मर के जिंदा हुआ एक इंसान, विज्ञान नहीं अध्यात्म से खुलेगा राज

दुनिया में अध्यात्म और विज्ञान के बीच सर्वश्रेष्ठ कौन की होड़ चलते ही रहती है. विज्ञान चीजों को खोज और तकनीक पर सच मानता है तो अध्यात्म तर्क और नजरिए के साथ उसे साबित करने की कोशिश करता है. विज्ञान के साथ एक समस्या यह है कि उसकी एक सीमाएं हैं, जबकि विज्ञान जहां जा कर दम तोड़ देता है, अध्यात्म वहां से मोर्चा संभालता है और चीजों को सुलझाने का प्रयत्न करता है.

Last Updated : Nov 5, 2019, 03:35 PM IST
    • मर के भी जिंदा हुए रामकिशोर
    • विज्ञान न पुनर्जन्म में विश्वास रखता है और न ही पुनर्जीवन में
    • विज्ञान मानव शरीर को एक मशीन की तरह देखता है
मर के जिंदा हुआ एक इंसान, विज्ञान नहीं अध्यात्म से खुलेगा राज

नई दिल्ली: दुनिया में कई ऐसे उद्हारण सामने आए हैं जब दोनों के बीच टकराव के हालात उत्पन्न हुए हों और विज्ञान उस गुत्थी को सुलझा पाने में नाकाम रहा हो. कोई व्यक्ति अगर मरने के बाद भी जीवित हो जाए तो विज्ञान के पास भौचक्का रह जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता. क्योंकि, विज्ञान न पुनर्जन्म में विश्वास रखता है और न ही पुनर्जीवन में.

मर के भी जिंदा हुए रामकिशोर 

दरअसल, पिछले दिनों एक अनोखी घटना सामने आई, जिसपर वैज्ञानिक तरीके से यकीन कर पाना जरा मुश्किल है. लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल हुई वीडियो में ये कारनामा जब सामने आया तो लोगों को पुनर्जीवन पर भरोसा होने लगा. उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ के अंतरौली में किरथल गांव में इस तरह की घटना सामने आई जहां एक व्यक्ति मरने के बाद फिर से जीवित हो गया. सुनने में अजीब लग रहा है न, सोचिए उन परिवारवालों को कैसा महसूस हुआ होगा जो रामकिशोर का अंतिम संस्कार करने के लिए अर्थी पर शव लिए जा रहे थे और अचानक से वह उठ कर बैठ गए हों. 

क्या है पूरा मामला ? 

आपको बता दें कि रामकिशोर की पिछले दिनों किसी बीमारी से मृत्यु हो गई थी. उनके निधन के बाद परिवार और रिश्तेदारों को शोकसभा में शामिल होने को बुलाया गया. जैसे ही परिवारवाले अर्थी लेकर अंतिम संस्कार को जाते हैं तो किसी 90 के दशक की फिल्म की तरह रामकिशोर अर्थी से खड़ा हो बैठ जाते हैं. परिवारवाले जहां इस दृश्य को देखने के बाद सहम उठते हैं वहीं रामकिशोर वहां मौजूद लोगों को देखकर भौचक्के में पड़ जाते हैं. भले ही इसे किसी चमत्कार की तरह माना जाता हो लेकिन ये अध्यात्म की मान्यताओं से मेल खाता है.

हालांकि, इस तरह की यह पहली घटना नहीं है. दुनिया के कई हिस्सों में ऐसा देखने को मिला है

- पेरू के टिंगो मारिया में वॉटसन फ्रैंकलिन नाम का एक 28 साल का व्यक्ति अपने कॉफिन से जग उठा. दरअसल, रूट कैनल ऑपरेशन के बाद उस व्यक्ति के मृत्यु हो गई थी. लेकिन जब उसे कॉफिन में लेटाकर अंतिम संस्कार किया जा रहा था तभी   फ्रैंकलिन के शरीर से सांस लेने की धड़कनें महसूस की जाने लगीं. 

- 2014 में 3 साल की एक फिलिपिनो बच्ची को अंतिम संस्कार के दौरान अचानक ही उसके कॉफिन में जिंदा पाया गया. जिसके बाद डॉक्टर ने उसका रिपोर्ट बदला और जीवित घोषित किया. परिवारवालों ने व्यंगात्मक रूप से अंतिम संस्कार का कार्यक्रम  रद किया और बच्ची को लेकर घर चले गए. 

विज्ञान और अध्यात्म में कहां है टकराव 

दुनिया में इसे अपवाद भी माना जा सकता है. इतनी बड़ी आबादी वाले विश्व में बेशक ऐसी घटनाएं छिटपुट होती हों लेकिन विज्ञान में किसी भी खोज की शुरुआत इन्हीं कुछ घटनाओं के अध्य्यन से ही मिलता है. इस मसले पर हालांकि विज्ञान और अध्यात्म के बीच द्वंद्व की स्थिति है. विज्ञान इस बात को नहीं मानता कि मरने के बाद भी कोई जिंदा हो सकता है. दरअसल, विज्ञान मानव शरीर को एक मशीन की तरह देखता है जिसकी लाइफलाइन उसकी आत्मा है. उस आत्मा के खत्म हो जाने के बाद शरीर में कोई जान नहीं होती और वो एक हाड़-मांस का टुकड़ा मात्र है. अब यहीं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विज्ञान और अध्यात्म में फर्क डाल देता है. अध्यात्म कहता है कि आत्मा एक सकारात्मक ऊर्जा है और जब ये मानव शरीर से निकलती है तो भी उस ऊर्जा का कुछ अंश रह ही जाता है. उस सकारात्मक ऊर्जा का संचार कुछ हद तक होते ही रहता है. इसलिए कई बार इस तरह के अपवादों का उद्हारण देखा जाता है. 

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