Republic Day की पहली परेड जो Rajpath पर नहीं हुई

गणतंत्र दिवस का सबसे पहला साल  भव्य परेड के लिए नहीं बल्कि भव्य परेड न होने के लिए याद रखा जाता है. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि 1950 की उस 26 जनवरी को आज की तरह राजपथ पर परेड नहीं हुई थी. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 25, 2021, 10:43 AM IST
  • गणतंत्र दिवस का पहला आयोजन पुराना किला के सामने हुआ था
  • भव्य नहीं थी पहली परेड, नहीं निकली थी झांकी
Republic Day की पहली परेड जो Rajpath पर नहीं हुई

नई दिल्लीः महज कुछ घंटे बीतेंगे और इसी के साथ हमारा देश का संविधान उम्र के 72वें पड़ाव पर पहुंचेगा. 2 साल 11 महीने और 18 दिन की लंबी चली प्रक्रिया के बाद 26 जनवरी 1950 को जब भारत ने संविधान को स्वीकार किया उसी दिन हम एक लोकतांत्रिक-गणतांत्रिक देश के रूप में विश्व भर में स्वीकार किए गए. देश को मिला सर्वोच्च पद, जिसे राष्ट्रपति कहा गया और पहला राष्ट्रपति बनने का गौरव मिला डॉ. राजेंद्र प्रसाद को. 

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने की गणतंत्र भारत की घोषणा
उस दिन का हाल बताते हुए तारीख कहती है कि वह 26 जनवरी 1950 का दिन था. घड़ी सुबह के 10 बजकर 18 मिनट का समय बता रही थी. यह वही समय था कि जब यह घोषणा की गई भारत राज्‍यों का एक संघ है. यह संसदीय प्रणाली की सरकार वाला गणराज्‍य है. ये गणराज्‍य भारत के संविधान के अनुसार शासित है.

यह संविधान भारत को उसकी संप्रभुता की शक्ति प्रदान करता है.  यह घोषणा देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने की थी. यह वह घोषणा थी जिसने ठीक 20 साल पहले के उस दौर को याद दिला दिया जब 26 जनवरी 2929 को रावी नद के तट से पूर्ण स्वराज्य के लिए अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी गई थी. 

10 बजकर 24 मिनट पर राष्ट्रपति बने डॉ. राजेंद्र प्रसाद
इसके बाद घड़ी के सुईयां ने 6 मिनट  की दूरी और तय की. यह वह वक्त बना जब भारत को पहला राष्ट्रपति मिला. 26 जनवरी 1950 को 10 बजकर 24 मिनट पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भारत के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली. तत्कालीन चीफ जस्टिस हीरालाल कनिया ने उन्हें हिंदी में शपथ दिलाई और प्रसाद ने ध्वजारोहण किया.

उस दिन का ध्वजारोहण इस बात का प्रतीक बना कि हम भारतवासी इसी झंडे की छांव में प्रगति का रास्ता तलाशेंगें और भाषा-बोली, पहनावा, खान-पान की विविधता होने के बावजूद एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी बनेंगे. 

बेहद खास था उनका भाषण
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जो भाषण दिया उसका मजमून भी कुछ ऐसा ही था. उन्होंने हिंदी और English दोनों भाषाओं में अपना संबोधन देते हुए कहा - हमारे लंबे और घटनापूर्ण इतिहास में ये पहला अवसर है जब कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक ये विशाल देश सबका- सब इस संविधान और एक संघ राज्य के छत्रासीन हुआ है.

हमारे गणराज्य का उद्देश्य है इसके नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समता प्राप्त करना तथा इस विशाल देश की सीमाओं में निवास करने वाले लोगों में भ्रातृ-भाव बढ़ाना, जो विभिन्न धर्मों को मानते हैं, अनेक भाषाएं बोलते हैं और अपने विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करते हैं. हम सभी देशों के साथ मित्रता करके रहना चाहते हैं. हमारे भावी कार्यक्रमों में रोग, गरीबी और अज्ञान का उन्मूलन शामिल है. 

उस दिन कौन-कौन रहे मौजूद
पहला गणतंत्र दिवस महज गणतंत्र दिवस के होने की शुरुआत थी. उस दिन सबसे बड़ी बात यही रही कि संविधान स्वीकार किया गया और इसकी घोषणा की गई. इसलिए आज की तरह के भव्य समारोह की तैयारी नहीं थी.

72 साल पहले के गणतंत्र दिवस में जो लोग शामिल थे वे थे देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, प्रथम राष्ट्रपति बनने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू, जनरल फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा, तत्कालीन चीफ जस्टिस हीरालाल कनिया, तीनों सेनाओं की छोटी टुकड़ियां और राजनीति से जुड़े कुछ लोग शामिल थे. 

तब यहां हुई थी परेड
गणतंत्र दिवस का सबसे पहला साल  भव्य परेड के लिए नहीं बल्कि भव्य परेड न होने के लिए याद रखा जाता है. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि 1950 की उस 26 जनवरी को आज की तरह राजपथ पर परेड नहीं हुई थी. बल्कि आज जहां चिड़ियाघर और नेशनल स्टेडियम है वहां पर पुराने किले के ठीक सामने समारोह आयोजित किया गया था.

नेशनल स्टेडियम तब ब्रिटिश स्टेडियम था, जिसे तब इरविन स्टेडियम कहा जाता था. उस दिन कोई झांकी नहीं निकाली गई थी, बल्कि स्टेडियम में ही परेड हुई थी. सुबह साढ़े 10 बजे राष्ट्रपति बनते ही डॉ. राजेंद्न प्रसाद को तोपो की सलामी दी गई, यह सिलसिला आज भी जारी है. उस दिन डकोटा और स्पिटफ़ायर जैसे छोटे विमानों ने हवाई करतब जरूर दिखाए थे. 

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