इन 5 बड़े कारणों से शेख हसीना को छोड़ना पड़ा बांग्लादेश, हाथ से गंवाई पीएम की कुर्सी

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर बांग्लादेश से भागना पड़ा है. उनकी सरकार के खिलाफ काफी समय से प्रदर्शन चल रहा था.  चलिए जानते हैं वो 5 बड़े कारण जिसके चलते शेख हसीना को अपना देश और कुर्सी से हांथ गंवाना पड़ा. 

नई दिल्ली: बांग्लादेश में भड़की हिंसा के बाद अब वहां के हालात बेकाबू हो चुके हैं. वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है. वह ढाका से सीधा भारत आ पहुंची हैं. चलिए जानते हैं वो 5 बड़े कारण जिसके चलते शेख हसीना को अपना देश और कुर्सी से हांथ गंवाना पड़ा. 

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आरक्षण को लेकर प्रदर्शन: बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को दिए जा रहे 30 प्रतिशत आरक्षण को लेकर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था. ये प्रदर्शन धीरे-धीरे बेहद हिंसक हो गया था. छात्रों का आरोप है कि उन्हें मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां नहीं मिल रही हैं बल्कि सरकार अपने समर्थकों को आरक्षण देना चाहती है. 

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विपक्षी दलों का विरोध:  बांग्लादेश में छात्रों की ओर से किए जा रहे विरोध को लेकर वहां का विपक्ष भी फ्रंट फुट पर आ गया था. विपक्षी दल ने शेख हसीना की सरकार का जमकर विरोध किया. वहां की विपक्षी पार्टी 'बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी' ने खालिदा जिया के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटाकर शेख हसीना से इस्तीफे की मांग की. सरकार भी हमेशा विपक्ष के जवाब देने में असफल नजर आती रही.   

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सेना का छूटा साथ: बांग्लादेश में चल रहे हिंसक प्रदशर्न में कम से कम 90 लोगों की मौत हो चुकी है. इसके बाद बांग्लादेशी सेना ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने से मना कर दिया था. बांग्लादेश चीफ आर्मी वकार उज जमान ने सेना मुख्यालय  में चर्चा करने के बाद प्रदर्शनकारियों पर एक भी गोली न चलाने का फैसला लिया था. 

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हिंसा भड़काने में पाकिस्तान का भी हाथ: बांग्लादेश की सिविल सोसायटी ने छात्रों के प्रदर्शन में पाकिस्तान उच्चायोग का हाथ शामिल होने का आरोप लगाया है. सिविल सोसायटी का आरोप है कि पाकिस्तान छात्रों के प्रदर्शन को समर्थन देने के जरिए बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है. 

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बांग्लादेश में बेरोजगारी:  बांग्लादेश की आर्थिक हालत बेहद खराब है. वहीं इस प्रदर्शन के कारण भी इसपर काफी झटका लगा है. बांग्लादेश में बेरोजगारी भी चरम पर है. ऐसे में शेख हसीना के दोबारा सत्ता में काबिज होते ही बारोजगार छात्रों में आक्रोश और बढ़ गया. गुस्साए छात्र सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने लगे.