क्रीमी लेयर: मोदी सरकार ने क्या कहा?
जम्मू-कश्मीर, झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के बढ़ते गुस्से को देखते हुए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह कहा कि बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार संविधान में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुई कैबिनेट बैठक में भी यही बात दोहराई गई.

भारत बंद को मिलाजुला समर्थन
भारत बंद के कारण ओडिशा, झारखंड, बिहार और अन्य राज्यों के कुछ हिस्सों में रेलवे और सड़क सेवाएं बाधित हुईं. राजस्थान, केरल और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में स्कूल, बाजार, दुकानें और अन्य सेवाएं बंद रहीं. बिहार के पटना में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया. इस बीच, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, बसपा नेता मायावती और कई कांग्रेस नेताओं ने आज होने वाले भारत बंद को अपना समर्थन दिया है.

पीटीआई के अनुसार, राजस्थान के कुछ जिलों में दुकानें और स्कूल बंद हैं. बंद के आह्वान के कारण भरतपुर में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद हैं. कुछ इलाकों में बसों की कम उपलब्धता के कारण लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ा.

अधिकारियों के अनुसार, जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर, भरतपुर, अलवर, सीकर, भीलवाड़ा, डीग, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, टोंक, नीम का थाना, कोटा, श्रीगंगानगर और चित्तौड़गढ़ में जिला कलेक्टरों ने प्रशासन को स्कूल और कोचिंग सेंटर बंद करने का निर्देश दिया है.

झारखंड में सार्वजनिक बसें सड़कों से नदारद रहीं और स्कूल बंद रहे. रांची और राज्य के अधिकांश हिस्सों में कई स्कूल बंद रहे, जबकि कई लंबी दूरी की सार्वजनिक बसें बस स्टैंड पर खड़ी देखी गईं.

समाचार एजेंसियों ने बताया कि बंद के आह्वान के कारण असम में कोई प्रभाव महसूस नहीं किया गया. ओडिशा में पुलिस अधिकारियों ने कहा कि सरकारी कार्यालय, बैंक, व्यावसायिक प्रतिष्ठान और शैक्षणिक संस्थान सामान्य रूप से काम कर रहे हैं.

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