नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि बीमा कंपनियां कोविड-19 मरीजों के बिलों को मंजूरी देने में 6-7 घंटे नहीं ले सकतीं क्योंकि इससे अस्पतालों से रोगियों को छुट्टी मिलने में देरी होती है और बेड की जरूरत वाले लोगों को अधिक देर तक इंतजार करना पड़ता है.
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि अगर अदालत को इस बात की जानकारी मिलती है कि किसी बीमा कंपनी या तीसरे पक्ष के प्रशासक (टीपीए) द्वारा बिलों को मंजूरी देने में 6-7 घंटे लगता है, तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी.
उनके इस आदेश के कुछ ही मिनट बाद न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने भी ऐसा ही निर्देश पारित किया। इसमें बीमा कंपनियों और टीपीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि बिलों को मंजूरी देने में लगने वाले समय को घटाया जाए क्योंकि अस्पतालों के बाहर बड़ी संख्या में लोग बेड का इंतजार कर रहे हैं.
न्यायमूर्ति सिंह ने अपने आदेश में कहा कि अस्पतालों से अनुरोध मिलने के बाद बीमा कंपनियों या टीपीए को बिलों को मंजूरी देने के लिए 30-60 मिनट से अधिक समय नहीं लेना चाहिए. उन्होंने बीमा नियामक IRDA को इस संबंध में निर्देश जारी करने को कहा.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मरीजों को अस्पतालों से छुट्टी मिलने में देरी से जरूरतमंद मरीजों को भर्ती करने में देरी हो रही है. अदालत को कुछ अस्पतालों और वकीलों ने अवगत कराया था कि बीमा कंपनियों और टीपीए द्वारा बिलों को मंजूरी में देरी करने के कारण रोगियों को छुट्टी देने और नए लोगों को भर्ती करने में देरी हो रही है.
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अदालत राष्ट्रीय राजधानी में ऑक्सीजन, दवाओं, बेड और वेंटिलेटर की कमी के संबंध में कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. न्यायमूर्ति सिंह ने दिन में यह सुनिश्चित करने को कहा कि उन सभी याचिकाकर्ताओं को बेड उपलब्ध हो जाएं जिनकी याचिका उनके समक्ष सूचीबद्ध है.
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