नई दिल्ली. भागती फिरती थी दुनिया, जब तलब करते थे हम..आज नफरत हो गई तो बेकरार आने को है ! - ये पंक्तियाँ हैं भारत के प्रसिद्ध संत स्वामी रामतीर्थ की. उनकी लिखी पंक्तियाँ काफी कुछ आज नेपाल पर लागू हो रही हैं. भारत जब प्रेम और स्नेह के साथ इस पड़ौसी देश के साथ पेश आ रहा था, तो ये अपनी अकड़ में ऐंठा जा रहा था. अब चीनी हवा-हवाई के फ्लॉप होने के बाद नेपाल भारत से सीमा विवाद पर बात करना चाहता है तो भारत ने भी दो टूक कह दिया है - पहले विश्वास जीतो फिर बात होगी!
संसद में मंज़ूरी नहीं मिल पाई नेपाली बिल को
चीन ने बहकाया नेपाल बहक गया और अपने नक्शे में बदलाव करके उसमे उसने भारत के भू भाग को भी शामिल कर लिया. लेकिन केपी ओली और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी संसद में अपना भारत विरोधी बिल पास कराने में असफल रहे. बरसों से भारत की मदद के भरोसे पलने वाले इस देश की संसद ने हकीकत से समझौता नहीं किया और बिल को सहमति प्रदान नहीं की. अब चीन की नौटंकी के फ्लॉप होने के बाद नेपाल को भी अपनी हैसियत समझ आई. और उसने बातचीत की पेशकश की है.
एहसानफरामोशों की लिस्ट में हुआ शामिल नेपाल
भारत विरोधी वो चीन हो या पाकिस्तान या मलेशिया या तुर्की - सभी पर भारत ने एहसान किये हैं. लेकिन अब पीएम मोदी वाले भारत ने उद्द्ण्ड और कृतघ्न देशों को उनकी भाषा में समझना शुरू कर दिया है. इसलिए नेपाल को भारत ने खरी खरी सूना दी और कह दिया कि जो नेपाल की तरफ से हुआ उसने पूरे प्रकरण से दोनों देशों के बीच का विश्वास खतरे में पड़ गया है. इसलिए नेपाल यदि बातचीत का इच्छुक है तो उसे पहले भारत का विश्वास जीतना पड़ेगा.
नेपाल विदेश सचिव स्तर पर बातचीत चाहता है
नेपाल की तरफ से जोर दिया जा रहा है कि कालापानी सीमा के मुद्दे पर विदेश सचिव स्तर भारत के साथ बातचीत हो. इसके साथ जो अनुचित कृत्य नेपाल सरकार कर रही है वो ये कि अपने नए अवैध नक़्शे को वह संसद में मंजूरी दिलाना चाहती है और इसमें नाकामी मिलने के बाद अब वह संविधान में संशोधन की दूसरी अनुचित कोशिश में है. किन्तु भारत ने बातचीत के लिए पहले नेपाल की तरफ से भारत का विश्वास जीतने और भरोसे का माहौल तैयार करने की शर्त रख दी है.
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