जर्मनी में अब हफ्ते में 4 दिन तक ही काम करेंगे कर्मचारी, मिलेगी पूरी सैलरी

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी की कई कंपनियां हफ्ते में 4 दिन के वर्क कल्चर को अपनाने वाली है.बाकी के 3 दिन सारे कर्मचारियों को आराम मिलेगा.

Written by - Shruti Kaul | Last Updated : Jan 29, 2024, 09:11 PM IST
  • हफ्ते में सिर्फ 4 ही दिन काम करेंगे कर्मचारी
  • कर्मचारियों की सैलरी में नहीं होगी कटौती
जर्मनी में अब हफ्ते में 4 दिन तक ही काम करेंगे कर्मचारी, मिलेगी पूरी सैलरी

नई दिल्ली: एक ओर जहां हमारे देश में इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे तक काम करने का बयान दिया है, तो वहीं अब जर्मनी ने अपने कर्मचारियों को काम से थोड़ा राहत देने का प्लान बनाया है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी की कई कंपनियां हफ्ते में 4 दिन के वर्क कल्चर को अपनाने वाली है. जर्मनी से पहले इस तरह के फैसले का कई देशों में ट्रायल किया जा चुका है. 

जर्मनी ने लागू किया 4-डे वर्क वीक  
रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी की कंपनियां अपने कर्मचारियों को हफ्ते में सिर्फ 4 ही दिन ऑफिस बुलाएगी. बाकी के 3 दिन सारे कर्मचारियों को आराम मिलेगा. मजेदार बात ये है कि इसके लिए कर्मचारियों की सैलरी में किसी भी तरह की कोई कटौती नहीं की जाएगी. इस एक्सपेरिमेंट में जर्मनी की 45 कंपनियां हिस्सा ले रही हैं. साल 2022 में ब्रिटेन की कुछ कंपनियों ने भी इस तरह का एक्सपेरिमेंट किया था. 

आर्थिक संकट से जूझ रहा जर्मनी 
बता दें कि जर्मनी इन दिनों आर्थिक संकट से जूझ रहा है. आर्थिक मंदी की चपेट में आने के कारण ये देश वापस तरक्की पाने के लिए संघर्ष कर रहा है. इससे कंपनियों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कंपनियों के पास सबसे बड़ी परेशानी ये है कि उनके पास कर्मचारियों की कमी है. ऐसे में मौजूदा कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए हफ्ते में 4 दिन काम करने का यह एक्सपेरिमेंट किया जा रहा है. माना जा रहा है कि ऐसा करने से कर्मचारियों का काम के प्रति प्रोत्साहन बढ़ेगा और कंपनियों के पास कर्मचारियों की कमी का संकट भी दूर होगा. 

जल्द बदलाव को लागू करेंगी कंपनियां 
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक 4-डे वर्क वीक के इस इस एक्सपेरिमेंट में शामिल जर्मनी की 45 कंपनियां 1 फरवरी से इन बदलावों को अमल में लाएंगी. वहीं 6 महीने तक यह ट्रायल किया जाएगा. बता दें कि जर्मनी में कई लेबर यूनियन और राइट्स एसोसिएशन की ओर से उनपर काम का दबाव कम बनाने की मांग सामने आती रही है. ऐसे में इस एक्सपेरिमेंट के जरिए यह आसानी से पता लग जाएगा कि लेबर यूनियनों के तर्क कितने सही हैं. 

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