Supreme Court: सर्वोच्च न्यायालय ने आठ कारक निर्धारित किए हैं जिन्हें स्थायी गुजारा भत्ता राशि तय करते समय ध्यान में रखना आवश्यक है. शीर्ष अदालत का यह आदेश बेंगलुरू के एक तकनीकी विशेषज्ञ की मौत को लेकर चल रही बहस के बीच आया है. दरअसल, 34 वर्षीय एक निजी कंपनी में सीनियर एग्जीक्यूटिव अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर उत्पीड़न और जबरन वसूली का आरोप लगाया था. जहां बाद में उन्होंने सुसाइड कर ली.
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने मंगलवार को तलाक समझौते के एक मामले की सुनवाई करते हुए आठ सूत्री फार्मूला सूचीबद्ध किया.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि इस मामले में अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र के अनुसार, दंपति के विवाह में हर पहलू 'खत्म हो चुका था', लेकिन कोर्ट ने पाया कि पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता देने पर ही विचार करने की जरूरत है.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आठ कारक
1. पक्षकारों की सामाजिक और वित्तीय स्थिति
2. पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित जरूरतें
3. पक्षकारों की व्यक्तिगत योग्यताएं और रोजगार की स्थिति
4. आवेदक के स्वामित्व वाली स्वतंत्र आय या संपत्तियां
5. वैवाहिक घर में पत्नी द्वारा भोगा जाने वाला जीवन स्तर
6. पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए किया गया किसी भी तरह का रोजगार त्याग
7. कामकाजी न करने वाली पत्नी के लिए उचित मुकदमेबाजी की लागत
8. पति की वित्तीय क्षमता, उसकी आय, भरण-पोषण की जिम्मेदारियां और देनदारियां
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि ये कारक कोई 'सीधा फार्मूला' नहीं हैं, बल्कि स्थायी गुजारा भत्ता तय करने के लिए एक 'दिशानिर्देश' हैं.
अपने पिछले निर्णयों में से एक (किरण ज्योत मैनी बनाम अनीश प्रमोद पटेल) का हवाला देते हुए, शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, 'जैसा कि हमने किरण ज्योत मैनी में कहा था, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि स्थायी गुजारा भत्ता की राशि पति को दंडित न करे, बल्कि इसे पत्नी के लिए एक सभ्य जीवन स्तर सुनिश्चित करने के उद्देश्य से देखा जाना चाहिए.'
उल्लेखनीय है कि बेंगलुरू स्थित तकनीकी विशेषज्ञ की आत्महत्या पर नाराजगी के बीच, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अन्य मामले में महिलाओं द्वारा अपने पतियों के खिलाफ दर्ज कराए गए वैवाहिक विवाद के मामलों में क्रूरता कानून के दुरुपयोग के खिलाफ चेतावनी दी थी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि क्रूरता कानून का दुरुपयोग 'प्रतिशोध के लिए व्यक्तिगत उपकरण' के रूप में नहीं किया जा सकता.
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