आने वाली 12 जुलाई 2021 को ओडिशा के पुरी धाम में जगन्नाथ प्रभु की रथ यात्रा निकलेगी. इसे देखते हुए मंदिर परिसर में तीनों देवताओं के लिए उनके रथ बनाने और उन्हें सजाने का कार्य युद्धस्तर पर जारी है. कैमरे की नजर से देखिए कलाकार कितनी संजीदगी से रथों को आकार देने में लगे हैं.
हर साल रथ यात्रा (Rath yatra 2021) निकाले जाने का कार्य खुद भगवान की इच्छा से ही कई सदियों से जारी है. उन्होंने देवी गुंडीचा को मौसी कहते हुए उन्हें वरदान दिया था कि साल में एक बार जरूर मिलने आएंगे और भक्तों के साथ आएंगे. रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया में होती है, लेकिन पुरी में इसका उत्सव बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाता है. इस दिन रथखला जिसे रथ निर्माण शाला कहते हैं, उसकी पूजा होती है और एक दल पेड़ों को चुनने के लिए निकल जाता है. यह दल महाराणा कहलाता है.
पेड़ों का चुना जाना और उन्हें काटकर लाने की भी प्रक्रिया में बहुत संजीदगी बरती जाती है. पुरी के पास स्थित जिले दसपल्ला के जंगलों से पेड़ चुने जाते हैं. इसके लिए नारियल और नीम के पेड़ ही काटकर लाए जाते हैं. नारियल के तने लंबे होते हैं. इनकी लकड़ी हल्की होती है. लेकिन इससे पहले यहां एक वनदेवी की पूजा होती है. उस जंगल के गांव की देवी की अनुमति के बाद ही लकड़ियां लाई जाती हैं. पहला पेड़ काटने के बाद पूजा होती है. फिर गांव के मंदिर में पूजा के बाद ही लकड़ियां पुरी लाई जाती हैं.
महाराणा लोगों का काम होता है कि वह अक्षय तृतीया से पहले पवित्र लकड़ियों को मंदिर के रथखला भवन में पहुंचा दें. यह कार्य अक्षय तृतीया से पहले. पहले हो जाना होता है. फिर अक्षय तृतीया वाले दिन मंदिर में विशेष पूजा होता है और इसी दिन रथखला में रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है. सभी कारीगर जुटते हैं, औजार और लकड़ी की पूजा करते हुए उन्हें हल्दी-चंदन के लेप से सजाते-टीकते हैं. इसके बाद ही रथ बनाने के लिए लकड़ियों का काटना-चीरना आदि शुरू होता है.
भगवान जगन्नाथ (Rath yatra 2021) का रथ बनाने वाले कारीगरों को एक तरह से पुश्तैनी कह सकते हैं. कभी किसी अन्य ने यह रथ बनाया ही नहीं. यह पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के लोग हैं और यह चमत्कार ही है कि हर अगली पीढ़ी अपने हिस्से का काम सटीक और बिना किसी गलती के करती है. रथ निर्माण में इन लोगों की विशेष योग्यता है. इन्हें बिना किसी किताबी ज्ञान के परंपराओं के आधार पर ही रथ निर्माण की बारीकियां पता हैं. रथ निर्माण में 8 तरह के अलग-अलग कला के जानकार होते हैं. इनके काम भी बंटे हुए हैं और काम के आधार पर ही इनकी पहचान भी अलग.अलग है.
इनमें सबसे पहले आते हैं गुणकार. इनका काम रथ के आकार के मुताबिक लकड़ियों का आकार तय करना होता है. वहीं पहि महाराणा लोग रथ के पहियों से जुड़ा काम देखते हैं. कमर कंट नायकों के जिम्मे रथ में कील से लेकर अकुड़े (एंगल) जैसे काम होते हैं. चंदाकार लोगों को रथों के अलग-अलग बन रहे हिस्सों को आपस में सजाने का (Set) करने का होता है. रूपकार और मूर्तिकार लोग रथ में लगने वाली लकड़ियों को काटते हैं और सजावट का काम करते हैं. चित्रकारों के हिस्से रथ पर रंग-रोगन और चित्रकारी का काम होता है. सुचिकार या दरजी सेवक रथ की सजावट के लिए कपड़े सिलते हैं. सबसे आखिरी में आते हैं रथ भोई जो कि प्रमुख कारीगरों के सहायक और मजदूर होते हैं.
तीन रथों (Rath yatra 2021) को निर्धारित तरीके से अनूठी योजना के अनुसार सजाया जाता है. हर एक रथ के चारों तरफ नौ पार्श्व देवताओं की मूर्ति का निर्माण किया जाता है. प्रत्येक रथ पर बहुत सुंदर चित्रकारी का इस्तेमाल करके अलग-अलग देवी-देवताओं के बेहद सुंदर चित्र बनाए जाते हैं. तीनों रथों पर एक सारथी और चार घोड़े बने हुए होते हैं. इस वक्त काष्ठ कलाकार लकड़ियों पर विभिन्न-विभिन्न आकृतियां उकेरने में लगे हुए हैं. यह कार्य बहुत ही बारीकी और सावधानी से किया जाता है.
तीनों रथों को सुंदर तरीके से सजाने के बाद इन्हें जगन्नाथ मंदिर के पूर्वी द्वार जिसे सिंहद्वार भी कहा जाता है, के सामने बड़े डंडे पर खड़ा कर दिया जाता है. रथ यात्रा (Rath yatra 2021) के लिए रथों का निर्माण करने में बढ़ई को लगभग दो महीने का समय लग जाता है. इन दो महीनों तक सभी कलाकार केवल रथ बनाने की ही ओर ध्यान देते हैं और कुछ भी नहीं करते. निर्माण प्रक्रिया में पवित्रता का भी ध्यान रखना होता है. रथ यात्रा (Rath yatra 2021) के दौरान हुई कमाई को मंदिर के अधिकारी उन बढ़ई के बीच बांट देते हैं, जिनके परिवार पीढ़ियों से इन रथों का निर्माण करते आ रहे हैं.
भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं. रथयात्रा (Rath yatra 2021) के बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है. रथ को खींचने पर 100 यज्ञ के बराबर पुण्यहिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है. मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा (Rath yatra 2021) को निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडीचा माता मंदिर पहुंचाया जाता है. पहुंचकर यहां भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं.
रथयात्रा (Rath yatra 2021) का उत्सव पूरे एक महीने चलता है और इसकी शुरुआत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से ही हो जाती है. इस दिन भगवान विभिन्न तीर्थ स्थलों से लाए गए जल को मिलाकर 108 घटों के पानी से स्नान करवाया जाता है. फिर भगवान बीमार पड़ जाते हैं और 14 दिन के लिए वह एकांतवास में चले जाते हैं. इस दौरान एक बालक की भांति उनकी सेवा की जाती है. उन्हें काढ़ा पिलाया जाता है और उनके दर्शन पर भी रोक लग जाती है. इसके बाद भगवान फिर रथयात्रा (Rath yatra 2021) में दर्शन देते हैं, जब वह ठीक हो जाते हैं.