नई दिल्लीः कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी शुक्रवार को मणिपुर के मोइरांग शहर में राहत शिविरों का दौरा करेंगे. पार्टी पदाधिकारियों ने बताया कि राहुल गांधी दिन में मणिपुर की राजधानी में राहत शिविरों का दौरा करने के साथ ही इंफाल में कुछ बुद्धिजीवियों तथा नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात करेंगे.
राहुल ने राहत शिविरों का किया था दौरा
राहुल ने बृहस्पतिवार को चुराचांदपुर में राहत शिविरों का दौरा किया था, जो जातीय दंगों से सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में से एक है. जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर के चुराचांदपुर में राहत शिविरों के राहुल गांधी के दौरे को लेकर बृहस्पतिवार को उस वक्त नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला, जब कांग्रेस नेता के काफिले को पुलिस ने बीच रास्ते में ही रोक दिया और उन्हें अपने गंतव्य तक हेलीकॉप्टर से जाना पड़ा.
कांग्रेस नेता स्थानीय समुदायों को सांत्वना देने के लिए मणिपुर की दो दिवसीय यात्रा पर हैं.
कंगपोकपी जिले में मृतकों की संख्या बढ़कर तीन हुई
कंगपोकपी जिले में सुरक्षा बलों और संदिग्ध दंगाइयों के बीच गोलीबारी में घायल हुए एक और व्यक्ति ने अस्पताल में दम तोड़ दिया, जिससे घटना में जान गंवाने वालों लोगों की कुल संख्या शुक्रवार को बढ़कर तीन हो गई.
गोलीबारी में पांच लोग हुए थे घायल
अधिकारियों ने बताया कि गोलीबारी में पांच लोग घायल हुए थे. हथियारों से लैस दंगाइयों ने बृहस्पतिवार को हरओठेल गांव में बिना किसी उकसावे के गोलीबारी की थी. सेना ने कहा कि सुरक्षा बलों के जवानों ने स्थिति से निपटने के लिए उचित तरीके से जवाबी कार्रवाई की.
अधिकारियों के मुताबिक, बृहस्पतिवार रात करीब 10 बजे के आसपास भीड़ को तितर-बितर कर दिया गया. उन्होंने बताया कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस और आरएएफ (त्वरित कार्रवाई बल) को तैनात किया गया था.
जातीय हिंसा में अब तक 100 से ज्यादा मौतें
बता दें कि मणिपुर में मेइती और कुकी समुदाय के बीच मई की शुरुआत में भड़की जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं.
मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेइती समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह मुख्यत: पर्वतीय जिलों में रहती है.
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