UP Election 2022: आखिर नफरती भाषणों से क्या साधना चाह रहे हैं नेता?

साल 2022 में 5 राज्यों में चुनाव है, लेकिन सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश की जंग सबसे रोमांचक मोड़ पर है.  

Written by - Madhuri kalal | Last Updated : Dec 26, 2021, 01:29 PM IST
  • बढ़ रहा नफरती भाषणों का इस्तेमाल
  • धर्म के नाम पर देश का विभाजन क्यों?
UP Election 2022: आखिर नफरती भाषणों से क्या साधना चाह रहे हैं नेता?

नई दिल्ली: साल 2022 में 5 राज्यों में चुनाव है, लेकिन सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश की जंग सबसे रोमांचक मोड़ पर है. सत्ता में बैठी पार्टी बीजेपी अपने सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ अपना दावा मजबूत कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष का अहम किरदार निभा रही अखिलेश यादव की पार्टी अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव फॉर्मूले के साथ-साथ नए परशुराम दांव से ब्राह्मण-यादव फॉर्मूला साधने की फिराक में है.

उधर बहन जी की बीएसपी सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की तख्ती हाथ में लिए ब्राह्माणों की नई मसीहा बनना चाहती है. कांग्रेस अभी तक खुद की ही रणनीति को शायद समझ नहीं पा रही यानी पंडित, यादव, जाट, दलित और ब्राह्माण सबको संबोधित किया जा रहा है लेकिन यूपी के 19 फीसद मुसलमान की आवाज कोई नहीं.

राजनीति में बढ़ रहा नफरती भाषणों का इस्तेमाल
ओवैसी जो खुद को सियासी लैला कहते हैं. औवेसी का दावा है कि 2019 के बाद से वो हर उस क्षेत्र में प्रोएक्टिव दिखते हैं, जहां विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. अभी वे फिलहाल यूपी में है. 14 दिंसबर को कानपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कुछ ऐसा कहा जिसे अब हर जगह ट्रोल किया जा रहा है. औवेसी के मुताबिक, 'जब योगी मठ और मोदी पहाड़ों पर चले जाएंगे तो फिर तुम्हारा क्या होगा?'

उन्होंने ये बात शायद राजनैतिक द्वेष में कह दी लेकिन मायने ये रखता है कि कहां कही. औवेसी राजनीति में किसकी आवाज बनते है ये पूरा उनकी स्वतंत्रता है लेकिन वे अपनी बात से घृणा फैलाएं ये तो कतई मंजूर नहीं किया जा सकता.

2013 में औवेसी के ही छोटे भाई अकबरूद्दीन औवेसी ने कहा था कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो फिर देखो ये 25 करोड़ तुम 100 करोड़ का क्या कर सकते हैं.

धर्म के नाम पर देश का विभाजन क्यों?
धर्म के नाम पर जो भी व्यक्ति इस देश के विभाजन की बात करे, तो क्या उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए? देश के असल मूल्यों में तो हम सब एक साथ ईद और दिवाली मनाते हैं. लेकिन राजनीति में शायद ये एकता अंखड़ता किसी को फायदा नहीं पहुंचाती इसलिए राजनीतिक मंच का इस्तेमाल आसानी से इन्हीं मूल्यों की धज्जियां उड़ाता दिखता है.

औवेसी की हेट स्पीच के बाद उत्तराखंड के हरिद्वार में 17 से 19 दिसंबर को आयोजित धर्म संसद में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी की ओर से मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरी बातें कही गई, लेकिन संतों को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी समुदाय या किसी जाति पर अपमानजनक टिप्पणी करने पर इस देश का कानून आपको कठोर सजा दे सकता है.

आजकल राहुल गांधी खुद हर मंच से सिर्फ हिंदुत्व पर निशाना साधते हैं, लेकिन खुद वे इसे तर्कशील ठहरा नहीं पाते. राहुल गांधी हो या औवेसी, मंच राजनैतिक हो या धार्मिक, अगर कोई भी अंखड भारत को तोड़ने की बात करता है, तो यह निंदनीय है.

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