हिजाब पर मचे विवाद के बीच खड़े हो रहे हैं कई सारे सुलगते सवाल

क्या हमें उन वस्त्रों को चुनना चाहिए जो देश के सारे बच्चों को बराबर का हक़ देता है या फिर उन वस्त्रों को जो उन्हें तथाकथित धर्म के आधार पर बाकी बच्चों से अलग करता है. जो वस्त्र हमें अपने आप को छुपाने का ज्ञान देता हो, वह सुनिश्चित ही हमें कमजोर और लाचार बनाता है.

Written by - Priya Singh | Last Updated : Feb 18, 2022, 03:23 PM IST
  • कर्नाटक के उडुपी स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज से उठा विवाद
  • दुनिया भर में हिजाब पर इस तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं
हिजाब पर मचे विवाद के बीच खड़े हो रहे हैं कई सारे सुलगते सवाल

नई दिल्ली: देश भर में फैले हिजाब विवाद के बीच प्रश्न यह है कि शिक्षा को आगे रखा जाए या फिर धार्मिक संस्थाओं के मूल्यों को. वैसे भी भारत को साहित्य का देश कहा जाता है. साहित्य का सही मतलब होता है जो सब के हित में बात करे. अगर यह सत्य है तो प्रश्न यह भी है की बच्चों के हित में क्या सही है. हमें उन वस्त्रों को चुनना चाहिए जो देश के सारे बच्चों को बराबर का हक़ देता है या फिर उन वस्त्रों को जो उन्हें तथाकथित धर्म के आधार पर बाकी बच्चों से अलग करता है. जो वस्त्र हमें अपने आप को छुपाने का ज्ञान देता हो, वह सुनिश्चित ही हमें कमजोर और लाचार बनाता है.

यह कदम 'एकरूपता' सुनिश्चित करने के लिए है
कर्नाटक के उडुपी जिले स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज संस्थान के परिसर में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.  प्रशासन का दावा है कि यह कदम 'एकरूपता' सुनिश्चित करने के लिए है. कर्नाटक सरकार ने शनिवार को यह भी कहा है कि "समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए". और तनाव को दूर करने के लिए "केसरिया स्कार्फ" पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.

राजनीति की आग पर अपनी रोटियां
राज्य सरकार के इन कथनों पर देश के कुछ समुदाय ऐसे भी है जो नाराज़ हैं. राजनीति की आग पर अपनी रोटियां सेकने वालों का पाखंड भी साफ़ साफ़ दिखाई दे गया है. नोबेल पुरस्कार विजेता "यूसुफजई मलाला" ने ट्विटर के माध्यम से नाराज़ी जताते हुए कहा की "कॉलेज हमें पढ़ाई और हिजाब के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रहा है. लड़कियों को उनके हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है.  

उन्होंने अपनी पुस्तक "मैं मलाला हूं"( i am Malala) में इसी पहनावे का विरोध जताते हुए और मुस्लिम समुदाय को संबोधित करते हुए कहा था कि "वे महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर कर रहे थे.  बुर्का पहनना एक बड़े कपड़े के शटलकॉक के अंदर चलने जैसा है जिसमें केवल एक ग्रिल है और गर्म दिनों में यह ओवन (भट्टी) की तरह है.  कम से कम मुझे तो पहनना ही नहीं था."

बुर्का पर प्रतिबंध कोई नई घटना नहीं 
हिजाब, नकाब और बुर्का पर प्रतिबंध कोई नई घटना नहीं है, जो कर्नाटक के लिए अद्वितीय है.  दुनिया भर में महिलाओं की गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए इसी तरह के प्रतिबंधों का इस्तेमाल किया गया है.  हाल ही में, फ्रांसीसी सरकार, जो धार्मिक इस्लामी कपड़ों को खतरनाक के रूप में चिह्नित करती है, ने महिलाओं के खेलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया.  

इसी तरह की कार्रवाई पूरे यूरोप में की गई है.  2010 की शुरुआत से, कई यूरोपीय देशों ने बुर्का, हिजाब, या महिलाओं के लिए पूर्ण इस्लामी हेडड्रेस पर प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठाए हैं.  वर्तमान में, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, बेल्जियम, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया और बुल्गारिया में बुर्का पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और कई अन्य कानून उसी की संवैधानिकता पर आधारित हैं, जैसे कि फ्रांस.  इटली ने भी पहले ही स्थानीय स्तर पर इन कपड़ों पर प्रतिबंध लगा दिया है.

जिन समुदाय के औरतें आज तक बुर्का पहन कर मस्जिद में प्रवेश ना पा सकीं. आज वो उसी समुदाय के मूल्यों के जोर पर बुर्का पहन कर विद्यालयों मे प्रवेश का आग्रह कर रहे हैं.  आज हमें समझना होगा की अगर समाज को आगे ले जाना है, औरतों को बराबर का हक़ दिलाना है तो हमें इस दोहरे विचार को छोड़ना पड़ेगा. धार्मिक मूल्य जो हमें पीछे जाने का पथ दिखाते हैं उन मूल्यों को त्यागना पड़ेगा. हमें बराबर का हक़ देने वाले कानूनों को अपनाना होगा तभी हम एक बेहतर भारत का निर्माण कर सकते हैं.

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