विक्रमसिंघे ने ली श्रीलंका का आर्थिक संकट खत्म करने की शपथ, क्या काम आएगा 40 साल का एक्सपीरियंस?

विक्रमसिंघे ने पीएम के छठे कार्यकाल में श्रीलंका का आर्थिक संकट खत्म करने का भरोसा दिया है. इस वक्त अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका को नया प्रधानमंत्री मिल गया है. गुरुवार को नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने शपथ ले ली है. अब ये उम्मीद की जा रही है कि इस बदलाव के बाद श्रीलंका के हालात बदल जाएंगे.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 13, 2022, 09:33 AM IST
  • श्रीलंका के नए पीएम की चुनौतियां
  • बर्बाद अर्थव्यवस्था... हालत खस्ता
विक्रमसिंघे ने ली श्रीलंका का आर्थिक संकट खत्म करने की शपथ, क्या काम आएगा 40 साल का एक्सपीरियंस?

नई दिल्ली: श्रीलंका में आर्थिक हालात कितने खराब हैं, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मौजूदा वक्त में वहां कोई प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहता था. लेकिन अब ये इंतजार भी गुरुवार को खत्म हो गया. गुरुवार को श्रीलंका में एक सांसद वाली पार्टी के नेता रानिल विक्रमसिंघे को पीएम बना दिया गया.

हालांकि रानिल विक्रमसिंघे का अनुभव श्रीलंका के हालात सुधारने में अहम किरदार निभा सकता है. 73 साल के रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के पहली बार प्रधानमंत्री नहीं बने हैं. इससे पहले भी वो श्रीलंका के 5 बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं. रानिल विक्रमसिंघे का राजनीतिक अनुभव 40 वर्षों का है. और बड़ी बात ये है कि पश्चिमी देशों में उनकी छवि एक Pro Market Reformer की है.

26वें प्रधानमंत्री के रूप में ली शपथ

श्रीलंका के दिग्गज राजनेता रानिल विक्रमसिंघे ने कई विश्व रिकॉर्ड स्थापित करते हुए हिंद महासागर द्वीप राष्ट्र के 26वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है.

रिकॉर्ड तोड़ छठे अवसर के लिए पद संभालते हुए विक्रमसिंघे ने पीएम के रूप में शपथ ली. उनके प्रतिद्वंद्वी पार्टी के नेता और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें शपथ दिलाई. इस तरह विक्रमसिंघे संसद में सिर्फ एक सीट के साथ सरकार चलाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने. राष्ट्रपति राजपक्षे ने चल रहे संकट के बीच विपक्षी दलों को आमंत्रित किया कि वे सर्वदलीय सरकार बनाने के लिए टीम में शामिल हों.

आर्थिक संकट खत्म करने का दिया भरोसा

नवनियुक्त पीएम विक्रमसिंघे ने कहा, '(ब्रिटिश पीएम विंस्टन) चर्चिल के पास 1939 में उनका समर्थन करने वाले केवल चार सदस्य थे. संकट के कारण वह जिस तरह प्रधानमंत्री बने, मैंने भी वही किया है.' उन्होंने यह बात तब कही, जब पत्रकारों ने संसद में बहुमत के बिना पीएम बनने के उनके नैतिक अधिकार पर सवाल उठाया.

विक्रमसिंघे ने धार्मिक समारोहों में भाग लेने के बाद कोलंबो में एक बौद्ध मंदिर से निकलते समय आश्वासन दिया, 'मैं सभी दलों की भागीदारी से सरकार बनाऊंगा.'

उन्होंने पत्रकार से कहा, 'क्या आप क्षुद्र राजनीति में लिप्त रहते हुए ईंधन और गैस के बिना पीड़ित होना चाहते हैं या मौजूदा संकट का समाधान खोजना चाहते हैं?' उन्होंने भरोसा दिया कि वह मौजूदा संकट से उबरने के लिए काम करेंगे.

महिंदा राजपक्षे ने विक्रमसिंघे को दी बधाई

पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे सबसे पहले विक्रमसिंघे को बधाई देने वालों में से एक थे. राजपक्षे ने एक ट्विटर संदेश में कहा, 'नवनियुक्त प्रधानमंत्री को बधाई. मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं कि आप देश को इन मुश्किल हालात से उबारने में कामयाब हों.'

बता दें, देशभर में हिंसा भड़कने के बाद राष्ट्रपति के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने विवादास्पद रूप से इस्तीफा दे दिया, जब उनके समर्थकों के एक समूह ने गंभीर वित्तीय संकट के बीच सरकार को हटाने की मांग कर रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हिंसक हमले किए.

नवनियुक्त प्रधान मंत्री को बधाई देते हुए कोलंबो में भारतीय उच्चायोग ने कहा कि वह 'राजनीतिक स्थिरता की आशा करता है और आरडब्ल्यू-यूएनपी के शपथ ग्रहण के अनुसार लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के मुताबिक गठित श्रीलंका सरकार के साथ काम करने के लिए तत्पर है. श्रीलंका के प्रधानमंत्री और श्रीलंका के लोगों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता जारी रहेगी.'

1 सांसद वाली पार्टी ने कैसे बना लिया सरकार?

यानी उन्हें ऐसा नेता माना जाता है, जो आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को बेहतर ढंग से लागू कर सकते हैं और इस समय श्रीलंका को एक ऐसे ही नेता की जरूरत है. इसके अलावा वहां की ज्यादातर पार्टियों का मानना है कि वो श्रीलंका को IMF से स्पेशल पैकेज दिलाने में भी अहम कड़ी साबित हो सकते हैं.

हालांकि श्रीलंका की मौजूदा संसद में रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी के पास केवल एक सांसद है और सभी को ये फैसला हैरान कर गया कि आखिर एक सांसद वाली पार्टी देश के सबसे ऊंचे पद तक कैसे पहुंच गई. तो इसके पीछे श्रीलंका के मौजूदा राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे हैं.

सभी ने सरकार बनाने से किया इनकार

ऐसा नहीं है कि किसी और पार्टी को पीएम पद का निमंत्रण नहीं दिया गया. साजिथ प्रेमदासा के नेतृत्व में मुख्य विपक्षी यूनाइटेड पीपुल्स पावर और अनुरा कुमारा डिसनायके के नेतृत्व वाली मार्क्‍सवादी पार्टी नेशनल पीपुल्स पावर ने राष्ट्रपति राजपक्षे के इस्तीफा देने तक सरकार बनाने से इनकार कर दिया.

श्रीलंका की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता सजीत प्रेमादासा ने गोटाबाया राजपक्षे से एक निश्चित समय में राष्ट्रपति का पद छोड़ने की मांग की तो राष्ट्रपति गोटाबाया ने साफ इनकार कर दिया.

श्रीलंका के नए पीएम की चुनौतियां

अब रनिल विक्रमसिंघे के नए पीएम बनने से हालात कितने सुधरेंगे ये तो आने वाला समय ही बताएगा, क्योंकि श्रीलंका के मौजूदा हालात बेहद खराब हैं. लोग अब भी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे को लेकर अड़े हुए हैं. लेकिन श्रीलंका में भी इस बार जनता ने मोर्चा संभाल लिया है.

श्रीलंका में लोगों की मांग राष्ट्रपति के ही इस्तीफे पर आ कर रुक जाती है, पर राष्ट्रपति ने फिलहाल चिंताओं की गठरी नए प्रधानमंत्री के सिर पर डाल दी है. अब देखना होगा कि Pro Market Reformer के नाम से मशहूर रनिल विक्रमासिंघे कितने समय में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला पाते हैं.

इसे भी पढ़ें- कौन हैं रानिल विक्रमसिंघे? उनके पीएम बनने से कैसे होंगे भारत-श्रीलंका के संबंध

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

ट्रेंडिंग न्यूज़