नई दिल्ली: पुरी में 12वीं शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर में चूहों का कहर इस कदर बढ़ गया है कि उनसे छुटकारा पाने के लिए हैमलिन के बांसुरीवाले की कहानी याद आ जाती है. चूहों ने मंदिर के अधिकारियों की नींद हराम कर रखी है क्योंकि उन्हें इनसे निजात पाने का कोई ठोस तरीका नहीं सूझ रहा है.
कई गुना बढ़ गई है चूहों की आबादी
चूहों की आबादी कोविड-19 महामारी के मद्देनजर श्रद्धालुओं की अनुपस्थिति के दौरान कई गुना बढ़ी गई है और ये 'रत्न सिंघासन' (पवित्र वेदी) पर विराजमान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा के परिधानों को कुतरते रहते हैं.
मंदिर की देखभाल में लगे लोग (सेवादारों) और पुजारियों ने चेतावनी दी है कि चूहें देवताओं की लकड़ी से बनी मूर्तियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, हालांकि मंदिर के प्रशासक जितेंद्र साहू ने ऐसी आशंका को खारिज कर दिया. एक सेवादार रामचंद्र दासमहापात्र ने कहा, 'मंदिर के गर्भगृह में कुछ चूहे थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद उनकी संख्या में काफी वृद्धि हुई है.'
देवताओं को चढ़ाए गए फूलों को खा जाते हैं चूहे
देवताओं को मालाओं से सजाने वाले सेवादारों के समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले सत्यनारायण पुष्पलक ने कहा कि जब पुजारी अनुष्ठान करने हैं तो चूहे उस दौरान समस्या पैदा करते हैं. पुष्पलक ने कहा, 'देवताओं को चढ़ाए गए फूलों को चूहे खा जाते हैं और देवताओं के मूल्यवान परिधानों को कुतर कर ले जाते हैं.'
जगन्नाथ संस्कृति के एक शोधकर्ता भास्कर मिश्रा ने कहा, 'हालांकि चूहें 'गरवा गृह' (गर्भगृह) में उपद्रव पैदा करते हैं, लेकिन सेवादारों को जानवरों को मारने या उन्हें मंदिर के अंदर जहर देने की अनुमति नहीं है.
मंदिर के प्रशासक जितेंद्र साहू ने बताई परेशानी
मंदिर के प्रशासक जितेंद्र साहू ने कहा कि श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) चूहों के खतरे से वाकिफ है. साहू ने कहा, 'हम चूहों को जिंदा पकड़ने के लिए जाल बिछा रहे हैं और वर्षों से अपनाए गए प्रावधानों के अनुसार उन्हें बाहर छोड़ रहे हैं. हमें मंदिर में चूहे मारने की दवा का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है.
यह देखते हुए कि देवताओं की काष्ट मूर्तियों को कोई खतरा नहीं है, साहू ने कहा कि उन्हें नियमित रूप से चंदन और कपूर से पॉलिश किया जा रहा है. पुरी के वन्यजीव प्रभाग ने कहा कि जगन्नाथ मंदिर के परिसर में बंदर, चमगादड़, कबूतर और यहां तक कि सांप भी पाए जा सकते हैं. हैमलिन का बांसुरीवाला, एक जर्मन लोककथा है.
(इनपुट: भाषा)
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