नई दिल्ली. सीमा पर चीनी और भारतीय सैनिकों के एक दूसरे के सामने तन कर खड़े होने के परिदृश्य में एक प्रश्न जो पिछले साढ़े तीन हफ़्तों से हर भारतीय के मस्तिष्क में उभर रहा है - क्या भारत और चीन की जंग हो सकती है? इसका जवाब जब वक्त ने दिया है और चीन ने अपने आक्रमक तेवरों में नरमी दिखाई है तो हमारी इस सोच में सच्चाई नज़र आती है कि भारत से नहीं भिड़ेगा चीन.
रक्षामंत्री की सेनापतियों के साथ मीटिंग क्या कहती थी?
तीन कारण स्थिति की गंभीरता को दर्शाते हैं. एक तरफ तो लद्दाख सीमा से दोनों देशों के जवानों के बीच तनातनी का समाचार आ रहा है दूसरी ओर भारत में रक्षामंत्री ने सेना के तीनो प्रमुखों से बात की और फिर प्रधानमंत्री के साथ सलाह-मशवरा किया. देश में कोरोना के गहराते संकट के माहौल में यदि सर्वोच्च प्रशासन द्वारा भारत-चीन मसले पर घंटों का समय लगाया जा रहा है तो यह सामान्य बात नहीं लगती.
सीमा पर चीन की सैन्य तैयारी क्या दर्शाती थी?
लद्दाख और उत्तरी सिक्किम की एलएसी के पार चीनी क्षत्र में तीन-चार स्थानों पर चीनी सेनाओं के असाधारण जमावड़े को क्या कहा जाये? यहां आसपास चीन ने पहले ही अपनी सीमा के निकटवर्ती क्षेत्र में मजबूत सड़कें, बंकर और फौजी अड्डे तैयार किये हुए हैं. अब यहां प्रत्येक चौकी पर उसने चीनी सैनिकों की तादात में भारी बढ़ोत्तरी भी कर दी है. सेटेलाइट से मिली छवियों से पता चला है कि सीमा के पास दो सौ मील दूरी पर उसने अपने चार जंगी जहाज़ भी तैयार कर दिए हैं.
चीनियों की थोक वापसी के ऐलान का अर्थ क्या था?
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. यह बहुत गंभीर विषय है कि चीन ने भारत में काम कर रहे अपने कर्मचारियों, अधिकारियों, व्यापारियों तथा यात्रियों को वापस चीन ले जाने का यकायक ऐलान भी कर दिया है. किसी देश से अपने नागरिकों को इस तरह व्यापक स्तर पर वापस ले जाना क्या संदेश देता है? किसी देश से अपने नागरिकों की ऐसी थोक वापसी किसी देश द्वारा तभी की जाती है जब उसे जंग के हालात नज़र आते हैं.
तनाव बढ़ाने में ग्लोबल टाइम्स का योगदान
युद्ध के आसन्न संकट की आशंका को हवा देने के काम में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंग्रेजी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भी अपना पूरा निकम्मा योगदान दिया है. हाल में ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख ने भारत को धमकी भी दी थी. यद्यपि उसको उसकी आक्रामकता के लिए सावधान किया गया है तथापि चीन ने अपने मुखपृष्ठ के माध्यम से भारत को गंभीर सलाह दी थी कि चीन को अमेरिका के चश्मे से देखना बंद करे.
क्या दुनिया का ध्यान भटकाने की रणनीति थी?
यह चीनी रणनीति भी हो सकती है कि सीमा विवाद के बहाने से भारत से दो-दो हाथ करेंगे तो दुनिया का ध्यान भटकाया जा सकता है. या इस बात को ऐसे कहें कि कोरोना-कॉन्सपिरेसी का आरोपी चीन भारत-चीन युद्ध के मैदान में दुनिया के गुस्से को ठंडा कर देना चाहता है. चीन से उखड़ कर भारत आने की संभावना वाले अमेरिकी उद्योग-धंधे चीन को परसन्ताप की आग में झोंके हुए है. इसलिए बहाने से भारत से भिड़कर चीन अपनी भड़ास भी निकालना चाहता है और दुनिया को भी एक धमकी भरा संदेश भी लगे हाथ देना चाहता है.
चीन बनिया देश है, योद्धा देश नहीं
इन सभी सशक्त तर्कों के आधार पर आशंका होती है कि चीन वास्तव में भारत जंग करने का मन बना चुका था. किन्तु सच तो ये है कि आज की वैश्विक परिस्थितियां न चीन को न ही भारत को युद्ध करने की अनुमति देते हैं. चीन विस्तारवादी अवश्य है किन्तु युद्धवादी नहीं. ये वही चीन है जो जापान और ताइवान को धमकियां तो देता रहा पर कर कुछ भी न सका. ये वही चीन है जो हॉन्ग कॉन्ग और दक्षिण कोरिया पर अंकुश नहीं लगा सका है. इसलिए सिर्फ 1962 के युद्ध की यादों वाली ट्रॉफी चमकाते हुए बार-बार भारत को ललकारना और बात है, लेकिन वास्तव में भारत से भिड़ना और बात.
गीदड़ भभकी देने की घटिया कोशिश है चीन की
आज की स्थिति ये है कि भारत के लिये वैश्विक अवसर का उदय हो रहा है और चीन के लिये वैश्विक परिस्थितियां विकट हो रही हैं. दुनिया के लिये भारत में नया बाजार तैयार हो रहा है तो चीन के लिये दुनिया में संदेहों और आरोपों के मोर्चे खुल रहे हैं. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ताईवान, हांगकांग के बाद अब भारत से पंगा लेना चीन के लिये समझदारी नहीं होगी. इसलिये भारत को दबाव में लेने की मूर्खतापूर्ण कोशिश की है चीन ने. लेकिन इस तरह भारत को अब उसने चीन से सदा सावधान रहना भी सिखा दिया है.
नेतृत्व व आत्मविश्वास के मुकाबले में भारत रहा सफल
प्रजातांत्रिक भारत से ईर्ष्या करने वाली चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का नेता शी जिंगपिंग भारत के साथ दबाव की रणनीति आजमाना चाह रहा था. लेकिन आज के भारत का सशक्त नेतृत्व उस मजबूत इरादों वाले नेता के हाथों में है जिसे सारी दुनिया मोदी के नाम से जानती है. मोदी और उनके सेनापतियों ने शोर नहीं मचाया - न आक्रामक तेवर दिखाये न घबराने का अभिनय किया - बल्कि दुश्मन को उसी के अन्दाज में जवाब देने की मजबूत और खामोश शैली गुरु-गंभीर नजर आई और इसे हल्के में लेने की कोई गल्ती चीन ने नहीं की.
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