नई दिल्ली: मोदी सरकार में पहले शीतकालीन सत्र का सबसे बड़ा बिल नागिरकता संशोधन विधेयक पास करा लिया गया है. इस विधेयक को सरकार ने कितनी प्राथमिकता दी है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बिल को लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पास करा लिया गया है और अब इसपर राष्ट्रपति ने भी मुहर लगा कर लागू करने को हरी झंडी दिखा दी है. लेकिन समस्या तो अब सामने आ रही है.
एक-एक कर के इस बिल के विरोध में आ रहीं पार्टियों ने इसे अपने राज्य में लागू न करने का बिगुल फूंक दिया है. पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो फिर केरल के पिनाराई विजयन ने और अब पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इस समूह में अपना नाम दर्ज करा लिया है.
पंजाब और केरल राज्यों में नहीं करेंगे CAB को लागू
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कार्यालय ने जानकारी दी कि वे इस बिल का विरोध करते हैं. राज्य में इस विधेयक को लागू नहीं किया जाएगा. यह बिल भारत के पंथ-निरपेक्ष छवि को धूमिल कर देने वाला है. इसलिए कानून को पंजाब में लागू ही नहीं किया जाएगा.
Punjab Chief Minister's Office: Terming the Citizenship Amendment Bill (CAB) as a direct assault on India’s secular character, Punjab Chief Minister Captain Amarinder Singh today said his government would not allow the legislation to be implemented in his state. (File pic) pic.twitter.com/KLR79WVKZH
— ANI (@ANI) December 12, 2019
इससे पहले केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने इस बिल को सांप्रादायिक आधार पर बांटने वाली विधेयक के रूप में बता दिया. उन्होंने कहा कि यह हमारी पंथ निरपेक्षता को नुकसान पहुंचाता है. और इसे हड़बड़ी में लोकसभा से पास करा लिया गया है.
केरल के मुख्यमंत्री आगे कहते हैं कि इस बिल में जो भी प्रावधान हैं वह धर्म के हिसाब से भेदभाव वाले हैं. भारतीय संविधान सभी नागरिकों को बराबरी का हक देता है. किसी भी आधार पर चाहे वह जाति हो, भाषा हो, संस्कृति, लिंग या पेशा हो वह बांटने की बात ही नहीं करता. लेकिन नागरिकता संशोधन बिल अधिकारों के खिलाफ और संविधान को नकारने वाला बिल है.
बंगाल में ममता दी भी बिल के भारी विरोध में हैं
इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी राज्य में लागू न होने देने की बात कही है. उन्होंने कहा कि भाजपा की इस धार्मिक आधार पर बांटने वाली राजनीतिक बिल को प्रदेश में लागू नहीं करेंगी. उन्हें मुस्लिमों की चिंता है. मुस्लिमों की या मुस्लिम वोट बैंक की, इसका जवाब फिलहाल किसी ने नहीं दिया और सीधे तौर पर कोई देगा भी नहीं.
Derek O'Brien, TMC: This government only makes big promises but all their promises fail. Mamata Di has stated clearly that NRC and CAB will not be implemented in West Bengal. pic.twitter.com/yF5zNjMjHJ
— ANI (@ANI) December 11, 2019
अब सवाल यह है कि आखिर इस बिल पर इतना हंगामा क्यों बरपा है? और अगर बरपा है तो क्या जितनी भी पार्टियां इसके विरोध में आईं हैं, वह मुस्लिम हितैषी हैं या बस चोला पहन कर राजनीतिक ऊल्लू सीधा कर रही हैं ?
क्या है प्रावधान जिसका हो रहा विरोध ?
मालूम हो कि बिल में भारत के इस्लामिक पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम आबादी को भारतीय नागरिकता दिए जाने का प्रावधान तो दिया गया है लेकिन मुस्लिमों को इससे वंचित रखा गया है, जिसका विरोध हो रहा है. इसे सेक्टेरियन पॉलिटिक्स का खेल बताया जा रहा है.
लेकिन कौन कर रहा है सेक्टेरियन पॉलिटिक्स ? क्या भाजपा ही कर रही है बस ? जवाब है- नहीं. भाजपा अगर गैर-मुस्लिम वोटरों के तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है तो अन्य दल भी मुस्लिमों के अधिकार के लिए नहीं बल्कि उनके वोट के लिए लालायित हैं.
क्यों नहीं शामिल किया गया मुस्लिमों को ?
बिल में यह साफ तौर पर लिखा है कि यह भारतीय मुस्लिमों से जुड़ा है ही नहीं. इसकी जद में भारत के पड़ोसी देशों में रह रही मुस्लिम आबादी है जिसे भारतीय नागरिकता दिए जाने से रोका जाएगा और गैर-मुस्लिम जो इन तीनों देशों के अल्पसंख्यक हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता दी जा सकती है.
इस बिल के विरोध में विपक्षी पार्टियां इसे धर्म के आधार पर नागरिकता देने की दोहरी नीति बता रही हैं तो वहीं भाजपा का मानना है कि गैर-मुस्लिम आबादी को नागरिकता देने का फैसला कुछ खास कारणों के लिए किया गया है.
ये हैं प्रमुख तीन कारण:-
- पहला: पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ बर्बरता के कई केस सामने आए हैं. इससे वह लोग जो प्रावधानों के तहत सही पाए जाएंगे, उन्हें भारतीय नागरिकता दे कर जुल्मों से बचाया जा सकेगा.
- दूसरा कि इन देशों में अल्पसंख्यकों की आबादी को भारतीय नागरिकता देने से भारतीय संसाधनों पर हल्का दबाव पड़ेगा. मुस्लिम आबादी जो बहुमत में है, उसे इन प्रावधानों के तहत लाने का मतलब है कि भारत पर संसाधनों का भारी दबाव हो जाएगा, फिर वहीं गरीबी और भूखमरी और शायद उससे त्रस्त हो कर गृहयुद्ध जैसे हालात छिड़ जाने की आशंका है.
- तीसरा: इसके अलावा सबसे जरूरी बात कि तीनों देशों में इस्लामिक कानून को मान्यता दी गई है. संविधान में भी उसे तरजीह दी गई है. ऐसे में किसी अन्य देश के नागरिक को भारतीय नागरिकता देने का मतलब है कि उसके मूल देश से उखाड़ कर उसे अपने देश में जगह देना जो एक तरह से किसी भी संप्रभु देश के खिलाफ होगा. \
खैर, जिन राजनीतिक कारणों की वजह से इस बिल का समर्थन या विरोध किया जा रहा है, वह प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं. दल अपने हिसाब से अधिकारों की लड़ाई बता कर समर्थन भी हासिल कर रहे हैं.