Independence Day 2024: आजादी के 5 गुमनाम हीरोज, जिन्हें भूल गया इतिहास!

Freedom Fighters: आजादी के लिए लड़ने वाले कई ऐसे फ्रीडम फाइटर्स थे, जिन्हें अब भुला दिया गया है. स्वतंत्रता आंदोलन में इन्होंने भी अपनी भूमिका निभाई. आइए, जानते हैं स्वतंत्रता आंदोलन के 5 गुमनाम हीरोज के बारे में.

Freedom Fighters: 15 अगस्त, 2024 को भारत 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा. इस दिन महात्मा गांधी से लेकर भगत सिंह तक, कई फ्रीडम फाइटर्स को याद किया जाता है. लेकिन आज हम आपको 5 ऐसे फ्रीडम फाइटर्स के बारे में बताएंगे जिनके बारे में आपने शायद पहले नहीं सुना होगा.

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यूसुफ मेहर अली की स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी भूमिका रही है. उन्होंने ‘भारत छोड़ो’ और ‘साइमन गो बैक’ जैसे नारे दिए थे. यूसुफ ने पढ़ाई दौरान ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. वकालत की पढ़ाई के यूसुफ ने कॉलेज में बढ़ी फीस और छात्रों पर हुई गोलीबारी का विरोध किया. वे आजादी के आंदोलन में 8 बार जेल भी गए थे. 2 जुलाई 1950 को यूसुफ का बिमारी के कारण निधन हुआ, तब उनकी उम्र केवल 47 साल थी.

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एनजी रंगा भी आजादी के गुमनाम सिपाहियों में से एक हैं. स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ किसान नेता भी थे. उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता था. आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में जन्मे रंगा का बचपं मुश्किलों से गुजरा, क्योंकि इस दौरान उनके माता-पिता का निधन हो गया था.गुं टूर में स्नातक तक की पढ़ाई के बाद वे इंग्लैंड चले गए. गांधी जी से प्रभावित होकर 1929 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा बने. 1923 में अपने घर का कुआं हरिजनों के लिए खोला. 9133 में रैयत आंदोलन का नेतृत्व किया. आठ बार लोकसभा के सदस्य चुने गए. 1995 में  उनका देहांत हुआ. 2001 में भारत सरकार ने उनके नाम से डाक टिकट जारी किया.

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कल्पना दत्त 1913 में चिट्टगौंग के श्रीपुर गांव में जन्मीं. विद्यार्थी जीवन में 14 साल की उम्र में इंकलाबी भाषण दिया. ये कहा कि क्रांतिकारियों का साथ दो और ब्रिटिशर्स से लड़ो. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान आजादी की लड़ाई में शामिल हुईं. उन्होंने लड़के के भेष में एक बस में धमाका करने की रणनीति बनाई, लेकिन पहले ही गिरफ्तार हो गईं. उन्होंने फिर सियासत में भी कदम रखा था. 8 फरवरी, 1995 में को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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हसरत मोहानी साल 1875 में यूपी के उन्नाव में जन्मे. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान आजादी के आंदोलन में शामिल हुए. साल 1903 में जेल गए. कॉलेज से निष्कासित भी हुए, लेकिन आजादी के लिए लड़ते रहे. वे 'उर्दू-ए-मुअल्ला' नाम से एक पत्रिका प्रकाशित करते थे, इसमें वे अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ लिखा करते थे. साल 1921 में इंकलाब जिंदाबाद का नारा उन्होंने ही दिया था. 13 मई, 1951 को उनका निधन हो गया.

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गंगू मेहतर उर्फ गंगूदीन से अंग्रेज खौफ खाया करते थे. गंगू मेहतर नाना साहब पेशवा के सैनिक दस्ते के माहिर लड़ाकों में से एक थे. स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई यानी 1857 में गंगू मेहतर ने नाना साहब की तरफ से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. साल 1859 को गंगू मेहतर को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दे दी थी.