नेपाल के विवादित नक्शे पर भारत की प्रतिक्रिया, 'किसी भी हाल में मान्य नहीं'

नेपाल में विवादित नक्शे को नेपाली संसद ने पास कर दिया है. इससे भारत और नेपाल के संबंधों में तनाव और बढ़ गया है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 14, 2020, 06:00 PM IST
नेपाल के विवादित नक्शे पर भारत की प्रतिक्रिया, 'किसी भी हाल में मान्य नहीं'

नई दिल्ली: नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने चीन के इशारे पर चलते हुए विवादित नक्शे को संसद में पास कर लिया है. इससे भारत में नेपाल की वामपंथी सरकार आलोचना तेज हो गयी है. भारत सरकार की ओर से विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा है कि नेपाल का ये नक्शा ऐतिहासिक रूप से भी गलत है. इसमें तथ्य और साक्ष्य बिल्कुल भी नहीं हैं. ये नक्शा ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है, इसीलिए यह मान्य नहीं है.

शनिवार को नेपाली संसद में पास हुआ नक्शा

आपको बता दें कि नेपाल ने अपनी संसद में भारत के कुछ हिस्सों पर अपना दावा ठोकते हुए विवादित नक्शे को अपनी संसद में दो तिहाई से भी अधिक बहुमत से पास कर दिया है. 275 सदस्यों वाली नेपाली संसद में इस विवादित बिल के पक्ष में 258 वोट पड़े. भारत और नेपाल के सम्बंधों में नेपाल की वामपंथी सरकार दरार डालने में जुटी है. इसके खिलाफ खुद नेपाल की जनता है.

भारत के कुछ हिस्से पर नेपाल का झूठा दावा

आपको बता दें कि भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा पर नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार झूठा दावा करती है. नेपाल ने 18 मई को एक नया नक्शा जारी किया था, जिसमें भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपना हिस्सा बताया था. इस कदम से भारत और नेपाल की दोस्ती में दरार आनी शुरू हो गई. भारत ने लगातार इसका कड़ा विरोध किया लेकिन नेपाल सरकार चीन के इशारे पर काम करती रही और संसद में इसे मंजूरी भी दे दी.

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नेपाल के लोग भी कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ

गौरतलब है कि नेपाल की जनता नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार से सहमति नहीं रखती. नेपाल में कई जगहों पर इस विवादित नक्शे का विरोध किया गया. नेपाल में जनता समाजवादी पार्टी की सांसद सरिता गिरी विरोध दर्ज करा चुकी हैं. उन्होंने संशोधन बिल को वापस लेने और पुराने नक्शे को बहाल करने की मांग की थी. आपको बता दें कि 8 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख से धाराचूला तक बनाई गई सड़क का उद्घाटन किया था. इसके बाद नेपाल ने लिपुलेख को अपना हिस्सा बताते हुए विरोध किया था.

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