शहीदे आजम भगत सिंहः जिनकी शहादत से नसीब हुई हमें खुली हवा में सांस

देश आज शहीदों के सिरमौर सरदार भगत सिंह की जयंती मना रहा है. आजादी मिलने के 16 साल पहले जिन्होंने नौजवानी में अपनी जान कुर्बान कर दी ताकि आगे की पीढ़ियां स्वतंत्रता की खुली हवा में सांस ले सकें और नए भारत का निर्मांण कर सकें. भगत सिंह के विचार आज भी किसी नौजवान में क्रांति भड़का देने की तपिश रखते हैं. जानिए उनके जीवन के कई पहलू

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 28, 2020, 01:09 AM IST
    • 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के गांव बंगा में हुआ जन्म
    • बचपन से ही बलवती होने लगी थी देश को आजाद करा लेने की तमन्ना
शहीदे आजम भगत सिंहः जिनकी शहादत से नसीब हुई हमें खुली हवा में सांस

नई दिल्लीः साल 1931, ये मार्च का महीना था. मौसम में वासंती रुत थी. हल्की सर्दी भी थी. लेकिन महीने की 23 तारीख की यह रात उस शख्स के लिए बेहद भारी हो गई थी, जिसने अभी कुछ घंटो पहले तीन फांसियां देखीं थीं. फांसीघर से अपने कमरे तक वह सुस्त कदमों से ऐसे पहुंचे जैसे पहुंचना ही न चाहते हों और जब पहुंच गए तो फूट-फूट कर रोए. 

नौकरी के 30 साल, सैकड़ों बार फांसियां देखीं, कई बार देखे तख्ते से लटके जिंदा जिस्मों को बेजान बनते हुए. लेकिन लाहौर सेंट्रल जेल के वॉर्डन चरत सिंह इन तीन फांसियों को देख आक्रोशित और दुखी दोनों ही हो गए थे.

कुछ शांत हुए तो मन में ही बुदबुदाने लगे. तुम तीनों की शहादत खाली नहीं जाएगी. हिंदुस्तान आजाद होकर रहेगा. 

और ऐसा ही हुआ. भगत सिंह (Bhagat Singh) , राजगुरु और सुखदेव भले ही आजाद भारत की खुली हवा में सांस न ले सके हों, लेकिन उनकी शहादत  सोलह साल बाद ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का कारण बन गई. भारत आजाद हो गया और आजादी के ये तीनों दीवानें अमर हो गए. आज देश उन्हीं शहीदे आजम भगत सिंह की जयंती मना रहा है. 

आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़े खास किस्से

जब ज्योतिषी ने सम्मानित पद की भविष्यवाणी
28 सितंबर 1907 को सरदार किशन सिंह के घर उनकी पत्नी विद्यावती कौर ने एक खूबसूरत से बेटे को जन्म दिया. साधारण किसान परिवार और ईश्वर में आस्था रखने वाला परिवेश मिला तो नाम रखा गया भगत (Bhagat Singh). बाल सुलभ शैतानियों के साथ भगत (Bhagat Singh) बड़े होने लगे, लेकिन कभी-कभी बड़े ही खामोश-शांत हो जाते थे.

एक दिन गांव में एक ज्योतिषी आए. माता-पिता ने अपने दुलारे भगत का भविष्य भी जानना चाहा. ज्योतिषि ने कुंडली देखकर माता-पिता को बताया कि इस बच्चे का खूब नाम होगा. बड़ा ऊंचा पद पाएगा. गले में सम्मान चिह्न पहनेगा. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह (Bhagat Singh) के लिए हुई यह भविष्य वाणी सच साबित हुई. 

यह भी पढ़ेंःभारतीय राजनीति में ध्रुवतारे की तरह अटल थे पं. दीनदयाल, देश मना रहा है जयंती

मैं बंदूकें बो रहा हूं
एक बार पिता सरदार किशनसिंह भगत (Bhagat Singh) को लेकर अपने मित्र नन्द किशोर मेहता के पास उनके खेत पर गए. दोनों मित्र बातों में लग गए और पांच साल के भगत  (Bhagat Singh) अपने खेल में लग गए. कुछ देर में मेहता जी का ध्यान भगत (Bhagat Singh) के खेल की ओर गया.

बालक बड़े ही मन से खेतों में तिनके लगाए जा रहे थे. मेहता जी पास आए पूछा क्या नाम है तुम्हारा, बालक ने कहा भगतसिंह (Bhagat Singh). मेहता जी बोले, अच्छा. यह क्या कर रहे हो? मैं बंदूकें बो  रहा हूं. बालक भगतसिंह (Bhagat Singh) ने बड़े गर्व से उत्तर दिया. बंदूकें, वो क्यों? मेहता जी ने सवाल किया. तो भगत (Bhagat Singh) बोले, देश को आजाद कराने के लिए. 

हैट वाली तस्वीर, जो आज पहचान बन गई. 
बहुतायत में भगत सिंह (Bhagat Singh)  की एक तस्वीर मिलती है. जिसमें वे अंग्रेजों की तरह ही हैट पहने हुए हैं. हल्की मूंछ की रेख है. इसकी भी एक कहानी है. अंग्रेज पुलिस अफसर सांडर्स की हत्या हो गई थी.

इसके आरोप में पुलिस को तलाश थी भगत सिंह  (Bhagat Singh) और राजगुरु की. ऐसे में लाहौर में रहना संभव नहीं था और लाहौर छोड़ने वालों पर CID नजर रख रही थी. 

दुर्गा भाभी ने की मदद
ऐसे में राजगुरु पहुंचे दुर्गा भाभी (Durga Bhabhi) के पास. दुर्गा भाभी (Durga Bhabhi) का परिचय यह कि वे क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा वोहरा (Durga Bhabhi) थीं. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी (HSRA) की सक्रिय सदस्य. लेकिन अपने बेटे के जन्म के बाद वह क्रांतिकारी गतिविधियों से कुछ दूर थीं, लेकिन भगत (Bhagat Singh) की सहायता के लिए तुरंत राजी हो गईं. 

20 दिसंबर 1928 से एक रात पहले राजगुरु और कोट हैट पहना एक युवक उनसे मिलने पहुंचे. दुर्गा भाभी (Durga Bhabhi) ने अलग से राजगुरु से पूछा, ये कौन है और भगत (Bhagat Singh) कहां हैं. इस पर राजगुरु ने कहा- लो बताओ, जब अपनी भाभी (Durga Bhabhi) ने नहीं पहचाना तो वे अंग्रेज क्या पहचानेंगे.

इसके बाद 20 दिसंबर की सुबह की तीन टिकटें ली गईं और इस तरह अंग्रेजों की नाक के नीचे से भगत सिंह (Bhagat Singh) निकल गए. वे कलकत्ता पहुंचे. हैट-कोट पहनी हुई यह मशहूर तस्वीर कलकत्ता में ही ली गई. 

यह भी पढ़ेंः Ishwar Chandra Vidyasagar: वह महामना जिनका पूरा जीवन ही प्रेरक प्रसंग है

बेबे मेरे लिए खाना लाना
भगत सिंह (Bhagat Singh) जब लाहौर जेल में बंद थे ये किस्सा तब का है. किस्सा क्या, समाज की खाई पाटने का वह अचूक मंत्र है जिसका अनुष्ठान हमारी राजनीति नें आज तक संभव न हो सका. बैरक में साफ-सफाई करने वाले बोधा को भगत सिंह (Bhagat Singh) अपनी बेबे कहते थे.

बोधा शरमा जाता और हंस कर रह जाता. भगत सिंह उसके हाथ से रोटी खाने की जिद कर उसे बाहों में भर लेते थे. जेल में साथी पूछते थे कि क्यों भगत (Bhagat Singh), ये बोधा तेरी बेबे कैसा हुआ? भगत सिंह (Bhagat Singh) ने जवाब दिया. एक वो बेबे है, जिसने मुझे जन्म दिया और बचपन में मेरा मल-मूत्र उठाया. आज मेरी जवानी में ये बोधा मेरा मल-मूत्र साफ कर रहा है. तो हुआ न मेरे लिए बेबे. यह सुनकर बोधा की रुलाई फूट पड़ी. 

आखिरी संदेश- साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंक़लाब ज़िदाबाद!
बताते हैं कि भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे. मेहता ने इस मुलाकात के बारे में लिखा है. वे लिखते हैं कि एक छोटी से कोठरी है, जिसमें भगत सिंह (Bhagat Singh) इधर-उधर चक्कर लगा रहे हैं.

वे किसी शेर की मानिंद लगे जो पिंजड़े में बंद हो. मेहता साहब को देखते ही उनकी आंखे चमक उठीं. और नमस्कार करते ही पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज़्यादा समय न बचा हो.

मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत सिंह (Bhagat Singh) ने किताब से अपना मुंह हटाए बग़ैर कहा, "सिर्फ़ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंक़लाब ज़िदाबाद!" फिर भगत सिंह (Bhagat Singh) ने कुछ याद करते हुए वकील मेहता से कहा कि वह पंडित नेहरू और सुभाष चंद्र बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी. 

पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले
जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको तय वक्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है. अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा. भगत सिंह (Bhagat Singh) इस दौरान लेनिन की वही किताब पढ़ रहे थे जो उन्हें उनके वकील मेहता ने दी थी.

उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी ख़त्म नहीं करने देंगे?" इसके बाद जब पुलिस वाले उन्हें यह बताने गए कि उनकी फांसी का समय हो चुका है तो भगत सिंह  (Bhagat Singh) बोले, “ठहरिये, पहले एक क्रन्तिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले.” उन्होंने अगले एक मिनट तक किताब पढ़ी. फिर किताब छत की ओर उछाल दी और कहा. “ठीक है, अब चलो.”

इस तरह आजादी का वह रणबांकुरा मातृभूमि की बलिवेदी पर प्राण न्योछावर कर गया. शहीदे आजम भगत सिंह को जयंती पर शत-शत नमन. 

यह भी पढ़ेंः Google ने Doodle बना कर जिन्हें किया याद, जानिए कौन थीं Aarti Saha

देश और दुनिया की हर एक खबर अलग नजरिए के साथ और लाइव टीवी होगा आपकी मुट्ठी में. डाउनलोड करिए ज़ी हिंदुस्तान ऐप. जो आपको हर हलचल से खबरदार रखेगा...

नीचे के लिंक्स पर क्लिक करके डाउनलोड करें-
Android Link -

 

ट्रेंडिंग न्यूज़