Taiwan में ऐसा क्या है जिसे लेकर चीन-अमेरिका में ठनी, युद्ध का मंडरा रहा खतरा

 चीन की लगातार धमकियों के बीच अमेरिकी की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान के दौरे पर आ गई हैं. इस दौरे पर पूरी दुनिया की निगाहें बनी हुई हैं. क्योंकि चीन लगातार धमका रहा था कि अगर नैंसी ने दौरा किया तो फिर हम चुप नहीं बैठेंगे.

Written by - Akash Singh | Last Updated : Aug 2, 2022, 09:01 PM IST
  • अमेरिकी स्पीकर नैंसी ताइवान के दौरे पर
  • चीन -अमेरिका में लगातार हो रही बयानबाजी
Taiwan में ऐसा क्या है जिसे लेकर चीन-अमेरिका में ठनी, युद्ध का मंडरा रहा खतरा

नई दिल्लीः चीन की लगातार धमकियों के बीच अमेरिकी की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान के दौरे पर आ गई हैं. इस दौरे पर पूरी दुनिया की निगाहें बनी हुई हैं. क्योंकि चीन लगातार धमका रहा था कि अगर नैंसी ने दौरा किया तो फिर हम चुप नहीं बैठेंगे. वहीं, अमेरिका, चीन और ताइवान तीनों ही देशों की सेनाएं अलर्ट पर कर दी गई थीं. लेकिन इस तल्खी के बीच ये जानना सबसे जरूरी है कि आखिर ताइवान जैसे छोटे देश में ऐसा क्या है कि मौजूदा वक्त में दुनिया के दो सबसे शक्तिशाली देशों में शुमार देश युद्ध तक की धमकी दे रहे हैं और आमने-सामने हैं.

पहले ताइवान का इतिहास समझना होगा

इस पूरे विवाद को समझने से पहले ताइवान का इतिहास समझना होगा और ये जानना होगा कि आखिर चीन-ताइवान में समस्या क्या है. दोनों के बीच अलगाव करीब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुआ.

उस समय चीन की मुख्य भूमि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का वहां की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी.1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और राजधानी बीजिंग पर क़ब्ज़ा कर लिया.उसके बाद, कुओमिंतांग के लोग मुख्य भूमि से भागकर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए.उसके बाद से अब तक कुओमिंतांग ताइवान की सबसे अहम पार्टी बनी हुई है. ताइवान के इतिहास में ज़्यादातर समय तक कुओमिंतांग पार्टी का ही शासन रहा है.

लेकिन ताइवान के अलग होने से समस्या दूर नहीं हुई. चीन लगातार ताइवान को अपना हिस्सा बताता है और एकीकरण की कवायद भी करता रहा है. यही नहीं तइवान के क्षेत्र में चीन लगातार घुसपैठ और मिलिट्री एक्शन भी करता है. इसके उलट ताइवान खुद को संप्रभु देश मानता है और चीन की दखल का विरोध करता है. हालांकि, दुनिया के करीब 13 देश ही ताइवान को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता देते हैं.

चीन के लिए क्यों खास है ताइवान
ताइवान को लेकर चीन का ये अड़ियल रवैया केवल जमीन या इतिहास का मसला नहीं है. असली वजह आर्थिक और प्रभुत्व की है. दरअसल, चीन यदि ताइवान पर कब्जा कर लेता है तो जानकारों के मुताबिक वो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने को आज़ाद हो जाएगा. इन महासागरों पर चीन लंबे समय से दबदबे की फिराक में भी है.
लेकिन दूसरी ओर अमेरिका भी इन क्षेत्रों पर अपना दबदबा मजबूती से बना रहा है. अगर चीन का ताइवान पर कब्जा हुआ तो उसके बाद गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिकी सै​न्य ठिकाने को भी ख़तरा हो सकता है.इसलिए चीन और अमेरिका में भी ठनी हुई है.

ताइवान के बिजनेस पर भी नजर
इस बात में कोई शक नहीं है कि ताइवान भले ही एक छोटा सा द्वीप हो लेकिन बिजनेस में उसकी बहुत धमक है. ताइवान की अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए काफी मायने रखती है. दुनिया के रोजाना इस्तेमाल के इलेक्ट्रॉनिक गैजेटों जैसे फोन, लैपटॉप, घड़ियों और गेमिंग उपकरणों में जो चिप लगते हैं, वे ज़्यादातर ताइवान में बनते हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो चिप के मामले में ताइवान फिलहाल दुनिया की बहुत बड़ी ज़रूरत है. उदाहरण के लिए 'वन मेज़र' नाम की कंपनी को लें.अकेले यह कंपनी दुनिया के आधे से अधिक चिप का उत्पादन करती है.

2021 में दुनिया का चिप उद्योग क़रीब 100 अरब डॉलर का था और इस पर ताइवान का दबदबा है.यदि ताइवान पर चीन का कब्ज़ा हो गया तो दुनिया के इतने अहम उद्योग पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा.

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