लौंगी भुइयां तो नहर खोद लाए, लेकिन सिस्टम का सूखा कैसे दूर हो?

गया के लौंगी भुइयां का प्रकरण दिलचस्प मोड़ पर आ गया है. पहाड़ काटकर तीन किलोमीटर लंबी नहर खोद कर गांव से जोड़ने वाले उनके काम पर सवाल उठाए जा रहे हैं. विडंबना है कि उनके अथक प्रयास को कम आंका जा रहा है और जो सवाल सरकार, शासन-प्रशासन से होने चाहिए थे, दुर्भाग्य वश उनसे पूछे जा रहे हैं. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Sep 21, 2020, 11:11 AM IST
    • अब नहर बनने के बाद लोग उठा रहे हैं तमाम तरह के सवाल
    • शासन-प्रशासन को घेरने के बजाय लौंगी भुइयां को ही घेर रहे
लौंगी भुइयां तो नहर खोद लाए, लेकिन सिस्टम का सूखा कैसे दूर हो?

नई दिल्लीः गया (बिहार) के लौंगी भुइयां आज देशभर में चर्चित हैं. वजह, उन्होंने गया स्थित अपने गांव सहित तीन गांवों के खेतों की प्यास  बुझाई. एक पहाड़ी नहर बनाकर. 30 साल के अनवरत प्रयास के बाद लौंगी इस काम में सफल हुए तो इसी अगस्त 2020 में गांव में पानी पहुंचा. इसके बाद खबर फैली तो लौंगी भुइयां ने मीडिया से कहा-उन्हें कुछ नहीं चाहिए, अवार्ड तो बिल्कुल नहीं. बस एक ट्रैक्टरमिल जाए तो वे भी खेती कर सकें.

आनंद महिंद्रा ने दिया ट्रैक्टर
सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने इस खबर को देखा, समझा और कहा कि मेरा सौभाग्य होगा जो कि इस नायाब नक्काश के लिए मददगार बन पाऊं, उनका इतना कहना था कि उसी शाम तक लौंगी भुइयां के दरवाजे ट्रैक्टर खड़ा था.

उनकी मुराद पूरी हुई, गांव वालों की साध पूरी हुई, लेकिन समाज के एक धड़े की विरोधी आस पूरी नहीं हुई थी. वही धड़ा जिसे हर सुखद  स्थिति में शक और सवाल ही नजर आता है, जो किसी को प्रेरणा मान कर उनसे सीख लेने की बजाय उन्हें कमतर और नीचा दिखाने के प्रयास में जुट जाता है. ऐसे लोगों के लिए लौंगी भुइयां और उनका फावड़ा महज एक Hit Topic बन कर रह गया है.

लौंगी भुइयां के काम पर संदेह
बात यह है कि लौंगी भुइयां के परिश्रम का अहसान मानने के बजाय के कुछ लोग इस पर उतारू हो गए हैं कि एक ग्रामीण ने नहर कब खोद ली? जहां नहर खोदी वह किसकी जमीन थी, क्या उनकी निजी थी, या किसी और की. और अगर सरकारी जमीन थी तो नहर खोद लेना तो अतिक्रमण का मामला हुआ.

वहीं कुछ लोग नक्शा आदि होने का दावा करते हुए कह रहे हैं कि नहर का रास्ता तो वहां पहले से ही मौजूद था तो लौंगी भुइयां ने क्या खोदा?

विरोध का झंडा उठाने का सिलसिला जारी
अव्वल तो यह सारे सवाल लौंगी भुइयां के लिए है नहीं, यह सवाल तो हैं उस सिस्टम के लिए, जिसे कि न तो गांव की विरासतों का पता है और न ही समस्याओं का. सवाल तो यह है कि आखिर जिस आधार पर नहर के पहले से होने का दावा किया जा रहा है, तो उस नहर में अब तक पानी क्यों नहीं था, यह क्यों नहीं बताया जा रहा है.

लौंगी भुइयां के जिक्र से पहले वह नहर कहां थी और किधर से बह रही थी. बांकेबाज़ार प्रखंड में कोठिलवा गांव और आस-पास के तीन गांव के लोग खेती क्यों नहीं कर रहे थे?

लौंगी भुइयां के लिए कैसे-कैसे सवाल उठ रहे हैं.
विरोध और अस्वीकार की भेड़चाल हमेशा स्तरहीन प्रश्नों की ही सौगात लाती है. कथित तौर पर अब लौंगी भुइयां के पास तमाम जमावड़ा लग रहा है जिससे वह घबरा भी रहे हैं. ऐसे में लोग उनसे अजीबो-गरीब प्रश्न पूछ रहे हैं. मसलन आप इतने दुबले-पतले हैं तो पहाड़ कैसे काट लिया, नहर कैसे खोदी. लोगों ने आपका साथ क्यों नहीं दिया? प्रशासन ने आपकी सुधि क्यों नहीं ली? उन्होंने गांव में पानी की
समस्या का निदान क्यों नहीं किया? क्या यह सवाल लौंगी भुइयां से पूछे जाने के लिए उचित हैं.

एक बारगी अगर मान भी लें कि नहर का रास्ता वहां पहले से मौजूद था, तो भी क्या किसी नहर या जल स्त्रोत को फिर से जिला देना कम हिम्मत का काम है? यह भी किसी भगीरथ प्रयास से कम नहीं. अगर लौंगी भुइयां ने यह भी किया है तो भी वह उच्च सम्मान के पात्र हैं.

अब नहर के मौजूद होने वाली बात को ही आधार मानते हुए जी हिंदुस्तान के कुछ सवाल-

  • यदि नहर का रास्ता पहले से मौजूद था ही तो फिर पहला सवाल यही कि तकरीबन 100 साल पुरानी नहर ( सोशल मीडिया पर दावा है
  • 1914 के नक्शे में नहर मौजूद है) के पुनर्निर्माण के लिए क्या कभी कार्ययोजना बनाई गई.
  • शासन-प्रशासन के लिए कभी यह नहर और कोठिलवा गांव में सिंचाई की समस्या आज तक प्राथमिकता क्यों नहीं बन पाई थी?
  • क्या कभी नहर को लेकर कोई काम शुरू हुआ?
  • गांव में इतना बड़ा सरल रोजगार का काम स्थगित रहा, इसे मनरेगा के जरिए लाकर क्यों नहीं कराया गया?
  • यदि एक व्यक्ति सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रहा था( जैसा कि आरोप है) तो अधिकारियों, प्रशासन ने इस दिशा में कदम क्यों नहीं उठाए?

लोगों को जागरूक होने के लिए यह मामला दिलचस्प
इस वक्त पूरे बिहार में चुनाव की गहमा-गहमी है. गया से भी विधायक को चुना जाएगा और यह गांव किसी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा भी होगा. ऐसे में लोगो के लिए यह विचार करने वाली बात है कि राजनीतिक दलों के चुनावी वादों और हकीकत में कितना फर्क है.

30 साल में किसी जननेता ने इस गांव की समस्या को प्रमुख मुद्दा नहीं बनाया. बतौर नागरिक यह बातें गया के हर गांव में रहने वाले लोगों को याद रखनी चाहिए. लोगों को ध्यान रखना होगा कि लौंगी भुइयां तो नहर खोद लाए, सिस्टम का सूखा कैसे दूर होगा? यह बड़ा और वाजिब सवाल है. 

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