नई दिल्ली. दुनिया के देशों का रक्षा तंत्र इस तथ्य पर निर्भर नहीं करता कि उसकी सैन्य क्षमता कैसी है, बल्कि इस तथ्य पर निर्भर करता है कि उसके साथ कौन खड़ा है. अमेरिका फिलहाल विश्व में सैन्य-शक्ति के मामले में सबसे समर्थ राष्ट्र है और यदि वह किसी देश के साथ खड़ा है तो वह देश भी बड़ा है. इज़राइल के बाद अब यूएई ने भी अमेरिका से यही प्रतिरक्षा समझौता कर लिया है.
हो गई सुरक्षा की गारंटी
जिस तीन ध्रुवीय विश्व में चीन जैसा एक विस्तारवादी दानव देश हो, उसमें हर देश को अपनी सुरक्षा की चिंता करना अनिवार्य है. और सच तो ये है कि सिर्फ सुरक्षा की चिंता करना ही काफी नहीं सुरक्षा की गारंटी ज्यादा जरूरी है. यदि आपके दोस्त मजबूती से आपके साथ खड़े हैं तो भी इसे आपकी सुरक्षा की गारंटी तब तक नहीं माना जा सकता, जब तक कि आप उनके साथ सामरिक संधि नहीं कर लेते. यही सामरिक संधि पहले इज़राइल ने अमेरिका के साथ की थी और अब यूएई ने भी कर ली है.
हुआ ऐतिहासिक समझौता
अचानक मिडिल ईस्ट के सभी देशों को चौंका दिया यूएई ने. यूएई ने अमेरिका के साथ सुरक्षा की डील पर दस्तखत करके मिडिल ईस्ट के सामरिक समीकरण बदल डाले हैं. इस मिडिल ईस्ट के मुस्लिम देशों के मजबूत मजहबी करार में अब सेन्ध लग गई है और अब कट्टरपन्थी मुस्लिम राष्ट्रों का गुट बनाने का तुर्की का सपना और ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन की वैश्विक इस्लामी योजनाओं की नींव और भी कच्ची हो गई है. इसलिए अमेरिका और यूएई की बीच हुई यह प्रतिरक्षा संधि ऐतिहासिक समझौते के तौर पर जानी जायेगी.
कराई थी अमीरात की इज़राइल से मैत्री
हाल ही में अमेरिका ने मिडिल ईस्ट में शान्ति की दिशा में ऐतिहासिक सफलता अर्जित करते हुए अमीरात और इजराइल के बीच एक ऐतिहासिक समझौता कराया था जिसकी वजह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को विश्व शान्ति के नोबल पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया है. उस समझौते के कुछ ही दिनों के भीतर ही अब अमीरात और अमेरिका के बीच भी यही समझौता हो गया है.
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