क्या यूपी में ओवैसी बिगाड़ेंगे अखिलेश और मायावती का खेल? समीकरण समझिए

AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ZEE मीडिया से कहा है कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है क्या ओवैसी का ये फैसला क्या यूपी में अखिलेश और मायावती का खेल बिगाड़ देगा.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jun 29, 2021, 07:36 AM IST
  • क्या यूपी चुनाव में ओवैसी की एंट्री से बीजेपी को होगा फायदा?
  • बिहार की तरह करेंगे कमाल या बंगाल की तरह होंगे कंगाल?
क्या यूपी में ओवैसी बिगाड़ेंगे अखिलेश और मायावती का खेल? समीकरण समझिए

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश चुनाव में अभी 6 महीने का वक्त है, लेकिन सरगर्मी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है. तरह-तरह के सवालों पर चर्चा शुरू हो गया है और इस चर्चा के पीछे की वजह है असदुद्दीन ओवैसी का ऐलान.

यूपी में ओवैसी के 3 बड़े ऐलान

ओवैसी ने पहला ऐलान ये किया कि उनकी पार्टी 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. उन्होंने दूसरा ऐलान ये किया कि हमारी किसी से कोई बात नहीं है और AIMIM अध्यक्ष का तीसरा ऐलान ये था कि वो अगले हफ्ते लखनऊ जा रहे हैं.

राजनीतिक दलों की शुरुआती तैयारियों के समझें तो यूपी चुनाव में एक ओर बीजेपी है तो दूसरी समाजवादी पार्टी.. जबकि वोट बैंक के हिसाब से बीएसपी तीसरी बड़ी ताकत है.

बीजेपी के पास हिंदुवादी वोट हैं, तो समाजवादी पार्टी के पास यादव वोट और बीएसपी के पास दलित वोट.. ऐसे में यूपी में मुस्लिम वोटर जिसके साथ जाएंगे वो पार्टी बीजेपी को टक्कर देने में सबसे आगे रहेगी. मौजूदा स्थिति में मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी की ओर ही दिख रहा है.

ओवैसी ने ZEE मीडिया से क्या कहा EXCLUSIVE

मुस्लिम वोटों पर ये सारे कयास और सवाल इसलिए हैं क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी ने ऐलान किया कि यूपी में उनकी पार्टी 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. हैदराबाद में ज़ी मीडिया से EXCLUSIVE बातचीत में ओवैसी ने यूपी का पूरा प्लान बताया.

उन्होंने कहा कि 100 सीटों पर चुनाव लडेंगें और अगले हफ्ते लखनऊ जाउंगा और राजभर से मुलाकात होगी. सिर्फ इतना ही नहीं ओवैसी ये भी दावा कर रहे हैं कि यूपी में AIMIM के लिए अच्छा स्पेस है.

उत्तर प्रदेश में जाति और धार्मिक समीकरण का हिसाब

असदुद्दीन ओवैसी यूपी में खुद के लिए अच्छा स्पेश क्यों बता रहे हैं इस समझने के लिए यूपी के जाति और धार्मिक समीकरण को समझना जरूरी है.

यहां समान्य  जाति से आने वाले लोगों की संख्या 24% है, वहीं अनुसूचित जाति/जनजाति के 21% लोग रहते हैं. इसके अलावा गैर यादव OBC की तादाद 24 फीसदी है. यादव की संख्या 10% है. यहां अन्य 3% और मुस्लिम 18% हैं.

हैदराबाद से बिहार और बंगाल के रास्ते AIMIM की ट्रेन अब यूपी पहुंची चुकी है. कभी हैदराबाद के इकलौते सांसद कहलाने वाले ओवैसी यूपी में इस बार 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले हैं. ओवैसी इन 100 सीटों पर मुस्लिम और पिछड़ी जातियों का गठजोड़ बनाना चाहते हैं.

अखिलेश-मायावती का काम बिगाड़ेंगे ओवैसी?

अगर ओवैसी इसमें कामयाब हो जाते हैं तो खतरा मायावती और अखिलेश को है जो मुस्लिमों और दलितों को अपना वोट बैंक मानते हैं. सवाल ये क्या ओवैसी यूपी में बीजेपी विरोधी मोर्चा का खेल खराब करेंगे? जैसा कि उन्होंने बिहार में RJD के साथ किया था.

उत्तर प्रदेश से पहले असदुद्दीन ओवैसी बिहार और बंगाल में विधानसभा के चुनाव लड़ चुके हैं. बिहार में तो उन्हें 5 सीटें मिली थी, लेकिन बंगाल में AIMIM की भारी फजीहत हुई. 7 सीटों पर AIMIM ने उम्मीदवार उतारे लेकिन एक भी सीट नहीं मिली. 7 में से एक भी सीट पर AIMIM के उम्मीदवारों को 1 हजार से ज्यादा वोट नहीं मिले. सभी सात सीटों पर AIMIM की जमानत जब्त हो गई थी.

यूपी में मुस्लिम बाहुल्य सीटों का गुणा-गणित

बंगाल में ओवैसी नाकाम हो गए थे, लेकिन यूपी की राजनीति बंगाल से अलग है. सबसे पहले ये समझिये कि ओवैसी यूपी में एंट्री क्यों चाहते हैं? यूपी में मुस्लिमों की आबादी 18% है. 80-85 सीटें मुस्लिम बाहुल्य हैं. जिलों के हिसाब से देखें तो रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, सराहानपुर, मुजफ्फरनगर और अमरोहा में 40% से ज्यादा मुस्लिम हैं. इन्हीं सीटों पर ओवैसी की नजर है.

बंगाल चुनाव में ट्रेंड जो वहां देखने के लिए मिला, वो ये था कि मुस्लिम सिर्फ उन्हीं को वोट कर रहे थे जो बीजेपी को हरा रही थी. बंगाल में ये वोट TMC को मिला था. यूपी के मुसलमान भी लगभग उसी पैट्रन पर वोटिंग कर सकते हैं. उसे ही वोट देंगे जो बीजेपी को हराएगी. ऐसे में मुसलमान समाजवादी पार्टी या बीएसपी के साथ जा सकते हैं. ओवैसी को यहां भी शायद ही ज्यादा कुछ हासिल हो.

अगर पश्चिमी यूपी की बात करें तो सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, कैराना, मेरठ, बरेली, आगरा, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा और बिजनौर जैसे जिलों में मुस्लिम मतदाता कई सीटों पर हार जीत तय करते हैं. ओवैसी इन्हीं सीटों पर अपने दावेदारी जता रहे हैं और ये भी दावा कर रहे हैं कि पंचायत चुनाव में उन्हें अच्छे वोट मिले हैं.

2017 में क्या था यूपी में ओवैसी की पार्टी का हाल?

ओवैसी भले ही ये दावा करें कि पंचायत चुनाव में उनके लिए अच्छा आधार है, लेकिन 2017 का यूपी चुनाव उनके लिए अच्छा नहीं रहा था. 2017 में सहारनपुर शहर सीट पर AIMIM को 693 वोट मिले थे. कैराना में 1365 वोट मिले थे. बिजनौर की नजीबाबाद में 2094 वोट मिले थे. नगीना में 4385 वोट और मुरादाबाद ग्रामीण सीट पर 3503 वोट मिले. यानी इन 5 जगहों में कहीं 5 हजार से ज्यादा वोट नहीं.

हालांकि मुरादाबाद की काँठ विधानसभा में AIMIM को 22,908 वोट मिले थे, और संभल में AIMIM को सबसे ज़्यादा 59,336 मिले थे.

2017 में कुछ जगहों पर ओवैसी को अच्छे वोट मिले थे. इस वजह से ओवैसी पिछले साल से ही यूपी के चक्कर लग रहे हैं. पिछले साल दिसंबर में लखनऊ आए थे. ओपी राजभर से मिले थे, दोनों ने तस्वीरें भी खिचाई थीं. और राजभर अब भी ये कह रहे हैं कि ओवैसी की पार्टी से उनका गठबंधन होगा.

राजभर जरूर साथ हैं, लेकिन मायावती ने ओवैसी को झटका दे दिया है और औवैसी से गठबंधन से इनकार कर दिया है. हांलाकि ओवैसी कह रहे हैं कि बीएसपी से कोई बात ही नहीं हुई है तो गठबंधन की बात कहां से आई.

मुस्लिम वोट बटेंगे और बीजेपी को होगा फायदा?

यूपी चुनाव में ओवैसी की एंट्री कोई नहीं बात नहीं है. 2017 में AIMIM यहां चुनाव लड़ चुकी है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या ओवैसी की यूपी में एंट्री से मुस्लिम वोट बटेंगे और बीजेपी को फायदा होगा?

यदि इस सवाल का जवाब वर्तमान के हालात को देखकर पाएंगे कि ऐसा मुश्किल है क्यों कि यूपी में मुस्लिम उसी को वोट देंगे जो बीजेपी को हराएगी. अगर ओवैसी बीएसपी के साथ गठबंधन में होते तो उन्हें मुस्लिम वोट बंटने की संभावना होती, लेकिन यहां के मुस्लिमों को पता है कि ओवैसी अकेले या छोटे दलों के साथ बीजेपी को नहीं हरा पाएंगे. इसलिए उन्हें यूपी में कितना फायदा होगा, ये देखना दिलचस्प है.

ओवैसी से क्यों दूरी बना रही हैं मायावती?

अब सवाल ये भी है इतनी बड़ी मुस्लिम आबादी होने के बाद ओवैसी को ना समाजवादी पार्टी और ना ही बीएसपी. दोनों में कोई अपने साथ क्यों नहीं लेना चाहती है, तो इसका जवाब है. ओवैसी की छवि...

आम हिंदुओं में ये छवि है कि ओवैसी मुस्लिमों के नेता है. ओवैसी के साथ चुनाव लड़ने पर हिंदू वोटर नाराज हो सकते हैं. कुछ वोटों के लिए ये पार्टियां हिंद वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती हैं. ओवैसी से गठबंधन होने पर हिंदू वोटर बीजेपी के पक्ष में गोलबंद हो सकते हैं.

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लखनऊ यानी नवाबों का शहर.. यहां निजाम के शहर हैदराबाद से एक नेता चुनाव लड़ने आ रहे हैं. लेकिन हर किसी की मेजबानी करने वाले इस शहर के सियासतदां निजाम के शहर से आने वाले नेता से दूरी बना रहा है. क्या नेता की तरह यहां की जनता भी ओवैसी से दूरी बनाएगी या फिर उन्हें गले लगाएगी.

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