नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान के बीच रोमांचक और तनाव भरे मुकाबलों की एक लंबी फेहरिस्त है. जब से भारत पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्ते खराब हुए हैं तब से दोनों टीमों के बीच बहुत कम मैच देखने को मिलते हैं. शारजाह में खेला गया एक मैच क्रिकेट की दुनिया में हमेशा याद किया जाएगा लेकिन इंडिया के लिए ये बुरा साबित हुआ था.
सीमेंट की पिच खेला गया भारत पाक के बीच मैच
उस समय शारजाह में घास की पिच उपलब्ध नहीं थी. मैच सीमेंट की पिच पर खेला गया, जिसमें एक टीम का नेतृत्व सुनील गावस्कर ने किया जबकि दूसरी टीम का नेतृत्व जावेद मियांदाद ने किया. शारजाह स्थित अब्दुल रहमान बुखारी 1960 और 70 के दशक में कराची के प्रसिद्ध एनजेवी स्कूल में गए और क्रिकेट के खेल पर मोहित हो गए. जब वह एक विशाल व्यापारिक साम्राज्य स्थापित करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात लौटे, तो वह बस अपने साथ क्रिकेट लेकर आये.
बुखारी ने 1974 में शारजाह क्रिकेट एसोसिएशन की स्थापना की और फरवरी 1976 में पहली बार, उन्होंने एक मजबूत पाकिस्तानी टीम को एक स्थानीय एकादश के खिलाफ 50 ओवर के दो मैच खेलने के लिए आमंत्रित किया, यह किसी विदेशी टीम द्वारा शारजाह का पहला दौरा था. बुखारी ने पाकिस्तान के बल्लेबाज हनीफ मोहम्मद के लिए एक सहायतार्थ मैच की योजना बनाई. चैरिटी मैच के लिए भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों का एक साथ खेलना एक चुनौती थी.
2 लाख वर्ग मीटर की जमीन खरीद कर बनाया ग्राउंड
अक्टूबर 1980 में, बुखातिर ने लगभग 2,00,000 वर्ग मीटर का एक बड़ा भूखंड खरीदा. ड्रेसिंग रूम तब पूरा नहीं बना था और खिलाड़ियों को लंच के लिए शारजाह फुटबॉल क्लब के डाइनिंग हॉल में जाना पड़ता था. बुखारी के सहयोगी और पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर आसिफ इकबाल भारत और पाकिस्तान के नए और पुराने खिलाड़ियों से बात कर रहे थे.
2,00,000 डॉलर की इनामी राशि का मैच 3 अप्रैल 1981 को सुनील गावस्कर और जावेद मियांदाद की टीमों के बीच खेला गया था, जिसे शारजाह मैदान पर खेला जाने वाला पहला मैच कहा जा सकता है. यह क्रिकेटर्स बेनिफिट फंड सीरीज (सीबीएफएस) के बैनर तले खेला जाने वाला पहला मैच था और इसे चलाने के लिए 15 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था.
शारजाह क्रिकेट एसोसिएशन ने कराया था मैच
3 अप्रैल 1981 तक सब कुछ यथावत था. भारतीय और पाकिस्तानी रेस्तरां में टिकट बेचे जाते थे, जिनमें सबसे सस्ता 25 दिरहम था. खेल के विज्ञापन और पोस्टर हर जगह थे और स्थानीय समाचार पत्रों ने बिल्ड-अप को कवरेज दिया. आयोजकों को शुरू में इस बात की चिंता थी कि लोग खेल के लिए आएंगे या नहीं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, सभी खाड़ी देशों से 8,000 से ज्यादा सैलानी शारजाह पहुंचे थे, जबकि इतने ही संख्या में लोग मैदान में प्रवेश नहीं कर सके.
भारत को मिली थी शर्मनाक शिकस्त
आसिफ इकबाल ने मैच के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि शुरूआत से पहले हम वास्तव में अनिश्चित थे कि लोग आएंगे या नहीं, लेकिन अंत तक, हमें चिंता थी कि दर्शकों के लिए बनाया गया पवेलियन सभी लोगों के बैठने के लिए सक्षम होगा.यह भारत-पाकिस्तान मैच था और इसने मैच की अवधारणा को पूरी तरह से बदल दिया. मैच असामान्य रूप से सुस्त था. गावस्कर की टीम ने केवल 139 रन बनाए और मियांदाद की टीम ने आराम से लक्ष्य का पीछा किया.
दिवंगत तस्लीम आरिफ मैन आफ द मैच रहे और गावस्कर ने सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी के रूप में टेलीविजन सेट का पुरस्कार जीता. खेल इतना सफल रहा कि इसे हर साल एक मैच का मंचन करने की तेजी से योजना बनाई गई. अगले वर्ष, भारतीय और पाकिस्तानी पक्षों के बीच दो और मैच आयोजित किए गए. महीनों बाद, उपमहाद्वीपों के बोर्ड ने एशियाई क्रिकेट परिषद की स्थापना की और पाकिस्तान, भारत और श्रीलंका उसी मैदान पर 1984 में पहला एशिया कप खेल रहे थे. 6 अप्रैल, 1984 को पाकिस्तान और श्रीलंका के बीच पहला मैच शारजाह क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम में आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त पहला एकदिवसीय मैच बन गया.
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