नई दिल्लीः Mehdi Hassan Birth Anniversary: साल था 1978. रंगीले राजस्थान का गुलाबी जयपुर और उसका सरकारी अमला एक बड़े खास मेहमान की आवभगत में जुटा था. बड़े-बड़े ओहदे वाले तमाम ख्वाहिशों और जरूरतों पर नजर रखे उसके आगे-पीछे घूम रहे थे. मगर मेहमान था कि उसे चैन एक पल नहीं. उनसे पूछा गया- जनाब, फरमाइये, आप क्या चाहते हैं?
जनाब ने कहा- ज्यादा कुछ नहीं, झुंझनूं ले चलो बस. बस इतनी सी बात थी और ज्यों ही मुंह से निकली, गाड़ियां आईं, काफिला सज गया और सब चल पड़े झुंझनूं के लूणा गांव.
मेहमान को सब देखते रह गए
अभी काफिला गांव पहुंचा भी नहीं था कि उसके मुहाने पर एक टीला नजर आया. टीले पर छोटा सा मंदिर. मेहमान ने जैसे ही यह देखा, गाड़ी रुकवा दी और दौड़ कर टीले पर जा पहुंचे. रेत में गिर पड़े, लोट-पोट हो गए. खेलते रहे तो कभी आंसू पोंछते रहे. वहां खड़े अफसरान भी पलकों की कोरें पोंछते दिखे.
कौन थे ये अजीब मेहमान
यह मेहमान थे मेहदी हसन (Mehdi Hassan). जिनके सीने में बसा बंटवारे का दर्द आज आंसू बनकर रेत में लोट-पोट हो रहा था. लूणा वह गांव, वह जमीन थी जहां मेहदी हसन खेले-कूदे थे और जहां उनके पुरखे जिंदगी जिए और जब जी लिए तो वहीं दफ्न हो गए.
18 जुलाई 1927 को हुआ जन्म
रह गया था तो सिर्फ मेहदी, जो जमाने को गजल और तरन्नुम की हिना में रंग देने निकल पड़ा था. आज मेहदी (Mehdi Hassan) की बात इसलिए क्योंकि यही 18 जुलाई की तारीख है जब 1927 में मेहदी हसन गजल की दुनिया में नूर भरने जमीं पर आए थे.
18 जुलाई 1927 को शेखावटी में जन्में मेहदी हसन (Mehdi Hassan) के कई किस्से आप जानते होंगे और कई सारे सुने भी होंगे. 50 हजार गजल गाना, रिकॉर्ड बनाना, फिर गले का कैंसर हो जाना. इस जिंदगी में कई पल ऐसे हैं जिन पर सफे-पे सफे लिख गए हैं. लेकिन सबसे शुरुआती किस्से की बात कम ही होती है.
बंटवारे का दंशा झेला
दरअसल हसन के अब्बा हुजूर परिवार को लेकर पाकिस्तान गए. बंटवारा हो गया था तो उसकी आग में घर-मकां, जमीन-रुपये सब झुलस गए. बच गए थे तो तब के 10 हजार रुपये. अब्बा सोच रहे थे कि परिवार का पेट पालने के लिए लकड़ी टाल खोल लूं. 20 साल के हसन (Mehdi Hassan) को यह ठीक नहीं लग रहा था. बोले-रजवाड़ों में लोगों की सलामी लेने वाले हाथ लकड़ी बेचते कैसे लगेंगे. उन्होंने अपने पिता से पैसे मांगे.
पिता की छाती को बेटे पर हुआ गर्व
20 साल के बेटे की बात पिता को बहुत गंभीर नहीं लगी, लेकिन न जाने क्यों उन्होंने 10 रुपये दे दिए. हसन 10 रुपये लेकर पुरानी चीचावतनी (शहर) गए. एक छोटी सी दुकान ली. दस रुपये में प्लास, कैंची, पंप ये सब लिया और साइकिल वर्कशॉप खोल ली. पहले दिन से कमाई शुरू हो गई. रोज 20 रुपये तक कमाते और चौथाई हिस्सा अब्बा को देते. एक दिन जब अच्छी तादाद में पैसे हो गए तो पूछा ‘अब आप लकड़ी तो नहीं बेचेंगे? हसन जैसा बेटा पाकर अब्बा खुशी के आंसू में डूब गए.
जगजीत सिंह के साथ का किस्सा
हसन साहब (Mehdi Hassan) का एक किस्सा जगजीत सिंह के साथ वाला काफी जाना हुआ है. जगजीत सिंह कॉलेज टाइम में खां साहब की गजलें गाया करते थे. मेहदी हसन (Mehdi Hassan) उनके लिए प्रेरणा थे, लेकिन मुलाकात नहीं हुई थी कभी.
ये शायद 1980 की बात है. एक शाम अभिनेत्री रीना राय के घर जगजीत सिंह की महफिल थी. रेखा, संजीव कुमार, विनोद खन्ना भी मौजूद थे. जगजीत सिंह ने गाना शुरू किया उनके साथ तबले पर सरफराज संगत करने लगे.
हसन और जगजीत की मुलाकात
महफिल जारी थी कि इसी बीच शत्रुघ्न सिन्हा गुलजार और मेहदी हसन (Mehdi Hassan) को ले आये. हसन जगजीत को सुनते रहे. जगजीत सिंह ने गजल खत्म की और मेहदी हसन को देखकर पैर छू लिए. हसन साहब ने उन्हें उठाकर सीने से लगा लिया और उनका गला चूम लिया.
जब हरिहरन बन गए रिपोर्टर
इसी साल की शुरुआत में एक किस्सा संगीतकार-गायक हरिहरन ने भी बयां किया था. वह कॉमेडियन कपिल के शो में आए थे. बताने लगे कि 1975 में मेहदी हसन मुंबई आए थे. उनसे मिलने की बड़ी तम्मना थी, लेकिन कोई तरीका नहीं निकल रहा था. फिर उन्होंने एक राइटिंग पैड लिया, शर्ट में कलम खोंसी और मेहदी हसन (Mehdi Hassan) से मिलने चल पड़े. पत्रकारों वाले गेटअप में थे. जैसे ही हरिहरन मेहदी हसन के रूम के करीब पहुंचे उनकी मुलाकात मेहदी हसन जी के बड़े बेटे तारिक से हुई, उन्होंने तारिक से कहा कि ” मैं एक अखबार से आया हूं मुझे हसन साहब से मिलकर उनका इंटरव्यू लेना है”
कुछ देर बैठने के बाद मेहदी हसन (Mehdi Hassan) आए और बोले, कहिए क्या बातें करनी हैं? हसन को देखते ही हरिहरन सच बोल पड़े. 'सर मैं कोई पत्रकार नहीं हूं मैं एक गायक हूं मुझे आप से मिलना था इसलिए मैं आपसे इस तरह मिलने आ गया” हरिहरन ने बताया कि इतना कहते ही वो मेहदी हसन के पैरों पर गिर गए. हसन ने उन्हें भी अपना प्यार दिया.
सिर्फ गीतों-गजलों के पहलवान ही नहीं थे मेहदी
मेहदी हसन (Mehdi Hassan) सिर्फ गीतों-गजलों के कसरती नहीं थे. असल में पहलवानी उनके जिस्म-ओ-जां में थीं. एक तो शेखावटी इलाका. मजबूत राजस्थानी लोग. मेहदी हसन की खानगी-खुराक बड़ी तगड़ी थी. हसन बाल्टी में 6 सेर दूध पीते थे. दिन में 3 पाव सेर घी, आधा सेर- 3 पाव गोश्त, दो मुट्ठी बादाम की गिरी खाते थे.
बुजुर्गों ने सिर्फ गले की ही कसरत नहीं कराई, पहलवानी वर्जिश भी खूब कराई थी. 7 साल के हसन के लिए दौड़ना, दंड-बैठक करना, अखाड़े जाना रोजाना इतनी जरूरी था जितना कि ठुमरी में लंबे आलाप लेना, सपाट से तान में ऊंची-नीची लहर पैदा करना, टप्पे गाते हुए उनमें ऐसी-ऐसी मींड-कड़क भरना कि सुनने वाले कह ही दें, अरे वाह, क्या कमाल, बा कमाल...
और अब आज की बात
इश्क हुआ हो, या अभी पनप रहा हो, पनपते-पनपते रह गया हो या कोई खरोंच दे गया हो. मेहदी हसन (Mehdi Hassan) की गजलें इन सारी कंडीशन के लिए हवा, पानी, ताप, मरहम और साकी सब हैं. 40 की उमर वाले ये बात बखूबी मानते हैं, 35 वाले जानते हैं, 30 वाले समझ रहे हैं और 25 वाले न मानें तो एक बार रैप-वैप छोड़ कर मेहदी हसन (Mehdi Hassan) को सुन लें. न मान जाएं तो कहना.
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