नई दिल्लीः Air Pollution: अक्टूबर आते-आते देश की राजधानी दिल्ली में एक बड़ी प्राब्लम भी दबे पांव आ ही जाएगी. अचानक लोगों का दम घुटने लगेगा, गला चोक होने लगेगा, दिल्ली गैस चैंबर बनने लगेगी और अचानक सबको पर्यावरण की याद आने लगेगी. फिर भी ये एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर हम अब तक गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहे हैं.
एक अनुमान के आधार पर हर साल वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से वैश्विक स्तर पर 7 मिलियन (70 लाख) लोगों की समय से पहले मौत हो जाती है. एक रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण का हर रोज सामना करना इतना खतरनाक है कि ये एक आम जिंदगी को 9 साल पहले खत्म कर सकता है.
15 साल बाद आया बदलाव
अब इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए WHO ने ग्लोबल AQI यानी कि ग्लोबल एअर क्वॉलिटी गाइडलाइंस का अपडेट वर्जन रिलीज किया है.
खास बात ये कि AQI में ये अपडेशन भी पूरे 15 साल बाद आया है. इसमें क्या-क्या बदलाव हुए हैं, ये जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि ये आपकी जिंदगी से जुड़ी बात है.
ये हैं नई गाइडलाइंस
WHO ने जो नई गाइडलाइंस बनाई हैं, उसमें तय किया गया है कि हवा में पॉल्यूशन फैलाने वाले मैटर किस हद तक हो सकते हैं. इनमें शामिल हैं PM 2.5, PM 10, ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड. ये पांचों हवा को दूषित करते हैं. पीएम 10 और 2.5 तो इतने छोटे हैं कि फेफड़े तक बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं और ब्ल्ड के जरिए इंटरनल ऑर्गन को बीमार कर देते हैं.
2021 की गाइडलाइंस में कहा गया है कि हवा में पीएम 10 का अनुअल एवरेज 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक (घन) मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही 24 घंटों में ये एवरेज 45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. पहले इनकी लिमिट 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर इयर और एक दिन में 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी.
इसी तरह, पीएम 2.5 का अनुअल एवरेज 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या एक दिन में 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं हो. अभी 15 साल तक इसकी लिमिट 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर सालाना और एक दिन में 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी.
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24 घंटे में ओजोन का लेवल एवरेज 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं हो, तो वहीं नाइट्रोजन ऑक्साइड 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. सल्फर डाइऑक्साइड भी 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से नीचे होनी चाहिए और कार्बन मोनोऑक्साइड का लेवल भी 4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम ही रहे ये जरूरी है.
हमारी भी है जिम्मेदारी
कई भारतीय शहरों में पीएम 2.5 का स्तर 2005 में की गई सिफारिशों की तुलना में काफी अधिक है. इसमें गाजियाबाद भी शामिल है, जहां 2019 में पीएम 2.5 का अनुअल एवरेज 110 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा था. नोएडा और गुड़गांव भी इसी तरह प्रदूषण की मार झेल रहे थे. यहां यह याद रखना बेहद जरूरी है कि सरकारें जो भी योजनाएं बनाएं वो उनका काम है, लेकिन हमारी अपनी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने इनवायरमेंट को रहने लायक बना कर रखें.
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