shimal assembly seat: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का आगाज होने को है. इस बीच कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी से लेकर सभी पार्टियों ने जीत हासिल करने के लिए कमर कस ली है. ऐसे में शिमला शहरी विधानसभा सीट से जीतने के लिए सभी पार्टियों में होड़ मची हुई है.
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Himachal assembly election 2022: हिमाचल प्रदेश में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव (himachal assembly election) होने हैं. ऐसे में अब प्रदेश की हर विधानसभा में राजनीतिक सरगर्मियां भी शुरू हो गई हैं. इस साल हिमाचल प्रदेश का विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि हिमाचल प्रदेश में अभी तक धाक जमाने वाली केवल दो ही पार्टियां थी कांग्रेस (himachal congress) और बीजेपी (BJP) लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी (AAP) भी अपनी किस्मत आजमा रही है.
हिमाचल में जीतने का दावा कर रही 'AAP'
दिल्ली और पंजाब में जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी अब देवभूमि में भी सरकार बनाने का दावा कर रही है. हिमाचल का विधानसभा चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि यह उन राज्यों में एक है जिसकी एक नहीं बल्कि दो राजधानियां हैं. पहली शिमला और दूसरी धर्मशाला. इस खबर में हम आपको बताएंगे शिमला शहरी सीट का इतिहास और यहां का राजनीतिक समीकरण.
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क्यों खास है शिमला शहरी विधानसभा सीट?
शिमला शहरी सीट अपने आप में बेहद खास है. ऐसे में कांग्रेस, बीजेपी और 'आप' तीनों ही पार्टियों में यहां से जीत हासिल करने की होड़ मची हुई है. शिमला शहरी सीट पर काफी समय तक बीजेपी का कब्जा रहा है. ऐसा माना जाता है कि जो भी यहां से चुनाव जीतता है वह आने वाले समय में मंत्री पद तक जाता है. बता दें, साल 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से सुरेश भारद्वाज को पूर्ण बहुमत से जीत हालिस हुई और अब सुरेश भारद्वाज हिमाचल की जयराम सरकार में मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
कैसे बनी शिमला शहरी सीट?
बता दें, शिमला शहर विधानसभा सीट पहले शिमला के नाम से ही जानी जाती थी, लेकिन साल 2008 के बाद इसका परिसीमन कर शिमला शहर और शिमला ग्रामीण दो सीटों में बांट दिया गया. शिमला शहर सीट पर काफी समय तक बीजेपी का कब्जा रहा है. साल 1967 में शिमला शहर सीट पर जनसंघ के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. साल 1998 में बीजेपी से नरेंद्र बरागट इस क्षेत्र के विधायक बने थे. इसके बाद 2003 में कांग्रेस से हरभजन सिंह भज्जी और 2007 में सुरेश भारद्वाज ने जीत हासिल की और तब से लेकर अब तक इस सीट पर उन्हीं का कब्जा है.
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2007 से 2017 तक रहा भाजपा का राज
इस क्षेत्र के लिए 1977 में जनता पार्टी से दौलत राम चौहान, 1982 में बीजेपी से दौलत राम चौहान, 1985 में कांग्रेस से हरभजन सिंह, 1990 में भाजपा से सुरेश कश्यप, 1993 में माकपा से राकेश सिंघा, 1998 में भाजपा से नरेंद्र बरागटा, 2003 में कांग्रेस से हरभजन सिंह, 2007 में भाजपा से सुरेश कश्यप, 2012 में भाजपा से सुरेश कश्यप को विधायक चुना गया. इसके बाद 2017 में भी यहां की जनता ने एक बार फिर बीजेपी के सुरेश कश्यप को ही अपना विधायक चुना.
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