आखिर CM नीतीश को किस बात का है डर, फिर पलट गई जदयू ?

बिहार का सियासी खेल कब बदल जाए किसी को इसका ठीक-ठीक अंदाजा नहीं होता. बात जब भाजपा-जदयू गठबंधन के दांव-पेंच की हो तो ये और भी मुश्किल हो जाता है. बिहार के मुखिया नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू के ऊपर एक लांछन लगाया जाता है कि वे पलट बहुत जल्दी जाते हैं. इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है. कभी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए मुंह फुलाने वाली जेडीयू आज मोदी सरकार में शामिल होने के लिए तैयार है. 

Last Updated : Oct 31, 2019, 06:18 PM IST
    • नीतीश को डर था 'बाजू' उखड़ जाने का
    • आरसीपी की भाजपा से नजदीकी से घबराई जदयू
    • उपचुनाव परिणाम से लाइन पर आ गई जदयू
    • जब 3 मंत्रीपद को लेकर अड़ गई थी जदयू
आखिर CM नीतीश को किस बात का है डर, फिर पलट गई जदयू ?

पटना: जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने गुरूवार को पुराने सुर बदलते हुए कहा कि अगर अमित शाह और भाजपा की केंद्रीय कमान जदयू को केंद्रीय कैबिनेट में शामिल करने का प्रस्ताव रखती है तो उनकी पार्टी उसे सहर्ष स्वीकार करेगी. हालांकि, उन्होंने सम्मानजनक हिस्सेदारी के राग को ही अलपना जारी रखा जिसके कारण विवाद शुरू हुआ था. 

जब 3 मंत्रीपद को लेकर अड़ गई थी जदयू

मौका था जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बैठक में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया. नीतीश कुमार इस पद पर 2022 तक रहेंगे. राजधानी दिल्ली में आयोजित इस बैठक में जदयू प्रवक्ता सह महासचिव केसी त्यागी मीडिया से मुखातिब हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि भाजपा अगर जदयू को केंद्रीय कैबिनेट में सम्मानजनक हिस्सेदारी देती है तो जदयू अब भी तैयार है. मालूम हो कि जदयू ने इस लोकसभा में 16 सीटें जीती थी और केंद्रीय कैबिनेट में 3 मंत्रीपद को लेकर जिद पर अड़ गई थी. अंत में एक भी मंत्रीपद न मिलने के बाद से या यूं कहें कि जदयू के इस रवैये के बाद से भाजपा-जदयू की गांठें धीरे-धीरे शिथिल होती दिखाई दे रही थी. एक वक्त ऐसा भी आया जब दोनों दलों के नेताओं में खूब तू-तू-मैं-मैं अखबारों की सुर्खियों में छाई रहती थी.

नीतीश को डर था 'बाजू' उखड़ जाने का

अब आपको याद होगा कि उस वक्त मंत्रिमंडल में आरसीपी सिंह और लल्लन सिंह में से किसी एक को भेजे जाने का फैसला जदयू प्रमुख नीतीश कुमार नहीं कर पाए. करते भी कैसे, एक को अहमियत देना, दूसरे को नाराज कर देने के बराबर था. दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही मु्ख्यमंत्री नीतीश के बेहद अजीज और करीबीयों में से हैं. कहा तो यह भी जाता है कि ये दोनों नीतीश कुमार के दो बाजू हैं. ऐसे में उनके लिए यह फैसला कर पाना, बड़ा मुश्किल था. तब जदयू प्रमुख ने फैसला किया कि जदयू को केंद्रीय कैबिनेट में साझीदार नहीं रहेगी और बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन यूं ही चलता रहेगा. हालांकि, नीतीश कुमार ने सोचा कि इससे उन्होंने किसी एक को भी नाराज होने से बचा लिया, लेकिन चिंगारी कब आग में तब्दील होने लगी, इसका पता मुख्यमंत्री जी को भी नहीं चल पाया. 

आरसीपी की भाजपा से नजदीकी से घबराई जदयू

बाद के दिनों में भाजपा ने जदयू को सबक सिखाने के लिए जदयू के भावी नेता आरसीपी सिंह से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी. दबी आवाजों में कुछ खबरें तो ऐसी भी आईं कि भाजपा जदयू से नीतीश कुमार को साइडलाइन कर आरसीपी को तख्त पर बिठाने का जुगाड़ भी कर रही है. सू्त्रों के हवाले से तो यह भी खबर आई कि भाजपा आलाकमान और आरसीपी में कैबिनेट मंत्री के एक पद को लेकर तो डील भी हो गई है. इन अटकलों के सच होने के सबूत तब मिलने लगे जब सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ मामलों पर यू टर्न लेना शुरू कर दिया. इसकी पुष्टि के कोई अहम सबूत तो नहीं लेकिन अटकलों के बाजार में कुछ यूं भी कहा जा रहा है कि केसी त्यागी का यह बयान एक इशारा है कि जदयू को भाजपा के साथ की जरूरत है, बिहार में भी और केंद्र में भी. 

उपचुनाव परिणाम से लाइन पर आ गई जदयू

एक बात जिसका खुलासा जदयू ने फिर से नहीं किया वो ये है कि यह सम्मानजनक हिस्सेदारी आखिर है क्या? और कितना है ? दरअसल, एक बात यह भी है कि जदयू को उपचुनाव के परिणामों से आभास हो गया है कि पार्टी बिहार में अपनी जमीन खो रही है. जदयू को इस बात का भी डर है कि भाजपा बिहार विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे में जदयू की हिस्सेदारी घटाने का दबाव बना सकती है. बिहार उपचुनाव में 5 में से 4 सीटों पर जदयू ने अपने उम्मीदवार उतारे और मात्र एक सीट ही बचा पाई. जदयू के बाहुबली नेता अजय सिंह तक चुनाव हार गए. इस बात का डर जदयू को सताने लगा है कि पार्टी सूबे में कहीं फिसड्डी न हो जाए. भाजपा से अलग हो कर जदयू की राहें तो राजद या कांग्रेस के साथ भी सेफ नहीं दिखती. 2014 के लोकसभा चुनाव में 2 सीट से 2019 में 16 सीटों पर जीती जदयू को इस बात का भई आभास हो गया है कि ये उसके अकेले की जीत न थी और ना ही जदयू की ओर से कोई बड़ी पहल ने उसे इतनी सीटें दिलाई.

खैर, कयासों के इस बाजार में बिहार का राजनीतिक गलियारा हमेशा से रोशन और केंद्र में ही नजर आता है. अब यह देखना बाकी है कि भाजपा जदयू महासचिव के इस बयान को कितनी गंभीरता से लेती है.   

ट्रेंडिंग न्यूज़