पूर्वांचल के महापर्व छठ पूजा का आज पहला दिन

 उत्तरी भारत में मुख्य रूप से मनाया जाने वाला पर्व छठ का पहला दिन हैं. छठ चार दिनों तक मनाया जाता है. यह पर्व कार्तिक मास की चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाई जाती है. इस बार यह पर्व 31 अक्टूबर से शुरू होकर 3 नवंबर तक मनाई जा रही है. छठ का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है एक बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में. पर कार्तिक महीने में लोग भारी संख्या में इस पर्व को मनाते हैं. यह पर्व विशेषकर संतान प्राप्ति के लिए और परिवार के सुख व समृद्धि के लिए मनाई जाती है.

Last Updated : Oct 31, 2019, 12:29 PM IST
    • उत्तरी भारत में मुख्य रूप से मनाया जाने वाला पर्व छठ का पहला दिन
    • चार दिनों तक मनाया जाता है यह पर्व
पूर्वांचल के महापर्व छठ पूजा का आज पहला दिन

नई दिल्ली: चार दिनों तक मनाया जाने वाले इस पर्व में कई नियमों के पालन करने होते हैं. जिसमें चार दिनों तक मांसाहारी भोजन नहीं बनाना और न ही व्रती व उसके परिवार के लोग मांस का सेवन करते हैं. 

छठ पर्व के पहले दिन यानी 31 अक्टूबर को नहाय खाए है जिसमें वर्ता स्नान के बाद सबसे पहले शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करती है और उसके बाद परिवार के बाकी सदस्य प्रसाद के रूप में भोजन खाते हैं. इसमें लौकी की सब्जी, चने का दाल और अरवा चावल का ज्यादातर जगहों पर सेवन किया जाता है.

1 नवंबर को खरना है जिसमें व्रती शाम में पूजा करती है और खीर बनाती है . इस खीर को सभी लोग प्रसाद की तरह खाते हैं.

2 नवंबर को संध्याकालीन अर्घ्य है जिसमें वर्ता पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूरज देवता को अर्घ्य अर्पण करती है.

इसके बाद चौथे दिन यानी 3 नवंबर रविवार को प्रातःकालीन अर्घ्य है जिसमें वर्ता पानी में खड़े होकर सूरज के उगने का इंतजार करती है और उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और इस तरह छठ का समापन किया जाता है.

क्या है छठ मनाने के पीछे की कहानी
छठ पर्व के पीछे कई कहानी प्रचलित हैं. उन्हीं में से एक कहानी है राजा प्रियंवद की. राजा प्रियवद के कोई संतान नहीं थे. इस पर महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने को बोला और यज्ञ के बाद राजा प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रूप में खाने के लिए दिया. इस प्रसाद के प्रभाव से राजा को पुत्र प्राप्ति हुआ परंतु वह मृत जन्मा इससे हताहत हो कर प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लग गए. उसी वक्त मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और उसने राजा से अपनी पूजा करने को कहा साथ ही लोगों को भी इस पूजा से जोड़ने को कहा. राजा ने पूरी आस्था से पुत्र प्राप्ति के लिए देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल के षष्ठी तिथि में की गई थी. 

यह भी मान्यता है कि माता सीता और द्रौपदी ने भी छठ पूजा की थी. सीता ने यह पर्व प्रभु श्रीराम को रावण वध किए गए पाप से मुक्ति दिलवाने के लिए की थी. वहीं द्रौपदी ने यह व्रत उत्तरा के गर्भ को बचाने के लिए किया था.

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