Farmers Protest व्यंग्य: नाक नीची करने, नाक कटाने, नाक रगड़ने के बाद नाक तोड़ने पर आए टिकैत

किसानों के नए मसीहा बनने की पुरजोर कोशिश कर रहे राकेश टिकैत अब नाक तोड़ने की बात पर आ गए हैं. कृषि कानूनों को उन्होंने अपनी नाक का सवाल बना लिया है. पिछले करीब तीन महीने से किसानों का मुद्दा-किसानों की बात कहकर वह विरोध-प्रदर्शन का माहौल बना रहे हैं और नाक में दम करने की कोशिश किए हुए हैं.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Feb 23, 2021, 05:54 PM IST
  • किसान आंदोलन को कमजोर पड़ता देख आपा खो रहे हैं राकेश टिकैत
  • बक्कल उतारने, कानून बदलने के बाद अब नाक तोड़ने की बात करे रहे हैं
Farmers Protest व्यंग्य: नाक नीची करने, नाक कटाने, नाक रगड़ने के बाद नाक तोड़ने पर आए टिकैत

नई दिल्लीः गाजीपुर बॉर्डर से मंगलवार को आवाज आई नाक तोड़ देंगे. इसके बाद रैली के रास्ते से लेकर सत्ता के गलियारे तक नाक ही नाक की बात है. Corona के कारण तो लग रहा था कि नाक का वजूद ही खत्म हो जाएगा, लेकिन पिछले 10 महीने से जो नाक मास्क के पीछे छिपी थी, वो उसे फाड़कर बाहर आ गई.  

आंदोलन बना नाक का सवाल
दरअसल, हुआ यूं कि किसानों के नए मसीहा बनने की पुरजोर कोशिश कर रहे राकेश टिकैत अब नाक तोड़ने की बात पर आ गए हैं. कृषि कानूनों को उन्होंने अपनी नाक का सवाल बना लिया है. पिछले करीब तीन महीने से किसानों का मुद्दा-किसानों की बात कहकर वह विरोध-प्रदर्शन का माहौल बना रहे हैं और नाक में दम करने की कोशिश किए हुए हैं.

इस कोशिश में उन्हें हर रोज लगता है कि वे सरकार को नाको चने चबवा देंगे, लेकिन हर बार उनका दम फूलता नजर आता है. 

पहले सोचा सरकार नाक रगड़ेगी
हालांकि एक समय था कि किसान उनके साथ थे, बल्कि पंजाब और हरियाणा के किसान भी दिल्ली की अलग-अलग सीमा पर साथ देने पहुंचे थे. पहुंचते भी क्यों नहीं, नाक की बात जो थी. दो महीने खूब बातचीत हुई. सरकार ने किसानों को विज्ञान भवन बुलाया. किसान गए बात हुई लेकिन बात बनी नहीं. किसानों ने कहा- सरकार का दिया खाना नहीं खाएंगे. इस तरह वे सोच रहे थे कि सरकार मान-मनौवल के लिए उनके आगे नाक रगड़ रही है. 

खैर, इस गलतफहमी का भी लंबा दौर चला, लेकिन फिर आई 26 जनवरी. भारत के गणतंत्र का दिन. सारी दुनिया दिल्ली के राजपथ की ओर देख रही थी. इसी दौरान किसान आंदोलन और ट्रैक्टर रैली के नाम पर दिल्ली को दहशत की आग में झोंक देने की कोशिश हुई. किसानों का मुखौटा लगाकर कुछ दंगाई आंदोलन में घुस आए और लालकिले की शान को चोटिल कर दिया. टिकैत एंड टीम ने की खुद की नाक बचाते-बचाते दुनिया में देश की नाक नीची कर दी.

नाक के बाल बनने वालों की पोल खुली
इसके बाद किसानों की नाक ने सू्ंघ लिया कि यहां उन्हें जुटाकर आंदोलन नहीं बल्की एजेंडा खेला जा रहा था. इसलिए असली किसानों ने घर जाने में ही भलाई समझी. उधर दिल्ली पुलिस ने एक-एक करके उन सारे लोगों को खोज निकाला जो जबरन ही किसानों की नाक के बाल (हितैषी बनने) बनने का दिखावा कर रहे थे. दीप सिद्धू जैसे कई लोगों की पोल खुली और किसानों के नाम पर जारी आंदोलन की नाक नहीं बच सकी. 

ये सब देखकर टिकैत बाबा रो दिए गाजीपुर बॉर्डर पर ही बैठ गए. जनता को फिर से लगा भाई नाक का सवाल है, इसलिए नाक बचाने रातों-रात निकल पड़े. गाजीपुर वही जगह है जहां कूड़े का पहाड़ हर किसी को नाक दबा लेने पर मजबूर कर देता है, लेकिन राकेश टिकैत यहां बैठकर नाक-भौंह सिकोड़ने लगे हैं. 26 जनवरी के बाद से वह इन 27 दिनों में कभी नाक रखने की बात करते हैं. कभी नाक बचा लेने की, कई बार फिर से नाको चने चबवाने का सपना देखते हैं. 

हालत यह हो गई है कि उन्हें अपनी ही नाक नजर नहीं आती है. मंगलवार को इसी रौ में वह सरकार की नाक तोड़ने की बात कर गए हैं. देखना है कि सरकार की नाक तोड़ने की बात करने वाले टिकैत खुद की नाक बचा पाते हैं कि नहीं? आखिर नाक का सवाल है.

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