Muharram: 1400 साल पहले हुई जंग की कहानी, जिसके बाद से ही मनाया जाता है मुहर्रम!

Muharram History: मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. बाकी धर्मों में साल के पहले महीने जश्न मनता है, लेकिन इस्लाम में पहले महीने की शुरुआत शोक के साथ होती है. इसका कारण है 1400 साल पहले हुई कर्बला की जंग.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 8, 2024, 07:08 PM IST
  • 1400 साल पहले हुई थी जंग
  • हुसैन और यजीद के बीच हुई जंग
Muharram: 1400 साल पहले हुई जंग की कहानी, जिसके बाद से ही मनाया जाता है मुहर्रम!

नई दिल्ली: Muharram History: भारत में 8 जुलाई, 2024 यानी आज से मुहर्रम की शुरुआत हो गई है. हिजरी कैलेंडर (इस्लामिक कैलेंडर) की शुरुआत मुहर्रम से ही होती है. आमतौर पर नए वर्ष की शुरुआत होने पर जश्न मनाया जाता है, लेकिन इस्लाम में ऐसा नहीं होता. मुसलमान साल के पहले दिन मातम मनाते हैं. आइए, जानते हैं कि मुहर्रम क्यों मनाया जाता है और इस दिन मुसलमान मातम क्यों मनाते हैं? 

क्यों मनाया जाता है है मुहर्रम?
दरअसल, इस दिन पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. माना जाता है कि इमाम हुसैन 1400 साल पहले हुई कर्बला की जंग में शहीद हुए थे. यही कारण है कि मुहर्रम पर हुसैन की याद में मुसलमान ताजिया उठाते हैं. मुहर्रम के महीने को त्याग और बलिदान का महीना भी कहा जाता है.

किसके बीच हुई थी कर्बला की जंग?
ऐसा माना जाता है कि इस्लाम की मदीना से शुरुआत हुई थी. इससे कुछ ही दूरी पर एक मुआविया नाम का शासक हुआ करता था. मुआविया की मौत के बाद उसका बेटा यजीद शासन करने लगा था. यजीद बेहद क्रूर शासक था. वह इस्लाम को नहीं मानकर अपना मजहब बनाना चाह रहा था. उसने खुद को इस्लाम का खलीफा मानने के लिए लोगों को बाध्य करना शुरू कर दिया. तब मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन के बड़ी संख्या में समर्थक हुआ करते थे. यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन उसे खलीफा मानने लगे. लेकिन इमाम ने इस बात से इनकार कर दिया. इसके बाद यजीद ने तबाही मचानी शुरू कर दी. लोगों पर जुल्म करने लगा. 

इमाम हुसैन के पास थे 72 लोग
फिर इमाम हुसैन ने यजीद से लोहा लेने का फैसला किया. यजीद की फौज काफी बड़ी थी, जबकि हुसैन के पास केवल 72 लोग थे. जब हुसैन को अपनी हार दिखने लगी तो उन्होंने अपने साथियों से जाने के लिए कहा. लेकिन कोई भी उन्हें छोड़कर नहीं गया. यजीद एक के बाद एक सभी लोगों का कत्ल करने लगा. उसने इमाम हुसैन को तो मारा ही, साथ ही उनके 18 साल के बेटे अली अकबर, 6 महीने के बेटे अली असगर और 7 साल के भतीजे कासिल को भी मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद से ही मुहर्रम पर इमाम हुसैन की याद में शोक मनाया जाने लगा.

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