बेंगलुरू: वर्षों बाद कभी सूर्यग्रहण जैसा कुछ देखने को मिलता है. बुधवार को तो पूर्ण सूर्यग्रहण था यानी पूरे सूर्य पर ही ग्रहण लगा था. सूर्य ग्रहण के दौरान ऐसी कुछ मान्यताएं होती हैं कि लोगों को कुछ खाना पीना नहीं चाहिए. सूर्य ग्रहण के वक्त तक कुछ भी खाने पर ग्रह चढ़ता है. इसके अलावा एक मान्यता यह भी है कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के बाद लोगों को स्नान कर के ही कुछ खाना पीना चाहिए. तब जब ग्रहण मुहूर्त के हिसाब से खत्म हो जाए. यह सारी बातें हिंदू धर्म के हिसाब से परंपरागत रूप से मानी जाती आ रही हैं.
जब कोई कहे ऐसे दस्तूर को सुब्हे बेनूर को, मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता
सोचिए कोई इसका यह कह के विरोध करने लगे कि नहीं यह गलत है. कोई इसका विरोध हबीब जलीब की नज्म गा कर करने लगे कि "ऐसे दस्तूर को सुब्हे बेनूर को, मैं नहीं जानता, मैं नहीं मानता" तो क्या हो? यह तो मान्यताएं हैं. और मान्यताओं के साथ एक खास बात यह होती है कि इसे मानने और न मानने वाले अपने लिहाज से इसको देखते हैं. कर्नाटक में कुछ ऐसा ही हुआ.
एक्टिविस्ट ने कहा यह सब सिर्फ रूढ़िवादी मानसिकता है
दरअसल, जब सूर्यग्रहण खत्म हो गया तो राजधानी बेंगलुरू के टाउन हॉल पर कुछ लोगों का समूह इकठ्ठा हो गया और विरोध करने लग गया. नारे लगने लग गए और नारों में विरोध किया जाने लगा सूर्यग्रहण लगने के समय मानी जा रही मान्यताओं का. लोगों ने कहा कि यह सब जो ढ़ोंग है यह सिर्फ रूढ़िवादी मानसिकता के लोगों की बनाई हुई है. इन मान्यताओं को मानना सही नहीं. इस विरोध प्रदर्शन के मुखिया एक्टिविस्ट एन मुर्ती थे. उन्होंने कहा कि यह सब रूढ़ीवादी सोच जैसे कि बाहर मत जाओ, कुछ खाओ मत, कुछ पियो मत, यह सब बिल्कुल भी सही नहीं.
Karnataka:A group of ppl protested at Bengaluru's Town Hall against superstitious beliefs followed during solar eclipses, Activist N Murthy said,"Superstitions like don't go outside,don't eat or drink during the eclipse are wrong. Scientists only say don't view it with naked eye" pic.twitter.com/Nipz2QM596
— ANI (@ANI) December 26, 2019
उन्होंने कहा कि सूर्यग्रहण के समय वैज्ञानिक सिर्फ इतना कहते हैं कि इसे प्रत्यक्ष रूप से सीधा-सीधा आंखों से न देखा जाए तो बेहतर. आंखों पर चश्मे का पर्दा डालकर इसे देखना अच्छा होता है. लेकिन हमारे यहां जो यह सब मान्यताएं हैं, हम उसका विरोध करते हैं. हालांकि, विरोध मार्च कर रहे लोगों को यह कौन बताए कि जिस मान्यताओं का वह विरोध कर रहे हैं, वह भी एक लिहाज से संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन ही है.