हिंदू धर्म के अनुसार धरती के रचयिता भगवान विश्मकर्मा के द्वारा की गई थी और निर्माणकर्ता होने की वजह से ही उन्हें ब्रह्मा का एक रूप भी माना जाता है.
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नई दिल्लीः हिंदू धर्म के अनुसार धरती के रचयिता भगवान विश्मकर्मा के द्वारा की गई थी और निर्माणकर्ता होने की वजह से ही उन्हें ब्रह्मा का एक रूप भी माना जाता है. इस बार विश्वकर्मा पूजा जयंती 17 सितंबर को मनाया जाएगा. साथ ही भगवान विश्वकर्मा का जिक्र 12 आदित्यों और लोकपालों के साथ ऋग्वेद में किया जाता है. इस तरह भगवान विश्वकर्मा की मान्यता पौराणिक काल से भी पहले मानी जाती है.
इन वस्तुओं का किया निर्माण
भगवान विश्वकर्मा में मान्यता है कि वो एक महान ऋषि के साथ एक महान शिल्पकार और ब्रह्म ज्ञानी थे. कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि चीजों का निर्माण किया था. इसके अलावा हस्तिनापुर, द्वारिकापुरी, पुष्पक विमान, भगवान शिव का त्रिशूल इत्यादि ऐश्वर्य की वस्तुओं के निर्माता भी भगवान विश्वकर्मा ही हैं. भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र भी भगवान विश्वकर्मा ने ही निर्मित किया था.
विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति
भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर कई कथाएं सुनाई जाती है. लेकिन, वह ब्रह्मा के वंशज माने जाते हैं, जिनकी पत्नी का नाम वस्तु था. वस्तु के सातवें पुत्र थे वास्तु, जो शिल्प शास्त्र के आदी थे. उन्हीं वासुदेव की अंगीरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था.
शुभ मुहूर्तः- 17 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 6:07 बजे से 18 सितंबर, शनिवार को 3:36 बजे तक पूजन
केवल राहुकल के समय पूजा निषिद्ध
17 सितंबर को राहुकाल सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक
बाकी समय पूजा का योग रहेगा.
पूजन विधिः-
इस दिन सूर्य होने से पहले स्नान करना चाहिए.
इसके बाद रोजाना उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ किया जाता है.
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इसके बाद पूजा करनी चाहिए.
पूजा में भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान विश्वकर्मा की भी तस्वीर को शामिल करें.
इसके बाद दोनों ही देवताओं को कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, हल्दी व फूल, फल, मेवे, मिठाई इत्यादि अर्पित करें.
आटे की रंगोली बनाकर उस पर सात तरह के अनाज रखें.
पूजा में जल का एक कलश भी शामिल करें.
धूप दीप इत्यादि दिखाकर दोनों भगवानों की आरती करें.
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