नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों से भारत में गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है. मानव जीवन पर इसका बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है. आने वाले सालों में इसपर ध्यान न देने से ये और भी ज्यादा गंभीर रूप ले सकता है. हाल ही में सामने आई एक स्टडी के मुताबिक भारत में गिद्धों की संख्या में हो रही भारी गिरावट सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बन सकता है. ये संख्या हर साल 1 लाख से भी ज्यादा पहुंच सकती है.
कैसे कम हो रही गिद्धों की संख्या?
शिकागो यूनिवर्सिटी' के पर्यावरण अर्थशास्त्री ईयाल जी फ्रैंक और ब्रिटेन के 'वारवरिक यूनिवर्सिटी' के अनंत सुदर्शन ने भारत में गिद्धों की बढ़ती संख्या को लेकर एक स्टडी की. 'अमेरिकन इकोनॉमिक एसोशिएशन' में पब्लिश इस स्टडी के मुताबिक भारत में गिद्धों की संख्या लगभग खत्म होने से लोगों की मौत की संख्या बढ़ी है. शोधकर्ताओं के मुताबिक भारत में 1990 के दशक में जितनी तेजी से गिद्ध विलुप्त हुए हैं शायद ही यहां कोई जीव इतनी तेजी से गायब हुआ हो. गिद्ध की कुछ प्रजातियां तो 99.9 प्रतिशत तक कम हो गई हैं. वहीं जब इसके पीछे का कारण पता लगाया गया तो पता चला कि इसके पीछे डाइक्लोफेनाक ( Diclofenac) नाम की एक पेन किलर दवाई है, जो गिद्धों के लिए काफी खतरनाक साबित हुई. जानवरों को दर्द के दौरान दी जाने वाली इस दर्दनिवारक दवाई ने उनके मरने के बाद उन्हें खाने वाले गिद्धों की जान भी ले ली. इससे गिद्ध तेजी से घटने लगे.
गिद्धों के मरने से किस तरह का खतरा?
भारतीय गिद्ध बेहद बड़े और शिकारी पक्षी होते हैं. इनके शरीर की लंबाई 75-85cm तक होती है और इनके पंखों का फैलाव करीबन 1.96-2.38m तक होता है. घुमावदार चोंच होने के कारण ये मरे हुए जानवरों का मांस आसानी से फाड़ सकते हैं. भारतीय गिद्ध पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी हैं क्योंकि ये मरे हुए जानवरों को खाकर साफ करते हैं. इससे बीमारियां नहीं फैलती हैं.
गिद्ध खत्म होने पर नुकसान
शोधकर्ताओं के कहना है कि भारत के जिन इलाकों में गिद्धों की संख्या कम हुई हैं वहां आवारा कुत्ते ज्यादा मात्रा में बढ़े हैं. वहीं उनमें रेबीज का खतरा भी काफी ज्यादा पाया गया है. पहले गिद्ध जिन मरे हुए जानवरों को खाते थे उन्हें अब कुत्ते खाते हैं. इससे रेबीज फैलने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ा है. भारतीय गिद्ध साउथ एशिया और कुछ दक्षिण- पूर्व एशिया में पाए जाते हैं, जिनमें भारत, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
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