Gandhi Jayanti Special: गांधी का जीवन ही उनका प्रखर संदेश है

मेरा जीवन ही मेरा संदेश है -ये अमर वाक्य महात्मा गांधी का ही था. काश कि मानव समाज इसे व्यवहार के धरातल पर वैसे ही उतार पाता जैसा गांधी ने अपने जीवन में जी कर दिखाया था..

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Oct 2, 2020, 10:32 AM IST
    • हार न मानें व्यवधानों से
    • अहिंसा ही विजय का मार्ग है
    • क्षमा ​कर के देव-मानव बनें
Gandhi Jayanti Special: गांधी का जीवन ही उनका प्रखर संदेश है

नई दिल्ली.  आज से 150 साल पहले 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मा महामानव मोहनदास करमचन्द गांधी आगे चल कर दुनिया भर में महात्मा गांधी के नाम से विख्यात हुआ. अहिंसा के ध्वजवाहक महात्मा गांधी के जन्मदिवस को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर दुनिया में मनाया जाता है. उन्होंने कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है, और उनके द्वारा जिए गए इस सन्देश को तत्वतः समझ कर और अपने जीवन में उतार कर हम सभी उनकी तरह ही महामानव बन सकते हैं. 

हार न मानें व्यवधानों से 

महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी ये सबसे महत्वपूर्ण बात है जिसे अपना कर हम भी अपने जीवन को सफलता की एक यात्रा में परिवर्तित कर सकते हैं. गांधी जी ने होश सम्हालने से लेकर अपनी मृत्यु के दिन तक लगातार ​बाधाओं का सामना किया किन्तु उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी. इस अपराजित-भाव ने उन्हें वास्तव में अपराजेय बना दिया. चाहे वे देश के बाहर से आये अंग्रेज़ हों या देश के भीतर के लोग. महात्मा गांधी के समर्थन में सारा देश खड़ा था तदापि कई लोग उनके विचारों से असहमत हो कर उनके विरोधी बन गए थे. लेकिन गांधी अपने विचारों पर आगे बढ़ते रहे और उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

अहिंसा ही विजय का मार्ग है 

अहिंसा शब्द चाहे भावरूप में हो या कर्मरूप में- गांधी का स्मरण कराता है. जीवन संग्राम के अलग-अलग मोर्चों पर विजय का सूत्र देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि अहिंसा ही विजय का मार्ग है. उन्होंने कहा था -''पहले आपके विरोधी आपकी उपेक्षा करेंगे. फिर वे आप पर हंसेंगे और उसके बाद वे आपसे लड़ेंगे, परन्तु याद रखें अंत में विजय आपकी ही होगी." गांधीजी ने अपने सामाजिक तथा राजनैतिक व्यवहार में इस महान गुण को उतार कर यह संदेश दिया था कि ''भारत जैसे एक विशाल देश की स्वतंत्रता की लड़ाई सरल नहीं है, विशेषकर अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए तो कदापि सरल नहीं है, फिर भी हमें अहिन्सा के मार्ग पर अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाना है.'' हुआ भी वही, अंत में भारत ने स्वतंत्रता अर्जित की और अंग्रेज़ों को जाना पड़ा.

क्षमा ​कर के देव-मानव बनें 

क्षमा की अवधारणा सुनने में जितनी सरल दिखाई देती है व्यवहार में उतनी ही दुष्कर है. हम अपने विरोधियों या शत्रुओं को तो कदापि क्षमा नहीं कर सकते, हम तो कई बार अपने ही मित्रों और परिजनों को क्षमा नहीं कर पाते. गांधी ने कहा था कि क्षमा करके आप देव-ममानव बन जाते हैं.  उन्होंने कहा था कि कमजोर लोग कभी क्षमा नहीं करते, क्षमा करना या भूलना मजबूत लोगों के ही बस की बात है. 

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