क्या यूपी कांग्रेस को गर्त में डुबो रहीं हैं प्रियंका गांधी?
उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की खोई साख को जो वापस लाने का फंडा इस्तेमाल किया जा रहा है, वह पार्टी को और नुकसान ही पहुंचा रहा है. यूपी में पार्टी की कमान संभाल रहीं महासचिव प्रियंका गांधी के खिलाफ ही बगावत की आवाजें उठने के आसार नजर आने लगे हैं. प्रदेश में पार्टी के वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता उनकी अनदेखी किए जाने को लेकर कांग्रेस से मुंह मोड़ने की तैयारी में हैं.
लखनऊ: कांग्रेस के साथ दिक्कतें यह है कि पार्टी समन्वय से कम आलाकमान के फैसले पर ज्यादा चलने की कोशिश करती रहती है. यह कांग्रेस का अध्यक्ष चुनते वक्त भी देखा जा चुका है या फिर तब भी जब किसी मुद्दे पर पार्टी को फैसला लेना हो. अक्सर यह शिकायतें मिलती रहती हैं कि पार्टी के अंदर एक स्वस्थ्य लोकतांत्रिक माहौल की भारी कमी है. अब एक और बार उत्तरप्रदेश में पार्टी के पुराने नेताओं की नाराजगी इस बात पर सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या कांग्रेस आलाकमान के इस रवैये से राज्य में उसके अच्छे दिन लौटेंगे ? सवाल यह भी है कि क्या प्रियंका गांधी के जिस करिश्माई छवि का ढ़ोल उनके राजनीति में कदम रखने से पहले बजाया गया था, वह एक जुमला मात्र था ?
गिने-चुने नेताओं के साथ कैसे पूरी हुई मीटिंग
सवाल है तो जवाब भी होंगे ही. लेकिन जवाब निकालने से पहले जरूरी है जान लेना कि हुआ क्या है और पार्टी की उत्तरप्रदेश में अपने पुराने नेताओं से किस बात पर अनबन है. दरअसल, कांग्रेस प्रभारी बनाए जाने के बाद से ही प्रियंका गांधी प्रदेश में आमूलचूल बदलाव करने की पक्षधर रही हैं. प्रियंका पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए प्रदेश में पुराने नेताओं की वजह से जो समस्याएं आईं, उसे दूर करने की जद्दोजहद में लग गईं. जाहिर है, उसके लिेए उन्हें सभी नेताओं से मिलना था, उनका कहा सुनना था और तब कुछ फैसला लेना था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. प्रदेश प्रभारी ने बड़ी अजीब तरह से पार्टी के मात्र 40 गिने-चुने नेताओं को बैठक में आमंत्रित किया और सिर्फ उतने प्रतिनिधियों या यूं कहें कि करीबीयों की बात सुन ली गईं. उधर तकरीबन 350 सांसदों और विधायकों में से जो नहीं बुलाए गए, वे अपनी बारी का इंतजार करते रह गए.
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दो बैठकों में क्या-क्या हुआ खेल ?
पार्टी की ओर से प्रदेश में कम से कम दो बैठकें अब तक हो चुकी हैं और तीसरी प्रस्तावित है. इन बैठकों में जो शामिल न हो सके या यूं कहें कि बुलाए नहीं गए, उनकी बात को छोड़ दें तो जो नेता आए तो या बुलाए गए थे, वे भी पार्टी के हालिया रवैये से काफी उखड़े-उखड़े ही नजर आए. कईयों ने तो यह फैसला किया है कि वे पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी से मिलेंगे और उनकी अनदेखी का कारण जानेंगे.
अब उन बैठकों की ओर एक नजर डालते हैं कि आखिर हुआ क्या है ...
- प्रियंका गांधी की अध्यक्षता में बुलाई गई पार्टी की पहली बैठक नवंबर के पहले हफ्ते में ही करा ली गई जिसमें यूपी के कांग्रेस नेता सिराज मेंहदी ने अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी को सुपूर्द किया, यह कहते हुए कि जो नई टीम बनाई गई है उसमें एक भी शिया मु्स्लिम नहीं हैं.
- दूसरी बैठक देश के पहले प्रधानमंत्री ज्वाहर लाल नेहरू की जयंती के दिन हुई. इसमें पार्टी नेताओं के बगावती तेवर देखने को मिले. पार्टी के किसी नेता ने प्रियंका गांधी वाड्रा की ओर इशारा करते हुए कहा कि पार्टी कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं.
- तीसरी बैठक अभी हुई तो नहीं लेकिन यह पार्टी नेता व पूर्व विधायक रंजन सिंह सोलंकी के आवास पर किए जाने को लेकर प्रस्तावित है. इसमें पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी से मिलने जाने वाली प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों को भी चुना जाएगा.
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पार्टी नेताओं की सहमति प्रियंका गांधी के नाम पर नहीं बन पा रही. ऐसे में सवाल यह उठता है कि "प्रियंका नहीं यह आंधी है, आज की इंदिरा गांधी है" का नारा इतनी जल्दी फेल कैसे हो गया ?