नई दिल्लीः हस्तिनापुर के महाराज थे धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर उनके भतीजे. धृतराष्ट्र ने सत्ता के लालच में भतीजे की ओर से आंखें फेर रखी थीं. इसके नतीजे में महाभारत युद्ध हुआ, युधिष्ठिर ने कृष्ण के साथ मिलकर सत्ता पलट दी. यह कहानी पौराणिक है और इसे भले ही इतिहास के तौर पर मान्यता न दी जाए, लेकिन भारतीय राजनीति के कई अध्यायों का आधार यही कहानी बनाती है. आज इस कहानी का जिक्र इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र की विधानसभा में खाली पड़ी सीएम कुर्सी पर करीब एक महीने बाद फिर से देवेंद्र फडणवीस बैठ चुके हैं. अपने साथ डिप्टी सीएम लेकर आए हैं. नाम है अजीत पवार, अजीत एनसीपी से हैं. सबसे बड़ी बात शरद पवार के भतीजे हैं.
... तो शरद-अजीत के बीच, चाचा-भतीजा बोल्ड में लिखने की वजह ?
आप कहेंगे कि इसमें क्या बड़ी बात, दोनों चाचा-भतीजे हैं तो है. तो ध्यान दीजिए एक मीम पर. सोते रहे चाचा पवार, भतीजा बना ले गया सरकार. दरसअल शनिवार की सुबह पौने छह बजे राष्ट्रपति ने अपना शासन हटाने की घोषणा की. आठ बजे तक देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ली और अजीत ने डिप्टी सीएम पद अपनाया. हर तरफ न्यूज फ्लैश. देवेंद्र फिर बने सीएम. एनसीपी ने दिया समर्थन. सभी चौंकने ही वाले थे कि एक और न्यूज ब्रेक हुई. शरद पवार का बयान था कि भाजपा को समर्थन देना अजीत का अपना फैसला.
एनसीपी इसके समर्थन में नहीं है. अब लोगों के पास चौंकने के लिए दोहरी बातें थीं. दीदे फैलाकर लोग पूछते दिखे. तो क्या भतीजे ने चाचा से बगावत कर ली? यह सवाल भारतीय राजनीति में ऐसा उछला कि एक-एक कर करके सारे भतीजे याद आ गए. जो चाचा की उंगली पकड़कर तो चले, लेकिन कुछ दिन बाद कहते दिखे.. 'चचा... ओ चचा.. ओ...चचा.' समझ तो रहे ही हैं आप.
NCP Chief Sharad Pawar: Ajit Pawar's decision is against the party line and is indiscipline . No NCP leader or worker is in favour of an NCP-BJP government pic.twitter.com/1AiEL4IUfC
— ANI (@ANI) November 23, 2019
अभी-अभी किंगमेकर बने दुष्यंत चौटाला तो याद हैं न
ले चलते हैं हरियाणा की ओर. पौराणिक लिहाज से यह वही भूमि है जहां महाभारत का युद्ध हुआ था. काल गणना के हिसाब से 5000 साल बाद यहां की राजनीति में फिर से चाचा-भतीजा संघर्ष देखने को मिला. हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार की शख्शियत कद्दावर रही है. यहां का राजनीतिक अखाड़ा ताऊ देवीलाल का खोदा हुआ है. ओमप्रकाश चौटाला ने इस पर विपक्षियों को कई बार धोबी पछाड़ दी है. उनके बेटे हैं अभय चौटाला-अजय चौटाला. अजय चौटाला अपने पिता ओमप्रकाश के साथ शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में जेल गए.
चौटाला परिवार की विरासत छोटे भाई अभय के हाथों आई. अभय खुद को सीएम पद का दावेदार मानने लगे. भतीजे दुष्यंत ने छोटे भाई के सहयोग से युवा समर्थन लूट लिया. दिसंबर 2018 में परिवार में राजनीतिक रार हुई और भतीजा दुष्यंत अलग पार्टी बनाकर जननायक बना हुआ है. महाराष्ट्र के साथ ही हरियाणा के भी भाग्य का फैसला हुआ. दुष्यंत डिप्टी सीएम बने. चचा मुंह देखते रह गए.
चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश को भी याद कर लें
उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. इससे ठीक 10 महीने पहले 2016 में सपा का पारिवारिक बिखराव अखबारों की सुर्खियां बनने लगा. इस त्रिकोणीय रार में एक कोने पर सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव खड़े थे. जो तभी से बीमार हैं. साफ-साफ बोल नहीं पाते हैं और तुरंत ही भूल जाते हैं. उनके सामने एक कोने पर बेटा अखिलेश खड़ा था, दूसरे कोने पर भाई शिवपाल. चाचा शिवपाल खुद को मुलायम सिंह यादव के बाद सपा का उत्तराधिकारी समझते थे.
जबकि मुलायम ने पहले ही एक बार अखिलेश को सीएम बनाकर यह संकेत दे दिया था कि उत्तराधिकारी बेटा ही रहेगा. हालांकि रार वाले माहौल में सपा मुखिया अधिकतर चुप ही रहे. अखिलेश ने अपने साथ बड़ी संख्या में युवा समर्थन दिखाया तो फिर चाचा ने नई पार्टी बनाकर निकल लेना ही ठीक समझा. अब शिवपाल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाकर प्रगति की राह देख रहे हैं.
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शिवसेना के इतिहास में भी है चाचा-भतीजा'वाद'
शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे में अपने भाषणों से लोगों को बांधने की जो कला थी, राज ठाकरे ने उन्हें देख-सुनकर वह खुद में उतार ली थी. उद्धव ठाकरे अपने पिता से यह सब नहीं सीख पाए थे. 2004 के दौर में राज ठाकरे सीधे तौर पर शिवसेना के भावी कर्णधार माने जाते थे. इसके विपरीत उद्धव को शांत और साथ ही उलझा हुआ किरदार समझा जाता रहा है. उनका उलझा हुआ होना आज स्पष्ट तौर पर सामने दिख रहा है. इसके विपरीत राज ठाकरे वही दमखम रखते थे जो शिवसेना के लिए बाला साहब ठाकरे रखते थे.
लेकिन 2006 आते-आते जब राज ठाकरे को चाचा की छांव में अपना अस्तित्व दिखना बंद हो गया तो उन्होंने उनके खिलाफ बगावत कर दी. अलग हो गए और नई पार्टी बना ली. आज उद्धव भले ही ठाकरे की विरासत आगे ले जाने की कोशिश में हैं, लेकिन अब शिवसेना की राजनीति सिर्फ खात्मे की कगार पर दिख रही है. इसकी नींव 2006 में एक भतीजे की बगावत में रखी गई थी.
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पंजाब में भी चाचा पर छाए थे संकट के 'बादल'
हरियाणा से दो कदम ऊपर बढ़ें तो आपके पैरों के नीचे जो जमीन आएगी उसे पंजाब कहते हैं. यहां की सत्ता की चाबी शिरोमणि अकाली दल के सबसे बड़े नेता प्रकाश सिंह बादल के कुर्ते की जेब में थी. एक दिन इसी कुर्ते में उनके प्रिय भतीजे ने हाथ डाल दिया. 15 जनवरी 2016 को मनप्रीत सिंह बादल के नेतृत्व वाली पंजाब पीपुल्स पार्टी कांग्रेस में मिल गई. इससे शिअद को गहरा झटका लगा. दरअसल मनप्रीत इससे पहले प्रकाश सिंह बादल की सरकार में वित्त मंत्री थे.
इस दौरान उन्होंने पंजाब का युवा जनाधार अपने हक में किया. इधर चाचा बादल बेटे सुखबीर सिंह बादल का राजनीतिक करियर बनाने की कोशिश में जुटे थे. मनप्रीत को यह रास नहीं आ रहा था. उन्होंने बगावत करनी शुरू कर दी और नई पार्टी बना ली. इसके बाद 2017 में पंजाब में कांग्रेस ने सरकार बना ली और चाचा देखते रह गए.
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