Farmers Movement : अब यदि दोनो पक्ष थोड़ा झुकें तो संभव है समाधान

सौभाग्य से स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि अब उम्मीद दिखाई देने लगी है कि किसान आंदोलन का कोई सर्व-स्वीकार्य समाधान निकल आएगा और इसके लिए सरकार को श्रेय जाएगा कि वह जिद छोड़ कर बात करना चाह रही है.. 

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Dec 5, 2020, 09:05 AM IST
  • सरकार ने छोड़ी जिद, किसानों ने नहीं
  • किसान दिख रहे हैं अड़ियल
  • जनता से मिल रहा है आंशिक समर्थन
  • कृषि मंत्री का प्रस्ताव अव्यावहारिक नहीं
  • एक सुर में करनी होगी बात
  • तीनों कानून वापस लेने की मांग
  • हिंसा से नहीं मिलेगा समाधान
  • चूक सरकार से भी हुई है
  • एमएसपी पर विचार करने का फैसला उचित
Farmers Movement : अब यदि दोनो पक्ष थोड़ा झुकें तो संभव है समाधान

नई दिल्ली.  थोड़ा है थोड़े की जरूरत है. किसान आंदोलन के समाधान की दिशा में भारत सरकार ने अपनी रूचि दिखाई है और कृषि मन्त्री नरेन्द्र सिंह तोमर किसानों की शर्तें मानने को तैयार दीखते हैं और इस हेतु वे बार बार किसानों से बात भी कर रहे हैं.

सरकार ने छोड़ी जिद 

कृषि मंत्री ने बतौर भारत सरकार के प्रतिनिधि किसान आंदोलन के समाधान की दिशा में ईमानदार कोशिश की है और अपनी जिद छोड़ कर सरकार ने किसानों की मांग मानने की दिशा में कदम बढ़ाया है. सरकार ने अपनी ये मांग भी वापस ले ली कि सभी किसान बुराड़ी मैदान में इकट्ठे हो कर सरकार से बात करें और अब तक चार दौर की बात करके यह संकेत भी दिया है कि सरकार समाधान चाहती है, आंदोलन नहीं. 

किसान दिख रहे हैं अड़ियल 

सरकार तो अपना आग्रह वापस ले रही है किन्तु किसान ज़रा भी पीछे हटने को तैयार नहीं दीखते. किसान आंदोलनकारियों ने दिल्ली पहुंचने के मुख्य मार्गों पर धरने दे कर रास्ता रोक डाला है. सैकड़ों की संख्या में ट्रक दिल्ली के बाहर अटके हुए हैं और आने वाले दिनों में दिल्ली की जनता को फल और सब्जियां मिलना मुशिकल हो सकता है. हालांकि इससे किसानों और व्यापारियों दोनों को नुक्सान पहुंच रहा है.

जनता ने दिया आंशिक समर्थन 

किसान आंदोलन के अभी शुरूआती दौर में तो लग रहा है कि दिल्ली की जनता में कुछ हद तक किसानों के प्रति सहानुभूति दिखाई दे रहा है. केजरीवाल की सरकार भी किसान आंदोलनकारियों को किसी तरह की असुविधा न हो, इसका पूरा ध्यान रख रहे हैं. ऐसे में अगर ये आंदोलन लम्बे समय तक चला तो दिल्ली की आम जनता के मन में किसानों और विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब के किसानों के प्रति हमदर्दी समाप्त हो जायेगी और उसके उलट जनता में इनके विरुद्ध आक्रोश भी पैदा हो सकता है. वैसे भी इन दो प्रांतों के किसान देश के अन्य भागों के किसानों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं.

सरकार का प्रस्ताव अव्यावहारिक नहीं 

 पांच किसान नेताओं की कमेटी बनाने का कृषि मंत्री का प्रस्ताव किसी तरह अव्यवहाररिक नहीं दीखता. ये किसान नेता सरकार के साथ मिल-बैठकर अपनी समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं क्योंकि इस तरह वार्ता करना भी सरल हो जायेगा पर वार्ता में शामिल पच्चीस -तीस किसान नेता इस बात पर राज़ी नहीं हैं. साफ़ दिख रहा है कि यह ऊबड़खबड़ आंदोलन है और इसका कोई सर्व-स्वीकार्य नेता भी नहीं है.

एक सुर में करनी होगी बात 

सरकार के रुख से तो दिख रहा है कि वह एक साथ पचास या सौ किसान नेताओं से भी बात कर सकती है किन्तु किसान नेताओं को सोचना होगा कि एक सुर में बात कैसे करें. सबके अपने-अपने हित और सबकी अपनी-अपनी जिद पर बात अब आगे कैसे बढ़ पायेगी. इसलिए पहले किसानों को ही आपस में बैठ कर सर्व-स्वीकार्य और सर्व किसान हिताय मांगों  की सूची तैयार करनी होगी ताकि समवेत स्वर में उस पर सरकार से बात हो सके.  

तीनों कानून वापस लेने की मांग अनुचित

किसानों की ये मांग अव्यवहारिक लगती है जो सिर्फ उनका सरकार विरोधी रुख का प्रदर्शन है न कि मूल समस्या का. आंदोलन कर रहे किसान पूरी तरह से अड़ियल हो कर इस जिद पर क्यों अटके हुए हैं कि तीनों कानून वापस लिए जाएं. किसानों को भी ये बात पता है कि कानून देश भर के सभी किसानों के लिए बनाये गए हैं और आज इनका विरोध कर रहे किसान देश भर के किसान नहीं हैं, लगभग 6 प्रतिशत किसान हैं. ऐसे में सरकार के पास यह तार्किक अधिकार है कि वह किसानों के सामने न झुके.

हिंसा से नहीं मिलेगा समाधान 

 देश के इन दस प्रतिशत से भी कम किसानों का प्रतिनिधित्व करनेवाले नेताओं को समझ लेना चाहिए कि  अहिंसक आंदोलन थी है किन्तु यदि उन्होंने हिंसा का सहारा लिया तो बात बिगड़ेगी क्योंकि दुनिया की कोई भी सरकार हिंसक आंदोलन को समर्थन नहीं दे सकती. ऐसे में यदि सरकार सख्त हुई तो किसानों के लिए बहुत मुश्किल होगी.

चूक सरकार से भी हुई है 

सरकार के पक्ष की बात करें तो समाधान की दिशा में सरकार को अपनी जिद आगे भी छोड़नी पड़ सकती है. सरकार से गलती ये हुई है कि इन कानूनों के निर्माण के दौरान यदि किसान संगठनों की सलाह भी ले ली जाती तो आज उनके हित में बने ये कानून निशाने पर न होते. 

एमएसपी पर विचार सही फैसला है 

एमएसपी को कानून की शक्ल में लागू करना काफी हद तक समाधान बन सकता है किन्तु एमएसपी से कम पर या अधिक दामों पर अपना उत्पाद बेचने की छूट किसान को अवश्य मिलनी चाहिए ताकि उसे  परिस्थितियों से समझौता न करना पड़े. इसी तरह सरकारी प्रयासों के माध्यम से अधिक से अधिक मंडियों का निर्माण करना और उनका सारा तंत्र किसान के हित में तैयार किया जाना भी बराबर से आवश्यक है. 

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