Paralympic 2021: 19 साल की अवनि ने रचा इतिहास, जानिए उनके संघर्ष की कहानी

अवनि ने सोमवार को तोक्यो पैरालंपिक में महिलाओं की आर-2 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 में पहला स्थान हासिल करके स्वर्ण पदक जीता  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 30, 2021, 04:37 PM IST
  • एक सड़क दुर्घटना ने बदली जिंदगी
  • जानिए उनकी जिंदगी का किस्सा
Paralympic 2021: 19 साल की अवनि ने रचा इतिहास, जानिए उनके संघर्ष की कहानी

जयपुरः टोक्यो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर भारत की बेटी अवनि ने इतिहास रच दिया है. फरवरी 2012 में एक सड़क दुर्घटना के बाद अवनि के कमर के नीचे के शरीर को लकवा मार गया था. उसके बाद से पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने तक का उनका सफर अवसाद से निकलकर संघर्ष करने और संकल्प से आगे बढ़ने की सफल कहानी बन गया है. यह सफलता की ऐसी कहानी है जिसमें उनके पिता के पास अपनी खुशी बयान करने के लिए शब्द तक कम पड़ गए हैं.

अवनि ने रचा इतिहास
अवनि ने सोमवार को तोक्यो पैरालंपिक में महिलाओं की आर-2 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 में पहला स्थान हासिल करके स्वर्ण पदक जीता. जयपुर की यह 19 वर्षीय निशानेबाज पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गयी हैं. अवनि के पिता प्रवीण लेखरा ने बेटी की सफलता पर कहा कि उनके पास अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं. प्रवीण यहां राजकीय सेवा में हैं.

कार दुर्घटना ने किया पीछे
अवनि 20 फरवरी 2012 को एक कार दुर्घटना की शिकार हो गई थीं जब वह केवल 11 साल की थीं. इस दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी को गहरी चोट लगी और उनके कमर के नीचे के शरीर को लकवा मार गया. उसके बाद से वह व्हीलचेयर के सहारे हैं. प्रवीण लेखरा ने कहा दुर्घटना से पहले वह बहुत सक्रिय थी और हर गतिविधि में भाग लेती थी. लेकिन, दुर्घटना ने उसकी जिंदगी बदल दी. वह अपनी हालत पर गुस्से में थी और शायद ही किसी से बात करना चाहती थी. बदलाव के लिए, मैं उसे जयपुर के जगतपुरा में जेडीए शूटिंग रेंज में ले गया, जहां उसमें शूटिंग में रुचि पैदा हुई.

अभिनव बिंद्रा से मिली प्रेरणा
प्रवीण ने बताया कि उन्होंने अवनि को शूटर अभिनव बिंद्रा की जीवनी भी पढ़ने के लिए दी और उसे पढ़ने के बाद अवनि के मन में ख्याल आया कि वह शूटिंग भी कर सकती और अप्रैल 2015 से वह लगभग नियमित रूप से शूटिंग रेंज में जाने लगीं. पिता के मुताबिक हालांकि शुरूआत में उसे व्हीलचेयर चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा जो कि मानदंडों के मुताबिक नहीं थी. इसके अलावा बंदूक और शूटिंग किट भी उपलब्ध नहीं थी.

कोच ने दिया साथ
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, कोच ने पूरा सहयोग दिया और उसने अच्छा प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. अपने दृढ़ संकल्प के साथ, उसने खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक और 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीता. यह सिर्फ शुरूआत थी और आज, उसने पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीता है, जिसकी बहुत उम्मीद थी.’’जब से उनकी बेटी द्वारा देश का नाम रौशन करने की खबर आई, तब से लेखरा के पास फोन कॉल की बाढ़ आ गई है. करौली जिले के देवलेन गांव में भी जश्न का माहौल है. यहां के सुंदर सिंह गुर्जर ने पुरुषों के भाला फेंक की एफ46 स्पर्धा में कांस्य पदक जीता है.

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