तमिलनाडु के साथ-साथ पड़ोसी राज्य केरल में भी विधानसभा की 140 सीटों पर चुनाव होने हैं. यहां पहले चरण में 6 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे, जिसके परिणाम 2 मई को घोषित किए जाएंगे. केरल में कांग्रेस, सीपीआई(एम) और बीजेपी के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिलेगा. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि केरल में ऐसे कौन-कौन से मुद्दे हैं जिन्हें देख केरल की जनता अपनी पसंदीदा पार्टी को वोट दे.
केरल में सबरीमाला मंदिर का मुद्दा भी वोटरों को प्रभावित कर सकता है. विपक्ष इस मुद्दे को लगातार उठाता रहा है. भाजपा ने इस मुद्दे पर जबरदस्त आंदोलन भी किया था. चुनाव के दौरान हमेशा से ही सबरीमाला मंदिर का मुद्दा का गरमाया रहता है. साल 2006 में मंदिर में प्रवेश की अनुमति से जुड़ी याचिका दायर होने के बाद 2007 में चुनाव के दौरान एलडीएफ सरकार ने वोटर्स के प्रति सकारात्मक नजरिया दिखाया था. वहीं दूसरी तरफ यूडीएफ सरकार ने मंदिर में प्रवेश की अनुमति से जुड़ी याचिका का विरोध किया था. इसी कारण साल 2007 में चुनाव हारने के बाद यूडीएफ सरकार ने कहा था कि वह सबरीमाला में 10 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ हैं. सबरीमाला मंदिर को लेकर पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ शब्दों में कहा था कि भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए सभी उम्र की महिलाओं का प्रवेश जारी होगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विरोध प्रदर्शन हुए थे. जगह-जगह हिंसा भड़की थी. सुप्रीम के इस फैसले पर करीब 54 पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गईं थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. इससे पहले सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. राज्य के विपक्षी दल इस मुद्दे को हर चुनाव में उठाते हैं. जहां एक तरफ हमेशा ही सभी राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले का सम्मान करते हुए दिखाई देते हैं, उसी के उलट बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विरोध में बीजेपी के हजारों कार्यकर्ताओं ने केरल राज्य सचिवालय की ओर मार्च किया था. देखना ये है कि सबरीमाला मसले का फायदा किसको मिलेगा.
इस समय यूपी सहित बीजेपी शासित राज्यों में लव जिहाद का मुद्दा चरम पर है. यूपी और एमपी में धर्मांतरण विरोधी कानून भी बना दिया गया है. अब जहां-जहां चुनाव होने हैं बीजेपी हर जगह लव जिहाद को अपना प्रमुख एजेंडा बना रही है. अगर अब चुनाव जीतने के बाद बीजेपी सत्ता में आती है तो केरल में भी धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया जाएगा. केरल में तकरीबन 55 प्रतिशत हिंदू मतदाताओं की संख्या है. जबकि अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम और ईसाइयों की जनसंख्या करीब 45 प्रतिशत है. इसके अलावा हाल ही में केरल के एक कैथलिक चर्च में यह बात कही गई थी कि केरल में साजिशन ईसाई लड़कियों को इस्लामिक स्टेट के हाथों बेचा जा रहा है, उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा है. जाहिर है कि केरल में बीजेपी को सभी हिंदूओं को वोट मिलना काफी मुश्किल है, क्योंकि उत्तर भारत के हिंदू और केरल के हिन्दूओं में काफी अंतर है. इसी कारण केरल में बीजेपी मुस्लिम और ईसाई वोटर्स पर लगातार ध्यान दे रही है. अब देखना होगा कि हिंदू की 55 % संख्या में से बीजेपी को कितने वोट हासिल होत हैं.
बीजेपी चुनाव में सभी राज्यों में अपना हिंदू कार्ड खेलना नहीं भुलती. उत्तर भारत के प्रदेशों में पार्टी का हिंदू कार्ड चल जाता है, लेकन उत्तर भारत के हिंदू और दक्षिण के हिन्दूओं में काफी अंतर देखा गया है. केरल में बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड उस तरह काम नहीं करेगा जिस तरह बाकी हिस्सों में कर करता है. गौरतलब है कि बजेपी विपक्षी पार्टियों पर निशाना साधते हुए एंटी हिंदू कार्ड जरूरी खेलगी. बता दें कि केरल में हिंदू मतदाताओं की जनसंख्या 55 प्रतिशत करीब है, जबकि अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम और ईसाइयों की जनसंख्या करीब 48 प्रतिशत है. इसलिए ऐसा देखा जा रहा है कि बीजेपी केरल में सत्ता काबिज करने के लिए मुस्लिम और ईसाई वोटरों की तरफ भी देखना पड़ेगा. लगभग केरल के सभी हिंदू वोटर्स सीपीआई, सीपीआई(एम) और कांग्रेस को वोट करते आए है. इस बीच बीजेपी के लिए केरल चुनाव जीतना काफी मुश्किल है. बता दें कि पिछली बार साल 2016 में हुए चुनावों में बीजेपी को 140 सीटों में से महज एक सीट हाथ लगी थी.अगर इस बार बीजेपी अपना हिंदू कार्ड खेलने में सफल होती है तो देखना होगा कि इन 55 प्रतिशत वोटों में बीजेपी को कितने वोड हासिल होते हैं.
पूरे भारत में केवल ही एक ऐसा राज्य है जहां सबसे पहले ईसाई धर्म और बाद में मुस्लिम धर्म ने एंट्री ली. खास बात यह है कि देश का पहला चर्च और पहली मस्जिद केरल में ही है. केरल में अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम और ईसाइयों की जनसंख्या करीब 48 प्रतिशत है. साफ शब्दों में कहे तो ईसाई-मुस्लिम की एकता ने ही अब तक बीजेपी को केरल की सत्ता से दूर रखा है. केरल में हर पांच साल के अंतराल में सत्ता बदलती रहती है. केरल में सत्ता की चाबी बारी-बारी से LDF और UDF के हाथ जाती है. बीजेपी को मुस्मिल समुदाय को अपनी तरफ लाना काफी मुश्किल है, इसलिए बीजेपी और आरएसएस मिलकर ईसाई समुदाय को अपनी तरफ लाने में जुटी हुई है. लेकिन क्या बीजेपी ईसाई-मुस्लिम वोटर्स की एकता को तोड़ पाएगी. इस बार बीजेपी केरल में लव जिहाद और हिंदू कार्ड को ईसाई समुदाय के संदर्भ में इस्तेमाल कर रही है. अब देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के धुव्रीकरण से पार्टी को कितना फायदा पहुंचता है.
केरल विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस में काफी आशा है. कांग्रेस पार्टी के सभी नेता लगातार रैलियां कर रह हैं. जब केरल के कोल्लम तट पर राहुल गांधी ने समंदर में मछुआरों के साथ छलांग लगाई थी तो उसी बात से अंदाजा लगया जा सकता है कि कांग्रेस केरल में जीत को लेकर काफी उम्मीद पाली हुई है. इसके अलावा इस चुनाव में एक और मुद्दा गरमाया हुआ है, वह है राहुल गांधी का बयान. दरअसल, हाल ही में राहुल गांधी ने तिरुवनंतपुरम की एक रैली के दौरान केरल की जनता को राजनीतिक रूप से समझदार बताया था. राहुल के इस बयान को बीजेपी ने उत्तर भारतीयों का अपमान बताया था. लिहाजा इस बयान से राहुल गांधी को केरल में कुछ तो फायदा जरूर मिलेगा. प्रदेश में राहुल गांधी के इस बयान को राजनीतिक तौर एक ध्रुवीकरण की तरह देखा जा सकता है. केरल में कांग्रेस अपना मुकाबला बीजेपी की से नहीं बल्कि लेफ्ट गठबंधन से देखती है, इसलिए कांग्रेस के लिए यह लड़ाई थोड़ी मुश्किल है. अब देखना होगा कि क्या राहुल गांधी के इस बयान से पार्टी को कुछ फायदा मिलेगा या नहीं?