नई दिल्लीः Google समय-समय पर अपने Home Page पर Doodle बनाकर उन हस्तियों, महान व्यक्तित्वों को याद करता रहा है. गुरुवार 24 सितबंर को भी जब Google ने अपना Home Page बदला तो वहां दुनिया के मानचित्र के बीच बनी नीली लहरों में एक चेहरा चमक रहा था. चेहरा जिसमें गर्व झलक रहा था और आंखें उस चमक से लबरेज थीं जो किसी दौड़ को पूरी कर लेने के बाद किसी धावक की आंखों में होती हैं.
Doodle में दिख रही हैं आरती साहा
Google ने जिस चेहरे को याद किया है वह हैं आरती साहा (Aarti Saha) और उनकी आंखों में दिख रही चमक किसी सामान्य दौड़ पूरी करने की नहीं, बल्कि इंग्लिश चैनल तैर कर पार कर लेने की थी. आरती साहा महज एक तैराक का नाम नहीं,
बल्कि एक मिसाल का नाम हैं, जो रूढ़ियों को तोड़कर रख देती है और अपनी राह बनाती है. इस तरह वह अपना ही अपने देश का नाम भी ऊंचा करती हैं. आज के प्रचलित नारीवाद के झंडे को अपना अस्तित्व आरती साहा (Aarti Saha) जैसे नामों में तलाशना चाहिए.
इस दिग्गज तैराक जिसे कि भारत की जलपरी कहा गया, जानते हैं उसके जीवन के बारे में और भी बहुत कुछ
कलकत्ता में हुआ जन्म, 2 साल में उम्र में मां को खोया
24 सितंबर, 1940. यही वह दिन था जब कोलकाता (तब कलकत्ता) के एक मध्यवर्गीय परिवार में आरती ने जन्म लिया. 2 साल की उम्र में ही मां को खो चुकी आरती ने दादी की गोद में मां का वात्सल्य पाया और जीवन की डोर धीरे-धीरे बढ़ने लगी. उत्तरी कोलकाता में साहा परिवार जहां रहता था, चम्पाताला घाट वहीं पास ही था.
आरती वहां नहाने जाती थीं और बचपन से ही तैराकी सीख लीं. लहरों में अठखेलियां करतीं अपनी बेटी की रुचि को पहचान कर उनके पिता ने उनका दाखिला हातखोला स्वीमिंग क्लब में करा दिया.
कहते हैं न, होनहार बिरवान के होत चीकने पात. आरती हातखोला स्वीमिंग क्लब में तेजी से सीखने लगीं तो सभी की नजरों में भी आने लगीं. हातखोला स्वीमिंग क्लब में एशियन गेम्स में देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले, सचिन नाग ने आरती की प्रतिभा देखी और उन्हें प्रशिक्षित करने का निश्चय किया.
5 साल की उम्र में ही शुरू हो गया आरती का स्वीमिंग करियर
आरती की प्रतिभा बेहद जल्द ही सबके सामने आ गई. 5 साल की उम्र में ही आरती का स्वीमिंग करियर शुरू हो गया. 1946 में शैलेंद्र मेमोरियल स्वीमिंग कंपीटिशन में आयोजित किए गए 110 यार्ड्स फ़्रीस्टाइल में आरती ने अपना पहला स्वर्ण पदक जीता.
इसके बाद दो साल के भीतर ही आरती ने कई राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और 22 मेडल पर अपने कब्जे में ले लिए. 1948 में मुंबई में हुए राष्ट्रीय चैंपियनशिप में आरती ने 2 रजत, 1 कांस्य जीता.
1952 से शुरू हुआ अंतरराष्ट्रीय सफर
ऐसी कई प्रतिस्पर्धाओं में अपना डंका बजाते हुए आरती साहा लगातार आगे बढ़ती जा रही थीं और लहरें पीछे छू़ट रही थीं. जल्द ही वह समय भी आ गया जब आरती को अपने क्लब, शहर या प्रदेश का नहीं अपने देश का प्रतिनिधित्व करना था. यह साल 1952 जब आरती का अंतरराष्ट्रीय सफर शुरू हुआ.
12 साल की उम्र में ही ओलंपिक गईं
उस दौरान आरती के साथ एक और भारतीय महिला तैराक डॉली नज़ीर ने फ़िनलैंड में हो रहे समर ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया. भारतीय दस्ते में सिर्फ़ 4 महिलाएं थीं और आरती उनमें सबसे छोटी थीं. आरती ने कोई पदक तो नहीं जीता पर 12 साल की उम्र में भारत का प्रतिनिधत्व करना किसी बड़ी सफ़लता से कम नहीं था.
आरती को इस छोटी उपलब्धि के लिए बधाइयां मिल रही थीं, लेकिन 12 साल की इस बच्ची की भीतर का सागर शांत था. वह अपना लक्ष्य चुनने के लिए रुका हुआ था.
इंग्लिश चैनल बना आरती का लक्ष्य
जल्द ही आरती को अपना लक्ष्य दिख गया. यह लक्ष्य था इंग्लिश चैनल. पानी की वह सबसे लंबी और बेहद ठंडी धारा जो कि दक्षिण इंग्लैंड और उत्तरी फ़्रांस को अलग करती है. यही इंग्लिश चैनल उत्तरी सागर (North Sea) को अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) से जोड़ता है. इसके ठंडे तापमान और तैराकी की कठिनाईयों की वजह से इसे 'स्विमिंग का माउंट एवरेस्ट' कहा जाता है.
आरती ने तय किया कि वह भी इंग्लिश चैनल को पार करेंगी. कड़ी ट्रेनिंग के बाद आरती 24 जुलाई, 1959 को इंग्लैंड के लिए रवाना हुईं.
27 अगस्त को रेस होने वाली थी, रेस फ़्रांस के केप ग्रिस नेज से इंग्लैंड के सैंडगेट के 42 मील के स्ट्रेच की थी. इस रेस में 23 देशों के 58 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिसमें 5 महिलाएं थीं.
लेकिन पहली रेस आरती को छोड़नी पड़ी
लेकिन महान लक्ष्य इतनी आसानी से नहीं मिलते. रेस शुरू होने वाले दिन आरती का पायलट बोट समय पर नहीं पहुंचा और उन्हें 40 मिनट की देरी से रेस शुरू करनी पड़ी. आरती तट से 5 मील ही आगे बढ़ी थीं कि उन्हें ख़तरनाक मौसम का सामना करना पड़ा. पानी के बहाव से 6 घंटे तक लड़ने के बाद, पायलेट के दबाव के कारण आरती को रेस छोड़नी पड़ी.
एक महीने बाद लिया दूसरा अटेंप्ट
लेकिन आरती ने हिम्मत नहीं हारी थी. उन्होंने दोबारा महीने भर ट्रेनिंग की और और इंग्लिश चैनल को हराने की दूसरी कोशिश की. 29 सितंबर, 1959 को आरती ने दूसरा अटेम्प्ट लिया. 16 घंटे, 20 मिनट तक लहरों और पानी के तेज़ बहाव से टक्कर लेने के बाद आरती सैंडगेट पहुंची.
आज आरती के लिए खुशी का दिन था. तट पर पहुंचकर जब आरती ने तिरंगा लहरा दिया तो उसके छाव तले वह उसके मन की लहरों को ठंडक पहुंची जो पिछले दो दशकों से उसमें उथल-पुथल मचा रही थीं.
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आरती ने रौशन किया भारत का नाम
आरती ने ये सफ़लता पाकर न सिर्फ़ अपना बल्कि देश का भी नाम रौशन किया और इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया. साल 1960 में आरती साहा को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
भारतीय डाक ने उनके जीवन को महिलाओं के लिए प्रेरक माना और उन्हें सम्मानित करते हुए साल 1998 में एक डाक टिकट भी जारी किया. Google के Doodle के जरिए ही सही, आरती साहा (Aarti Saha) ने एक बार फिर भारत को उसके गर्व और गौरव का बोध कराया है.
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