ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़कर 27 % हुआ, इस राज्य में एससी/एसटी रिजर्वेशन भी बढ़ा

सीएम ने कहा, राज्य में पिछड़ों को सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. इस राज्य में कर्मचारियों को उनका हक मिलेगा. साथ ही एसी एवं एसटी वर्ग के आरक्षण में दो-दो प्रतिशत की वृद्धि करने का फैसला किया.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 15, 2022, 08:09 AM IST
  • झारखंड ने ‘स्थानीयता’ के लिए 1932 खतियान को आधार बनाया
  • एसी एवं एसटी वर्ग के आरक्षण में 2-2 प्रतिशत की वृद्धि करने का फैसला
ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़कर 27 % हुआ, इस राज्य में एससी/एसटी रिजर्वेशन भी बढ़ा

रांची: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने बुधवार को प्रदेश में ‘स्थानीयता’ तय करने के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाने का निर्णय लिया है. वहीं सरकार राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को मौजूदा 14 प्रतिशत के बजाय 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है, साथ ही एसी एवं एसटी वर्ग के आरक्षण में दो-दो प्रतिशत की वृद्धि करने का फैसला किया. राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के मंडरा रहे खतरे के बीच यह फैसला लिया गया है.

कुल रिजर्वेशन 77 फीसद पहुंचा
सरकार के फैसले पर अमल होने के साथ राज्य में ओबीसी, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का कुल आरक्षण 77 प्रतिशत हो जाएगा. झारखंड सरकार की मंत्रिमंडल सचिव वंदना डाडेल ने बुधवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में आज यहां हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के फैसले लिये गये. 

उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने ‘स्थानीयता’ की नीति 1932 के खतियान के आधार पर तय करने और पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने समेत विभिन्न वर्गों के लिए कुल 77 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित करने के लिए अलग-अलग विधेयक राज्य विधानसभा में पेश किये जाने की स्वीकृति प्रदार की. 

स्थानीय लोगों को परिभाषित किया जायेगा
उन्होंने बताया कि स्थानीयता की नीति में संशोधन के लिए लाये जाने वाले नये विधेयक का नाम ‘झारखंड के स्थानीय निवासी की परिभाषा एवं पहचान हेतु झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा एवं परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022’ होगा. 

वंदना डाडेल ने बताया कि इस विधेयक के माध्यम से राज्य में स्थानीय लोगों को परिभाषित किया जायेगा और आज के मंत्रिमंडलीय फैसले के अनुसार अब राज्य में 1932 के खतियान में जिसका अथवा जिसके पूर्वजों का नाम दर्ज होगा उन्हें ही यहां का स्थानीय निवासी माना जायेगा. उन्होंने बताया कि जिनके पास अपनी भूमि या संपत्ति नहीं होगी उन्हें 1932 से पहले का राज्य का निवासी होने का प्रमाण अपनी ग्राम सभा से प्राप्त करना होगा.

आरक्षण में बदलाव कितना
उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने विधानसभा में ‘झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण:अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिएः अधिनियम 2001 में संशोधन हेतु विधेयक 2022’ पेश करने का फैसला किया, जिसमें अनुसूचित जातियों के लिए राज्य की नौकरियों में आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण प्रतिशत 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 28 प्रतिशत और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की व्यवस्था होगी. 

उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडलीय ने इस प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए भी दस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने का फैसला किया.  पिछले वर्गों में अत्यंत पिछड़ों के लिए 15 प्रतिशत और पिछड़ों के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था किये जाने का निर्णय लिया गया है. 

क्या बोले सीएम हेमंत सोरेन
सत्तारूढ़ पक्ष का आरोप है कि इस तरह की संशय की स्थिति पैदा कर राज्य में विधायकों की खरीद फरोख्त की कोशिश की जा रही है, ताकि सरकार को अस्थिर किया जा सके. 

मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सचिवालय में मीडिया से बातचीत करते हुए हेमंत सोरेन ने कहा, ‘‘राज्य सरकार ने आज अनेक ऐतिहासिक फैसले किये. राज्य ने आज निर्णय ले लिया है कि यहां 1932 का खतियान लागू होगा. राज्य में पिछड़ों को सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. इस राज्य में कर्मचारियों को उनका हक मिलेगा.’’ उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी सरकार की स्थिरता को लेकर विपक्षी माहौल को दूषित कर रहे हैं. सोरने ने दावा किया, ‘‘ मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि मेरी सरकार को कोई खतरा नहीं है.’’

क्यों लिए गए ये फैसले
ऐसा माना जाता है कि राज्य में अपने नाम खनन पट्टा आवंटित करवाने के कारण मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार पर खतरा मंडराने की आशंका है, इसलिए उन्होंने राजनीतिक रूप से अहम नीतिगत फैसले लिए हैं. माना जा रहा है कि चुनाव आयोग ने उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर अपना निर्णय 25 अगस्त को राज्यपाल के पास भेज दिया था, लेकिन राज्यपाल ने अभी तक इस बारे में अपना फैसला नहीं सुनाया है जिससे राज्य सरकार पिछले लगभग तीन सप्ताह से संशय की स्थिति में है. 

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